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बायर्स से लेकर मेकर्स तक क्यों घट रहा है डीजल कारों का क्रेज? यह स्टोरी पढ़कर समझ आ जाएगा
2012-13 में पैसेंजर व्हीकल सेगमेंट में डीजल के वाहनों की हिस्सेदारी करीब 54 फीसदी थी, जो आज घटकर 18% रह गई है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
कुछ वक्त पहले तक डीजल कारें, सबसे ज्यादा पसंद की जाती थीं, लेकिन अब उनका क्रेज काफी कम हो गया है. ऐसे में यह सवाल लाजमी है कि क्या आने वाले कुछ सालों में डीजल कारें पूरी तरह बंद हो जाएंगी? एक रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ साल पहले तक देश के ऑटो मार्केट में डीजल कारों की हिस्सेदारी 50% से ज्यादा थी, यानी पेट्रोल से ज्यादा डीजल गाड़ियां खरीदी जाती थीं, अब यह 20 फीसदी से नीचे आ गई है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस फ्यूल टाइप की कारें लोगों को ज्यादा पसंद नहीं आ रही हैं.
सबसे प्रमुख वजह
डीजल कारों के क्रेज में कमी की तमाम वजह हैं, जिसमें सबसे पहली है पेट्रोल-डीजल की कीमतों में घटता अंतर. केंद्र में भाजपा की सरकार बनने से पहले तक पेट्रोल और डीजल की कीमतें इतनी ज्यादा नहीं थीं. इसके अलावा, दोनों की कीमतों में अंतर भी ज्यादा था. यानी डीजल सस्ता था और पेट्रोल महंगा. अब दोनों में कोई खास अंतर नहीं रह गया है. डीजल कारों की मेंटनेंस पेट्रोल व्हीकल की तुलना में ज्यादा रहती है. कम कीमत और ज्यादा एवरेज के चलते लोग डीजल कारों को पसंद किया करते थे, अब जब दोनों की कीमतों में कोई खास अंतर रहा नहीं है, तो लोग लो-मेंटनेंस वाली पेट्रोल गाड़ियों को तवज्जो दे रहे हैं.
बढ़ गई है लागत
डिमांड कम होने से कंपनियों ने प्रोडक्शन कम करना शुरू कर दिया और डीजल व्हीकल का मार्केट शेयर नीचे आना शुरू हो गया. हालांकि, यही एकमात्र कारण नहीं है. एनवायरनमेंट को लेकर की जा रही सख्ती ने भी डीजल वाहनों के मार्केट को प्रभावित किया है. एक तरफ जहां, BS-6 एमिशन नॉर्म्स के अनुरूप डीजल इंजन बनाने की लागत पेट्रोल की तुलना में ज्यादा हो गई है. इसकी वजह से डीजल व्हीकल्स और भी ज्यादा महंगे हो गए हैं. इसके अलावा, दिल्ली-NCR में 10 साल से अधिक पुरानी डीजल कारों पर प्रतिबंध है. इस फैसले ने निश्चित तौर पर नई डीजल कार खरीदने के लोगों के फैसले को प्रभावित किया है. पुरानी कारों की रीसेल वैल्यू भी घट गई है. मार्च 2023 में नए एमिशन नॉर्म्स आएंगे, जिसके बाद डीजल कारों की लागत और बढ़ जाएगी.
इन कंपनियों ने बनाई दूरी
डीजल कारें न बायर्स के लिए फायदे का सौदा रह गई हैं और न ही कंपनियों के लिए, इसलिए उनका प्रोडक्शन कम हो गया है. इतना ही नहीं, कई कंपनियों ने डीजल वैरिएंट बनाने बंद कर दिए हैं. इसमें देश की सबसे बड़ी कार निर्माता मारुति सुजुकी भी शामिल है. कंपनी की नई ग्रैंड विटारा ब्रेजा केवल पेट्रोल में उपलब्ध है. कंपनी ने इसे माइल्ड हाइब्रिड और स्ट्रोंग हाइब्रिड में उतारा है. ब्रेजा का CNG मॉडल भी आने वाला है, लेकिन यह SUV डीजल वैरिएंट में नहीं आएगी. इसी तरह, फॉक्सवैन, स्कोडा और ऑडी ने भारत में डीजल कार बनाना बंद कर दिया है. रेनॉ और निसान ने भी डीजल कारों का उत्पादन कम कर दिया है. टाटा अब कम क्षमता वाले डीजल इंजन पर काम नहीं कर रही है. Honda भी इसी राह पर चलने को तैयार है. अभी City, Amaze और Jazz में Honda डीजल वैरिएंट ऑफर कर रही है.
SUVs में डीजल इंजन पसंद
हालांकि, SUVs डीजल इंजन मार्केट को कुछ हद तक संभाले हुए हैं. पैसेंजर व्हीकल्स में SUVs का शेयर 2016 में महज 18% था, जो FY22 में बढ़कर 40% हो गया है. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि SUVs खरीदने वाले ज़्यादातर लोग अभी भी डीजल इंजन पसंद करते हैं. खासकर जब बात लार्ज SUV खरीदने की आती है, तो डीजल वैरिएंट को अधिक तवज्जो मिलती है. हालांकि, केवल SUVs के भरोसे कंपनियां बाजार में डीजल व्हीकल्स की हिस्सेदारी को नहीं बनाए रख सकतीं. इलेक्ट्रिक वाहनों ने भी डीजल वाहनों के क्रेज को कम किया है. सरकार EV के लिए तेजी से इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने में लगी है.
EV ने किया प्रभावित
एक रिपोर्ट के अनुसार, नीति आयोग ने 2030 तक सभी वाणिज्यिक कारों के लिए 70%, निजी कारों के लिए 30%, बसों के लिए 40% और दो-तिपहिया वाहनों के लिए 80% EV बिक्री का लक्ष्य रखा है. EV कारें अभी पेट्रोल -डीजल कारों की तुलना में महंगी जरूर हैं, लेकिन वो फ्यूल पर होने वाले भारी-भरकम खर्चे को कम कर देती हैं. जिस तरह से पेट्रोल-डीजल के दामों में इजाफा हुआ है, उससे लोग EV पर भी शिफ्ट हो रहे हैं. ऑटो मेकर्स ने भी अब EV पेर ज्यादा फोकस करना शुरू कर दिया है. विदेशी कंपनियां भी भारत के EV बाजार में उतर रही हैं. चीनी की BYD ने भारत में अपनी पहली EV SUV लॉन्च कर दी है.
घटती चली गई हिस्सेदारी
2012-13 में पैसेंजर व्हीकल सेगमेंट में डीजल के वाहनों की हिस्सेदारी करीब 54 फीसदी थी, जो आज घटकर 18% रह गई है. इनमें से 1% शेयर छोटी कारों का है, 16% कॉम्पैक्ट SUV का है. सरकार इस वक्त इलेक्ट्रिक वाहनों अपर जोर दे रही है, उसी को ध्यान में रखते हुए पॉलिसी बना रही है. ऐसे में आने वाले समय में डीजल वाहनों की बाजार में हिस्सेदारी और भी घट सकती है.
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