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गरीबी और सूखे से जूझ रहा था, अब भारत के इस गांव में हैं 60 करोड़पति! कैसे हुआ ये चमत्कार

1989 से पहले तक इस गांव की हालत बद से बदतर थी, लेकिन 1989 में पोपटराव पवार को गांव का सरपंच चुना गया. उस दिन के बाद से तो जैसे गांव में रिफॉर्म की बयार बह गई.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago

नई दिल्ली: मुकेश अंबानी, गौतम अडानी, अजीम प्रेमजी, ये किसी पहचान के मोहताज नहीं, ये हमारे देश के करोड़पति उद्योगपति हैं. लेकिन इन कुछ चुनिंदा नामों के अलावा भी हमारे देश में करोड़पतियों की कमी नहीं है. आमतौर पर करोड़पतियों का नाम सुनकर हमारे दिमाग में बड़ी बड़ी गाड़ियां, सूटबूट पहने एकदम चमकदार जिंदगी जीते लोगों की तस्वीरें घूमने लगती हैं. हम जिन करोड़पतियों की बात कर रहे हैं, वो थोड़ा हटके हैं. 

60 करोड़पतियों वाला गांव 
भारत में ही एक गांव ऐसा है जहां पर 60 करोड़पति रहते हैं, इस छोटे से गांव को करोड़पतियों का गांव कहा जाता है. हम आपके लिये इसी गांव और यहां के लोगों की एक प्रेरित करने वाली कहानी लेकर आए हैं. इस गांव का नाम है हिवरे बाजार ( Hiware Bazar), जो महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में आता है. हमारे देश के गांव किस हालत में रहे हैं, ये किसी से छिपा नहीं है. 1972 में ये गांव भी गरीबी और सूखे की चपेट में था. लेकिन 1990 के बाद से इस गांव की किस्मत पलटनी शुरू हो गई, ये गांव धीरे धीरे समृद्ध होने लगा. और देखते ही देखते इस गांव में 60 करोड़पती हो गए, ये करोड़पति कोई और नहीं थे बल्कि इसी गांव के किसान थे. 

कैसे हुआ ये चमत्कार
अब सवाल उठता है कि ये सब हुआ कैसे, इस गांव की किस्मत कैसे पटल गई. तो इसका पूरा श्रेय जाता है गांव के मुखिया पोपटराव बगूजी पवार को. उन्होंने इस गांव को सूखे और गरीबी से उठाकर एक समृद्ध गांव बना दिया. पवार ने गांव में सामाजिक और आर्थिक स्तर पर कई ऐसे कदम उठाए जिसने इस गांव को बदलकर रख दिया. बमुश्किल ही 1300 लोगों की आबादी वाला ये गांव इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि कैसे लोग अगर ठान लें, उनके अंदर कुछ करने का संकल्प हो तो कड़ी मेहनत से वो अपनी किस्मत को बदल सकते हैं. 

जब पोपटराव पवार को चुना गया सरपंच
1989 से पहले तक इस गांव की हालत बद से बदतर थी, लेकिन 1989 में पोपटराव पवार को गांव का सरपंच चुना गया. उस दिन के बाद से तो जैसे गांव में रिफॉर्म की बयार बह गई. पवार ने कई ऐसे फैसले लिये जिससे गांव के लोगों ने अपनी किस्मत खुद लिखी. सबसे पहले पवार ने गांव में तंबाकू और शराब के सेवन पर प्रतिबंध लगाया. अवैध शराब की दुकानों को बंद करवा दिया. ताकि गांव के लोगों को नशा से मुक्त कराया जा सके. इसके बाद उन्होंने गांव में पानी के संकट पर फोकस किया. चूंकि गांव में मॉनसून के दौरान ज्यादा बारिश नहीं होती थी, जिससे पानी का संकट पूरे साल बना रहता था. इस संकट को दूर करने के लिए पवार ने लोन का इंतजाम किया, इससे उन्होंने गांव में रेनवाटर हारवेस्टिंग, वाटरशेड कंजर्वेशन और मैनेजमेंट प्रोग्राम चलाया. मतलब बारिश के पानी को कैसे इकट्ठा किया जाए और उसका प्रबंधन कैसे किया जाए. 

इन कदमों ने बदल दी गांव की किस्मत
इस काम में उन्होंने राज्य सरकारों के साथ गांव के लोगों से भी धन इकट्ठा किया, सामूहिक रूप से उन्होंने कई जल निकायों को तैयार किया. जिनमें 52 मिट्टी के बांध, 32 पत्थर के बांध, चेक बांध और बारिश के पानी को इकट्ठा करने के लिए रिसाव टैंक बनाए. उन्होंने गांव में पेड़ काटने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी, इसकी जगह पर उन्होंने हजारों पेड़ लगाए. वाटरशेड प्रबंधन से गांव में पानी का संकट दूर होने लगा, लोगों को सिंचाई के लिए पानी मिलने लगा. इतना ही नहीं गांव के लोगों ने उन फसलों की खेती करना छोड़ दिया जिसमें ज्यादा पानी लगता था, बल्कि उन फसलों पर फोकस किया जिसमें पानी की कम आवश्यक्ता होती है. जैसे दालों, सब्जियों, फलों और फूलों की खेती शुरू की, जिसके लिये कम पानी की जरूरत होती है. 1990 के दशक में 90 कुओं वाले इस छोटे से गांव में अब लगभग 294 पानी के कुएं हैं. कुछ ही सालों में गांव के लोगों ने पवार के नेतृत्व में कमाल कर दिया. इस गांव में खेती फिर से जोरों पर थी और गांव वालों के लिये आय का प्राथमिक जरिया बन गया. 

ऐसे बन गया करोड़पतियों का गांव
पोपटराव पवार ने अपने सरपंच के तौर पर जो काम किया उसे पूरे हिंदुस्तान ने देखा, उन्होंने अपने गांव को मॉडल ग्रीन विलेज में तब्दील कर दिया, अब इस गांव में कोई भी परिवार गरीबी रेखा से नीचे नहीं है, कोई भी शराब नहीं पीता, सफाई इतनी है कि मच्छरमुक्त है, 1992 से ही खुले में शौच से मुक्त है. इस गांव के लोग अब पशु खेती पर फोकस करतै हैं, 20वीं शताब्दी जहां गांव प्रतिदिन सिर्फ 33 गैलन दूध का उत्पादन करता था, 21वीं सदी में ये बढ़कर 880 गैलन प्रतिदिन हो चुका है, और अब शायद इससे भी ज्यादा है. 1995 में 182 परिवारों में से 168 परिवार गरीबी रेखा से नीचे थे, लेकिन अब एक भी परिवार गरीबी रेखा से नीचे नहीं है. इस गांव के हर घर में शौचालय है, हर घर बायोगैस का इस्तेमाल करता है, पूरे गांव में स्कूल और हेल्थकेयर सिस्टम है, बिजली और पानी पूरे गांव में आता है. इस गांव की प्रति व्यक्ति आय देश में सबसे ज्यादा है, गांव के लोग औसतन 30,000 रुपये प्रति महीना कमाते हैं, और कुल 235 परिवारों में से 60 करोड़पति हैं.   पवार को उनके इस कारनामे के लिये पद्म श्री से भी नवाजा गया है. 
 


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