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Health Insurance कंपनियों ने रुलाया, क्या आपका भी क्लेम फंसा?
हेल्थ इंश्योरेंस की डिमांड बढ़ गई है, लेकिन इसके साथ ही इंश्योरेंस क्लेम की परेशानियां भी बढ़ रही हैं. सर्वे में पता चला है कि करीब आधे मामलों में कंपनियां क्लेम देने में परेशानी खड़ी करती हैं.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 2 weeks ago
आज के समय में हेल्थ इंश्योरेंस जरूरत हो गई है. अस्पताल में बढ़ते इलाज खर्च के कारण हेल्थ इंश्योरेंस खरीदने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है. हालांकि, ऐसा नहीं है कि हेल्थ इंश्योरेंस लेने से उनकी परेशानी खत्म हो जा रही है. बीमा कंपनियां क्लेम देने में काफी परेशान कर रही हैं एक सर्वे में यह जानकारी मिली है. सर्वे के अनुसार, पिछले तीन साल में लगभग 43 प्रतिशत स्वास्थ्य बीमा पॉलिसीधारकों को अपने दावों का निपटारा कराने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा है.
हेल्थ इंश्योरेंस बना आफत
39,000 लोगों के बीच लोकल सर्किल के सर्वे में खुलासा हुआ कि 43% लोगों को इंश्योरेंस क्लेम लेने में खासी मशक्कत का सामना करना पड़ा. अक्सर कंपनियां पहले से बीमार होने का हवाला देकर क्लेम को खारिज कर दे रही हैं. कंपनियां पूरा देने की बजाय आधा अधूरा क्लेम ही दे रही हैं. इसके अलावा सर्वे में सामने आया है कि हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम पाने की प्रक्रिया में लंबा समय लगता है.
15-17% लोगों का रिंबर्समेंट ही नहीं हुआ
ऑनलाइन सर्वे में 43% लोगों ने पिछले तीन साल के दौरान हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम में आई परेशानी का खुलासा किया है. देश के 20 से ज़्यादा राज्यों के 302 जिलों के 39 हजार लोगों पर यह सर्वे किया गया था. इसमें करीब 5% लोगों ने बताया कि उनके क्लेम को इंश्योरेंस कंपनी ने खारिज कर दिया. वहीं 15-17% लोगों ने कहा कि इंश्योरेंस कंपनी ने क्लेम की रकम से कम का भुगतान किया. वहीं 20-25% लोगों ने कहा कि उनको सेटलमेंट में काफी लंबा समय लगा और उस दौरान उनको काफी परेशानी झेलनी पड़ी.
मरीज भी हो रहे परेशान
इस सर्वे में सामने आया कि परिवार के साथ, मरीजों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. मरीजों को डिसचार्ज होने के लिए 10-12 घंटे इंतजार करना पड़ता है. सरकार के पास जिन सेक्टर्स को लेकर शिकायतें पहुंचती हैं, उनमें से एक तिहाई इंश्योरेंस सेक्टर से जुड़ी हैं.
93 प्रतिशत नियम में बदलाव के पक्ष में
सर्वेक्षण में शामिल 93 प्रतिशत प्रतिभागियों में से अधिकांश ने इस स्थिति से बचने के लिए नियामकीय मोर्चे पर बदलाव की वकालत की. बीमा कंपनियों को हर महीने अपनी वेबसाइट पर विस्तृत दावों और पॉलिसी कैंसिलेशन डेटा का खुलासा अनिवार्य करने की मांग भी शामिल है. भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) के कुछ हस्तक्षेपों के बावजूद उपभोक्ताओं को अपने स्वास्थ्य दावे प्राप्त करने के लिए बीमा कंपनियों से जूझना पड़ रहा है.
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