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क्या पीयूष गोयल का 30 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी का सपना हकीकत बन सकता है? समझिए
भारत की इकोनॉमी ने अभी 5 ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य नहीं हासिल किया है, ऐसे में 30 ट्रिलियन डॉलर की बातें करना कहीं जल्दबाजी तो नहीं. क्या ये लक्ष्य हासिल किया जा सकता है
अभिषेक शर्मा 1 year ago
नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में एक बयान दिया कि अगले 30 सालों में भारत 30 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी बन सकता है. पीयूष गोयल के इस बयान लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया, सवाल पर सवाल होने लगे.
क्या है पीयूष गोयल का दावा
जबकि पीयूष गोयल का दावा है कि अगर भारत की कंपाउंड एनुअल ग्रोथ यानी CAG 8 परसेंट रही तो इकोनॉमी 9 साल में दोगुनी हो जाएगी. अभी ये 3.2 ट्रिलियन डॉलर है, आज से ठीक 9 साल बाद ये 6.5 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगी.हालांकि देश का वित्त मंत्रालय कहता है कि भारत की ग्रोथ अभी सुस्त ही रहेगी लेकिन बाकी उभरती अर्थव्यवस्थाओं से ज्यादा रहेगी.
क्या कहते हैं अर्थशास्त्री?
पीयूष गोयल के दावे पर देश के अर्थशास्त्रियों की अलग-अलग राय है. RBL Bank की चीफ इकोनॉमिस्ट रजनी ठाकुर का कहना है कि ये सपना हकीकत बन सकता है, हालांकि 30 सालों में इस लक्ष्य को हासिल करने और 8 परसेंट ग्रोथ को लगातार बनाए रखने के लिए कई चुनौतियों और खतरों को पार करना होगा.
ध्यान देने वाली बात ये है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने 31 मार्च को खत्म तिमाही में 4.1 परसेंट की ग्रोथ हासिल की थी, पूरे साल के लिए, इसमें 8.7 परसेंट की ग्रोथ दर्ज हुई, जो कि केंद्र के 8.9 परसेंट दूसरे एडवांस अनुमान से कम थी.
चुनौतियों के बावजूद भारत उभरेगा
पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष प्रदीप मुल्तानी का कहना है कि - भारत ने इस सफर की शुरुआत पहले ही कर दी थी क्योंकि कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने अनुमान जताया कि दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के लिए खराब अनुमानों, जियो पॉलिटिकल और कुछ देशों में कोविड के नए वैरिएंट्स मिलने से पैदा हुई चुनौतियों के बावजूद भारत वित्त वर्ष 2023 में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनकर उभरेगी. मुल्तानी का मानना है कि सरकार इस विजन को साकार करने के लिए आने वाले वर्षों में स्थिर और ग्रोथ-ओरिएंटेड रिफॉर्म्स को जारी रखेगी.
इसके अलावा, भारतीय अर्थव्यवस्था ने वित्त वर्ष 22 के प्रोविजन अनुमानों के मुताबिक 8.7 परसेंट की ग्रोथ दर्ज करते हुए तेजी से वापसी की है. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने वित्तीय वर्ष 2023 के लिए GDP पूर्वानुमान को 7.2 परसेंट पर बरकरार रखा.
30 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी संभव
30 साल में 30 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी के मुद्दे पर बात करते हुए ICICI Securities के चीफ इकोनॉमिस्ट प्रसेनजीत के बासु का कहना है कि ऐसा बिल्कुल हो सकता है. इसके लिए 30 साल के दौरान नॉमिनल USD में 7.9 परसेंट का CAGR हासिल करना होगा. भारत की GDP (USD में) वित्त वर्ष 2022 में 1994 के मुकाबले 10 गुना ज्यादा थी, इसलिए इसने 10 गुना बढ़ोतरी के लिए 28 साल से कुछ कम ही वक्त लगा.
पीयूष गोयल के अनुमान से एक कदम आगे बढ़ते हुए बासु का कहना है कि तेज विकास, मजबूत उत्पादकता और व्यापक रोजगार को देखते हुए, हमें अगले 25 वर्षों या उससे कम समय में 10 गुना ग्रोथ देखना चाहिए. बासु ने कहा कि "25 सालों या इसके पहले ये हकीकत होगी अगर श्रम सुधारों को अधिसूचित और जल्दी से लागू किया जाए है, तो अर्थव्यवस्था में, विशेष रूप से मैन्यूफ्चरिंग सेक्टर में बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा हो सकता है.
