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मोदी@9 : मोदी सरकार के वो फैसले जो बन गए इतिहास

नोटबंदी ने भले ही कई लोगों को परेशान किया हो लेकिन इसके बाद देश के डिजिटल लेन देन ने ऐसी गति पकड़ी कि आज छोटी से छोटी चीज भी डिजिटल पेमेंट के जरिए हासिल की जा सकती है. 

ललित नारायण कांडपाल 11 months ago

26 मई को केन्‍द्र में चल रही मोदी सरकार के नौ वर्षों का कार्यकाल पूरा हो चुका है.  अगले साल एक बार फिर लोकसभा चुनाव आने जा रहे हैं जहां सरकार की परीक्षा होने जा रही है. आज नौ सालों के इस शासन में हम आपको उन फैसलों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्‍हें लेकर जबर्दस्‍त विवाद हुए लेकिन आज वो इतिहास में दर्ज हो चुके हैं. कुछ में सरकार को कामयाबी मिली तो कुछ ऐसे जिनमें सरकार को पीछे हटना पड़ा. 

नोटबंदी ने किया परेशान
वर्ष 2014 में सरकार की बागडोर अपने हाथों लेने के बाद सबसे पहले मोदी सरकार ने भले ही लोगों का बैंकों में खाता खोलने का काम किया लेकिन उसके बाद 2016 में नोटबंदी करने के फैसले ने सभी को बता दिया कि सरकार के तेवर क्‍या हैं. सरकार ने 8 नवंबर 2016 को 500 और 1000 रुपये के नोटों को वापस लेने का फैसला ले लिया. इसके बाद क्‍या था एक ओर जहां बैंकों के बाहर नोट बदलने के लिए लाइन लग गई तो वहीं दूसरी ओर विपक्ष को जैसे बैठे बिठाए मौका मिल गया.

पीएम ने कहा कि सरकार के इस कदम से देश से काले धन को कम करने, कैशलेस लेनदेन को बढ़ाने और अवैध और नकली नोटों को कम करने में मदद मिलेगी जो अवैध गतिविधियों और आतंकवाद को निधि देने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था. सरकार के इस फैसले से जहां लोग लाइनों में आ गए वहीं दूसरी ओर कई लोगों के मृत्‍यु के समाचार ने सरकार को भी हिला कर रख दिया. लेकिन नोटबंदी के बाद भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बताया कि 99.3 प्रतिशत विमुद्रीकृत नोट बैंकों में जमा किए गए थे, जिसका अर्थ ये हुआ कि यह अभियान अर्थव्यवस्था से काले धन को हटाने के अपने उद्देश्य को पूरा करने में प्रभावी रूप से उस स्‍तर तक नहीं पहुंच सका जहां इसकी कल्‍पना की गई थी. लेकिन इसके बाद देश के डिजिटल लेन देन ने ऐसी गति पकड़ी कि आज छोटी से छोटी चीज भी डिजिटल पेमेंट के जरिए हासिल की जा सकती है. 

किसान बिल से हुआ आंदोलन
मोदी सरकार के ऐसे निर्णयों में शामिल है 2020 में लाए गए तीन कृषि सुधार कानून जिन्हें सरकार ने सितंबर 2020 में पारित किया था. किसानों से जुड़े इन तीन कानूनों में पहला कानून, किसानों का उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, किसानों को सरकार के बाहर अपनी उपज बेचने की अनुमति देता है- विनियमित थोक बाजार, उन्हें निजी खरीदारों के साथ सीधे बिक्री में संलग्न होने की अधिक स्वतंत्रता देता है.
मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम पर दूसरा कानून, किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता, किसानों को अपनी उपज की बिक्री के लिए कृषि व्यवसाय फर्मों के साथ अनुबंध समझौते में प्रवेश करने में सक्षम बनाता है.
 तीसरा कानून, आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, कुछ कृषि वस्तुओं को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा देता है, जिससे उनके उत्पादन, भंडारण और वितरण को नियंत्रण मुक्त कर दिया जाता है.
इन कानूनों का देश के किसानों ने बड़े पैमाने पर विरोध किया. प्रमुख तौर पर जहां पंजाब हरियाणा में इनका ज्‍यादा असर देखने को मिला तो दिल्‍ली में नौ महीने से ज्‍यादा समय तक किसानों का आंदोलन चला जिसमें बड़ी संख्‍या में किसान मौजूद रहे. आंदोलन कर रहे किसानों का तर्क था कि सुधारों ने बड़े निगमों का पक्ष लिया और प्रदर्शनकारियों की आजीविका को कम कर दिया. किसानों की चिंताओं में मौजूदा सरकार-विनियमित थोक बाजारों को मंडियों के रूप में जाना जाने वाला संभावित निराकरण शामिल है, जो उनकी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करते हैं. उन्हें डर था कि नए कानून उन्हें कॉर्पोरेट खरीदारों द्वारा शोषण के लिए अतिसंवेदनशील बना सकते हैं और उनकी सौदेबाजी की शक्ति को कमजोर कर सकते हैं. किसानों और सरकार के बीच कई दौर की बातचीत के बावजूद, कोई भी पक्ष एकमत समझौते पर नहीं आ सका, अंततः सरकार को नवंबर 2021 में सुधारों को रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

