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कानून का आसान और सरल होना सबसे जरूरी है : जस्टिस मदन बी. लोकुर 

उन्‍होंने कहा कि कानून का सरल होने के साथ-साथ कानून का सबको समझ में आना भी बेहद जरूरी है. उन्‍होंने कहा कि जजमेंट का कई पेजों का होना आम बात हो गई है. 

ललित नारायण कांडपाल 10 months ago

देश की राजधानी दिल्‍ली में बीडब्ल्यू लीगल वर्ल्ड कार्यक्रम बतौर मुख्‍य अतिथि पहुंचे सुप्रीम कोर्ट ऑफ फिजी में जज और देश की सुप्रीम कोर्ट में जज रहे जस्टिस मदन बी. लोकुर ने कानून की सरलता को लेकर कई अहम बातें कहीं. उन्‍होंने कहा कि कानून का सरल होना बेहद जरूरी है. क्‍योंकि कई कानूनों का उदाहरण देते हुए समझाया कि उनमें किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. उन्‍होंने अदालत के काम करने के तरीकों को लेकर सवाल उठाया और कहा कि इसमें बड़े स्‍तर पर बदलाव की जरूरत है. 

कानून का सरल होना बेहद जरूरी 
जस्टिस मदन बी. लोकुर ने कहा कि मैं हमेशा एक बात कानून की सरलता पर जोर देता आया हूं. उन्‍होंने कहा कि लेकिन इसके साथ कुछ समस्‍या भी है जिसमें डाटा प्रोटेक्शन बिल एक है. लेकिन मुझे लगता है कि उसके चलते हम अपने कानून को और आसान बना सकते हैं, जिससे कानून में एकरूपता आ सके, साथ ही कानून को समझने और उसके पालन में भी एकरूपता आ सके. उन्‍होंने कहा कि दरअसल होता ये है कि जब कानून कठिन होता है कई बार वकील कानून को समझ नहीं पाते हैं, वह कई तरह का इंटरप्रिटेशन देते हैं और कई बार वह उसमें उलझ भी जाते हैं,

यह कह सकते हैं कि उसके सही इंटरप्रिटेशन को नहीं समझ पाते हैं. यह समस्या कई सालों से रही है. उदाहरण के लिए जैसे इनकम टैक्स एक्ट है. इसमें अलग-अलग हाईकोर्ट ने अलग-अलग रवैया अख्तियार किया है, क्योंकि इनकम टैक्स लॉ को ड्राफ्ट करने में ही समस्या रही है. कॉन्ट्रैक्ट एक्‍ट में भी उसी तरह की समस्‍या रही है. 

अवॉर्ड जीतने वालों का सलेक्‍शन करने वाली ज्‍यूरी को बधाई  
बीडब्ल्यू लीगल वर्ल्ड कार्यक्रम बतौर मुख्‍य अतिथि पहुंचे सुप्रीम कोर्ट ऑफ फिजी में जज और देश की सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन बी. लोकुर ने कहा कि मैं सबसे पहले उन लोगों को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहूंगा जिन लोगों ने अवार्ड जीता है. मैं साथ ही उस ज्‍यूरी को भी बधाई देना चाहूंगा जिसके चेयरमैन डॉ ललित भसीन हैं.  उन्होंने बेहतरीन उम्‍मीदवारों का चयन किया है. कई सारे उम्मीदवारों के बीच में कुछ लोगों को चयन करना बड़ा मुश्किल टास्क होता है, किसे अवॉर्ड देना है किसे नहीं देना है, क्यों देना है, क्यों नहीं देना है, ये बड़ा काम है.

लेकिन आपने इसमें बेहतरीन काम किया है. मैं बीडब्ल्यू लीगल वर्ल्ड को इस इवेंट को ऑर्गेनाइज करने के लिए भी बधाई देना चाहूंगा. उन्‍होने बिजनेस वर्ल्‍ड के एडिटर-इन-चीफ और एक्‍सचेंज4मीडिया के फाउंडर डॉ. अनुराग बत्रा को भी इस बेहतरीन इवेंट के लिए बधाई दी.  