IMF का रुख अलग क्यों?
सब कुछ एक तरफ दिया जाए तो अर्थशास्त्री का मानना है कि भारत को पहले 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य तक पहुंचना है और फिर अगले लक्ष्य की ओर बढ़ना है. हालाँकि, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत की GDP वित्तीय वर्ष 2027 से पहले 5 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाएगी. IMF के आंकड़ों के मुताबिक भारत की नॉमिनल जीडीपी वित्त वर्ष 2028 में बढ़कर 4.92 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो सकता है.
पहले 5 ट्रिलियन को हासिल करें
YES Bank के चीफ इकोनॉमिस्ट इंद्रनील पान का कहना है कि "पहले तो हमें 5 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य को हासिल करना है. अगर इकोनॉमी में पॉजिटिव ग्रोथ जारी रहा तो इसमें कोई शक नहीं कि हम एक समय के बाद वहां होंगे. अगर ये 30 सालों के दौरान होना है तो इकोनॉमी को सालाना 7.5 परसेंट की रियल ग्रोथ से बढ़ना होगा.
इंद्रनील के मुताबिल लक्ष्य एक व्यवहारिक संख्या की तरह दिखता है, हालांकि, उनका कहना है कि अगले 30 वर्षों के लिए सालाना 7.5 परसेंट की ग्रोथ दर पर बने रहना थोड़ा मुश्किल लक्ष्य लगता है.
भारत में इकोनॉमिक ग्रोथ ग्रीन एनर्जी, प्रोडक्शन लिंक्ड मैन्यूफैक्चरिंग, डिजिटल ग्रोथ, 145 लाख करोड़ रुपये के इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन, एग्रीकल्चर और MSMEs के लिए इनसेंटिव्स से आएगी.
रजनी ठाकुर का कहना है कि प्रमुख सेक्टर्स को लगातार पहचानने, मैच्योरिटी की ओर आगे बढ़ाने और अगले सेक्टर की ओर लेकर जाने की जरूरत है. इस वक्त कई प्रमुख सेक्टर्स की पहचान की गई है और कई पॉलिसी सपोर्ट उन्हें दिए गए हैं, वो चाहे PLIs के रूप में हो या फिर दूसरे तरीकों से.
बासु का कहना है सभी सेक्टर्स को ग्रोथ में योगदान देना चाहिए. सरप्लस वर्कर्स एग्रीकल्चर से मैन्यूफैक्चरिंग और सर्विसेज की तरफ आएंगे जिससे सभी सेक्टर्स की
उत्पादकता बढ़ेगी. (कृषि में मौजूदा समय में में अतिरिक्त वर्कर्स हैं, इसलिए कुछ एग्रीकल्चर वर्कर्स को इंडस्ट्री और सर्विसेज में भेजने से कृषि में औसत उत्पादकता
बढ़ेगी, कम वर्कर ज्यादा आउटपुट देंगे, साथ ही दूसरे सेक्टर्स में भी रोजगार और उत्पादकता बढ़ेगी. जहां ज्यादा पूंजी, मशीनरी और टेक्नोलॉजी से उत्पादकता बढ़ेगी.
इस बीच पान का कहना है कि मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को अब अगुवाई करनी चाहिए क्योंकि पिछली बार सर्विसेज सेक्टर ने कमान संभाली थी. भारत में विशाल श्रम शक्ति को देखते हुए, हमें विकास को गति देने के लिए श्रम प्रधान क्षेत्रों को देखना चाहिए.
कृषि क्षेत्र के लिए, अर्थशास्त्रियों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में कैपिटल एक्सपेंडीचर या पूंजीगत व्यय कम होने की वजह से इसे उपेक्षा का सामना करना पड़ा. भारत कुछ फसलों का सबसे बड़ा उत्पादक हो सकता है, लेकिन इसमें उत्पादकता की कमी है. इसलिए, रिसर्च एंड डेवलपमेंट इसमें तेजी ला सकता है.
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