कोविड 19 लॉकडाउन
कोविड की बीमारी पूरी दुनिया को अपनी जद में लेने के साथ-साथ भारत भी उससे बच नहीं सका. इसके कारण 24 मार्च 2020 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करन के साथ 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा कर दी. सरकार के इस प्रयास ने वायरस को फैलने में तो काफी मदद की लेकिन प्रवासी श्रमिकों की जो भीड़ सड़कों पर दिखी उसने सभी को परेशान कर दिया. बड़े स्‍तर पर अव्‍यवस्‍था फैल गई और सरकार को उसके बाद उसे प्रबंधित करने के लिए कई तरह के कदम उठाने पड़े. इस लॉकडाउन के कारण कई लोगों की जान भी चली गई. इस लॉकडाउन ने जैसे पूरी दुनिया के साथ साथ भारत की अर्थव्‍यवस्‍था को भी बुरी तरह से झंकझोर कर रख दिया.

लेकिन आखिरकार सरकार को श्रमिकों को घर भेजने के लिए ट्रेनों को चलाना पड़ा और उसके बाद जाकर स्थिति नियंत्रण में आई. लेकिन उसके बाद कोविड की सेकेंड वेव में जो कुछ देखने को मिला वो और भी हैरान करने वाला था. देश में वायरस का प्रसार इतनी तेजी से हुआ कि अस्‍पतालों में बिस्‍तर कम पड़ गए. मरीज आक्‍सीजन की कमी के कारण मरने लगे. सरकार को आक्‍सीजन सप्‍लाई करने के लिए विशेष ट्रेनें चलानी पड़ी. कोविड बीमारी भी ऐसी परीक्षा के रूप में सरकार के सामने आई कि उसने सरकार को बुरी तरह से हिलाकर रख दिया. लेकिन ऐसे समय में सरकार ने जिस तरह से मेक इन इंडिया को लेकर काम किया और खुद पीएम मोदी ने जो आपदा में अवसर की बात कही उसने देश की उत्‍पादन इंडस्‍ट्री को एक नई दिशा दे दी. कल तक जो भारत कोविड के दौरान इस्‍तेमाल होने वाली पीपीई किट को बाहर से मंगा रहा था कुछ ही महीने में वो देश में बनने लगी. इसी तरह से देश के अंदर कई तरह का बिजनेस शुरू होगा.

धारा 370 
मोदी सरकार की नौ साल की उपलब्धियों में एक है धारा 370. 5 अगस्‍त 2019 में को सरकार संसद में दो बिल लेकर आई जिसके जरिए सरकार ने कश्‍मीर में धारा 370 खत्‍म करने के साथ जम्‍मू और कश्‍मीर को दो केन्‍द्र शासित राज्‍यों में बांट दिया. इनमें कश्‍मीर को विधानसभा दी गई जबकि जम्‍मू पूरी तरह से केन्‍द्र शासित राज्‍य बना दिया गया. इस फैसले के बाद मोदी सरकार की पूरे देश में जबर्दस्‍त वाहवाही हुई. जैसे देश इस फैसले का इंतजार कर रहा था. यही नहीं देश में कई जगह सरकार के इस फैसले के बाद जश्‍न देखने को मिला. जबकि कश्‍मीर में उसके बाद कई दिनों तक कफर्यू लगा दिया गया. हालांकि सरकार ने उसके लिए पहले से तैयारी की थी. नतीजतन हुआ ये कि कश्‍मीर में कोई भी हिंसा नहीं हुई और सरकार शांतिप्रिय तरीके से धारा 370 को हटाने में कामयाब हो गई. 
 


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