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इतनी तेजी से क्यों गिर रहा रुपया, इसे सबसे आसान भाषा में समझिए

हमारे बीच जो इकोनॉमिक्स नहीं समझते, उन्हें यह समझाना कि रुपये में उतार-चढ़ाव कैसे होता है, बिल्कुल भी आसान नहीं है. आइए, इसे आसान शब्दों में समझने की कोशिश करते हैं.

उर्वी श्रीवास्तव 1 year ago

नई दिल्ली: एक पुरानी कहावत है, 'जब अमेरिका छींकता है, तो बाकी दुनिया को सर्दी लग जाती है'. वर्तमान में मुद्रा और वस्तुओं के बाजार पर पड़ने वाले प्रभाव से यह कहावत सही साबित हो रही है. भारतीय रुपया भी इससे अछूता नहीं है, जो कमजोर होकर 81 प्रति डॉलर पर आ चुका है. ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि यूएसए फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में सीधे 0.75% बढ़ोतरी कर एक आक्रामक कदम उठाया है. इसी वजह से पिछले सात महीने के दौरान एक दिन में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई.

क्यों गिर रहा रुपया?
हमारे बीच जो इकोनॉमिक्स नहीं समझते, उन्हें यह समझाना कि रुपये में उतार-चढ़ाव कैसे होता है, बिल्कुल भी आसान नहीं है. आइए, इसे आसान शब्दों में समझने की कोशिश करते हैं. मुद्रास्फीति अब एक वैश्विक घटना है, यह जाना-माना फैक्ट बन चुका है. यह भी एक सच्चाई है कि कई देश (जिनकी GDP में लगातार दो तिमाहियों में गिरावट दर्ज की गई है) जल्द ही मंदी की चपेट में आने वाले हैं. बाजार से तरलता (Liquidity) को बाहर निकालना मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने का एक पॉपुलर तरीका है. ऐसा करने के लिए ही कर्ज पर लागू ब्याज दर में वृद्धि की गई है. यदि ऐसा किया जाता है, तो लोगों को उनके कर्ज के मुकाबले बैंक को ज्यादा भुगतान करना होगा. अमेरिकी फेडरल रिजर्व मूल रूप से यही कर रहा है.

अमेरिकी निवेशक भारतीय शेयर बाजार से पैसा खींच रहे
यदि अमेरिका ब्याज दर बढ़ाता है, तो भविष्य में कम रिटर्न की उम्मीद के कारण अमेरिकी निवेशक उभरते बाजारों से संपत्ति तेजी से खींच लेते हैं. जब अच्छे दिन होते हैं तो निवेशक अमेरिका से सस्ते ब्याज दर पर पैसा उधार लेते हैं और इसे भारतीय शेयर बाजारों में निवेश कर देते हैं. यदि ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो पूंजी अमेरिकी अर्थव्यवस्था की ओर अधिक प्रवाहित होती है. ऐसा होने से निवेशक भारतीय शेयर बाजार से पैसा निकालर अमेरिकी शेयर बाजार में डालने लगते हैं. फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर बढ़ाने के बाद अभी ऐसा ही हो रहा है. संक्षेप में कहें तो पैसा भारत से बाहर जा रहा है. इससे डॉलर की कमी होगी. इस घटना ने डॉलर के मूल्य को बढ़ा दिया है.

यूएस फेड की आक्रामक रणनीति
भारत में भी ऐसा होता है, लेकिन यूएस फेड की बढ़ोतरी ज्यादा आक्रामक रही है. जून से ब्याज दर में संचयी वृद्धि 300 आधार अंक है, जो तीन प्रतिशत है. इसका भारतीय रुपये पर व्यापक प्रभाव पड़ा है. भारतीय व्यापारियों के लिए कम ब्याज दरों पर ऋण प्राप्त करना कठिन हो रहा है. अब वो समय आ चुका है, जब भारत को अपनी कमर कसने की जरूरत है, क्योंकि यूएस फेड चेयरपर्सन ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वे तब तक सख्ती नहीं रोकेंगे, जब तक 2 प्रतिशत का मुद्रास्फीति लक्ष्य हासिल नहीं हो जाता. गौरतलब है कि अमेरिका में महंगाई दर 40 साल के उच्च स्तर 8.3 फीसदी पर है.

भारत कच्चे तेल का एक प्रमुख आयातक
इसके अलावा, भारत कच्चे तेल का एक प्रमुख आयातक भी है, जिसकी 80 प्रतिशत आपूर्ति बाहर से होती है. हम प्रतिदिन लगभग 5.05 मिलियन बैरल की खपत करते हैं और डॉलर के मूल्य में वृद्धि का सीधा मतलब है कि आयात लागत में वृद्धि है, क्योंकि अब हमें उतने ही तेल के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है. हम सेल फोन, लैपटॉप, टीवी सेट और इसी तरह के जरूरी प्रोडक्ट्स के लिए भी कीमत काफी अधिक चुकानी पड़ रही है. इन प्रोडक्ट्स का अधिकतर हिस्सा हम दूसरे देशों से मंगाते हैं, जहां डील डॉलर में ही तय होती है.

भारत का प्रयास
आरबीआई की डॉलर बेचने की जो रणनीति है, उससे विदेशी मुद्रा भंडार 640 बिलियन से घटकर 500 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया है. यह ऐसे समय में हुआ है, जब डॉलर इंडेक्स लगातार बढ़ रहा है. हालांकि, भारत ने हार नहीं मानी है और लगातार प्रयास जारी है. उदाहरण के लिए, हम अपने अंतरराष्ट्रीय व्यापार के डॉलरीकरण को कम करने की दिशा में काम कर रहे हैं. सऊदी अरब के साथ रुपया-रियाल व्यापार, बांग्लादेश के साथ गैर-डॉलर व्यापार इस मुद्दे में सकारात्मक विकास हैं. साथ ही, यह उन निर्यातकों के लिए एक सुनहरा अवसर है जो अब अधिक कीमत पर बिक्री कर सकते हैं.

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