 

जमेंट कम पेज का होना चाहिए
मदन बी. लोकुर ने कहा कि आज की तारीख में हंड्रेड पेज का जजमेंट होना बहुत ही कॉमन बात है. कोई भी उसे नहीं पड़ता है. लॉ प्रोफेसर और जिसे उस पर समीक्षा करनी है उसके अलावा उसे कोई नहीं पड़ता है. आप और मैं उसे लेकर कोई आर्टिकल पढ़ सकते हैं,  लेकिन इतने पेज का जजमेंट कोई नहीं पड़ता.  कुछ समय पहले मैं सुप्रीम कोर्ट के एक सीटिंग जज से मिला. उन्‍होंने बताया कि कुछ महीने पहले वह हमारी एक फ्रेंडली कंट्री के सुप्रीम कोर्ट में चले गए थे. उन्हें वहां के एक जज ने कहा कि वो इंडिया की कोर्ट के जजमेंट का बड़ा सम्‍मान करते हैं.

 उन्होंने कहा कि हम जजमेंट्स को पढ़ते थे और उन्हें समझते थे. लेकिन अब हमने ऐसा करना बंद कर दिया है. उन्होंने पूछा कि अब आपने ऐसा क्यों किया तो उन्होंने कहा कि जजों ने जजमेंट लिखना बंद कर दिया है, अब आप बुक्स लिखना शुरू कर चुके हैं. एक बार आप फिर देख सकते हैं कि सिंपलीसिटी गायब हो गई है. आप देख सकते हैं कि इंग्लैंड में जब एक महत्‍वपूर्ण फैसला आया तो वह केवल 2 दर्जन से भी कम पेज का जजमेंट था. उन्‍होंने कहा कि हमें जो करना है वो जनता के फायदे के लिए करना है.

केस को डील करने के तरीके हों सही 
जस्टिस मदन बी. लोकुर ने कहा कि नेशनल जुडिशल डाटा बताता है कि आज हमारे देश में 50 मिलियन केस पार चुके हैं। यह बहुत सारे केस हैं, मैं नहीं समझता कि इन सारे मामलों में जजमेंट आ पाएगा. मैं एक किसका मुझे सामना करने का मौका मिला जिसमें कि थर्ड जनरेशन उसके केस से जुड़ी हुई थी उनका कहना था कि आखिर यह केस कब तक चलता रहेगा. उन्‍होंने कहा कि जब मैं दिल्ली हाईकोर्ट में था मुझे एक एनजीओ से ईमेल आया था, जिसमें कहा गया था कि 7 साल की बच्ची का रेप हो गया है और वह कई बार अब तक कोर्ट आ चुकी है लेकिन उसका 164 सीआरपीसी में स्टेटमेंट रिकॉर्ड नहीं हो पाया है.

उसके पिता एक गरीब थे वेल्डिंग का काम करते थे उन्हें उसके कारण 7 दिन का काम मिस करना पड़ा. अपना बयान दर्ज कराने के लिए आना पड़ा ईमेल में रिक्वेस्ट की थी कि किसी तरीके से रिक्वेस्ट कर दीजिए, ताकि उनका बयान दर्ज हो जाए. मैंने उस मेल को अपने चीफ जस्टिस को भेजा, जिन्‍होंने एक ऑर्डर पास किया और कहा कि यह सब नहीं चलेगा. एक आदमी अपनी लड़की का बयान दर्ज कराने के लिए 7 बार कोर्ट आता है, लेकिन हर बार किसी न किसी कारण से उसको भेज दिया जाता है,  जज के पास टाइम नहीं है यह वह कानून से जुड़े मामले हैं जिनके बारे में हमें सोचने की जरूरत है.  हम यहां पर सोसाइटी के फायदे के लिए हैं. 

 


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