होम / यूटिलिटी / जनवरी 2023 में कंज्यूमर सेंटीमेंट में दिख रहा है ये बदलाव
जनवरी 2023 में कंज्यूमर सेंटीमेंट में दिख रहा है ये बदलाव
ये रिपोर्ट बताती है कि नये साल में पिछले साल के मुकाबले कई तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं. जबकि दुनियाभर की परिस्थितियों का भारत में भी असर देखा जा रहा है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
भारत में नए साल के आने के साथ-साथ जहां बाजार में सकारात्मकता का दौर लौट रहा है वहीं एक रिपोर्ट बता रही है कि दिसंबर 2022 की तुलना में जनवरी 2023 में उपभोक्ता सेंटीमेंट में और सुधार हुआ है. प्राइमेरी कंज्यूमर सेंटीमेंट इंडेक्स की रिपोर्ट के अनुसार कंज्यूमर सेंटीमेंट में 0.6 प्रतिशत अंकों की मामूली वृद्धि दिखाई दे रही है. इसके अलावा, इस वर्ष लोग नौकरियों के बारे में अधिक आशावादी दिखाई दे रहे हैं. यही नहीं अर्थव्यवस्था को लेकर लोग इस नए साल में अपने पर्सनल फाइनेंस, बचत और निवेश को लेकर पिछले साल की तुलना में ज्यादा सकारात्मक दिखाई दे रहे हैं.
कैसे तय होता है कंज्यूमर सेंटीमेंट
PCSI की मासिक रिपोर्ट को 4 सबइंडीकेटर के द्वारा मापा जाता है और इस माह इसका दिलचस्प निष्कर्ष दिख रहा है. PCSI की रिपोर्ट में वर्तमान निजी फाइनेंस की स्थिति के सब इंडीकेटर (उप-सूचकांक) में 1.2 प्रतिशत अंक की वृदि्ध दिखाई दे रही है. जबकि इंवेस्टमेंट क्लाइमेट (निवेश) के सब इंडीकेटर में 1.1 प्रतिशत अंक की बढ़ोतरी हुई है, PCSI की रिपोर्ट बताती है कि लोगों के इंम्प्लायमेंट ट्रस्ट में (नौकरी) में इजाफा हुआ है. इसके सब इंडीकेटर में 1 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, जबकि PCSI की रिपोर्ट बताती है कि आर्थिक अपेक्षाओं के सब इंडीकेटर में 1.5 प्रतिशत अंक की गिरावट दर्ज की गई है.
कंज्यूमर सेंटीमेंट में दिखा बदलाव
नए साल की शुरुआत में कंज्यूमर सेंटीमेंट में अच्छा बदलाव दिख रहा है. रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2023 में उपभोक्ता भावना में और सुधार हुआ है. दिसंबर 2022 में, नवंबर की गिरावट के बाद कंज्यूमर सेंटीमेंट (उपभोक्ता भावना) में मामूली सुधार हुआ है. एक ओर यूक्रेन के साथ युद्ध समाप्त नहीं हुआ है जबकि वहीं दूसरी ओर वैश्विक अर्थव्यवस्था में भी मंदी दिख रही है, भारत भी इस सेंटीमेंट से अछूता नहीं है इसलिए उपभोक्ता भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में कुछ निराशावादी हैं. हालांकि हम पर्सनल फाइनेंस, जिसमें मासिक घरेलू खर्च चलाने से लेकर बड़ी वस्तुओं की खरीद के लिए इंवेस्टमेंट और बचत के प्रति विश्वास के आसपास उपभोक्ता भावना में और वृद्धि देखी जा रही है. नए वित्तीय वर्ष में कंपनियों की नई हाईरिंग को देखते हुए नौकरियों की संभावनाओं के बारे में भी आशावादी सुधार दिख रहा है. लेकिन अभी भी भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी कि ये पूरा वर्ष आगे चलकर कैसा परफॉर्म करेगा.
क्या कहते हैं कंपनी के सीईओ
इप्सोस इंडिया के सीईओ अमित अदारकर कहते हैं कि यूरोप मुद्रास्फीति और ऊर्जा संकट से अत्यधिक प्रभावित है और वहीं भारत में सरकार द्वारा ईंधन की कीमतों पर लगाम लगाने के बावजूद कॉस्ट ऑफ लिविंग (जीवन यापन) में इसका असर देखा जा रहा है, हम अभी भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर यूक्रेन युद्ध का अधिक प्रभाव देख सकते हैं जो कि हमें रुपये की कीमतों में डॉलर और यूरो के मुकाबले गिरावट देखने को मिल रही है. क्योंकि यूरो और डॉलर के मुकाबले रुपया और कमजोर हो रहा है. अमित अदारकर कहते हैं कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं के अपने वैल्यूएशन में और सुधार करने की संभावना है.
टैग्स