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दुनिया भर में बैंकों के गिरने से भारत पर पड़ेगा कुछ ऐसा Impact

इस महीने की शुरुआत में अमेरिकी बैंकिंग संकट की शुरुआत हुई जिसके बाद फेडरल इंश्योरेंस डिपॉजिट काउंसिल ने SVB और सिग्नेचर बैंक को कब्जे में ले लिया था.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago

 

हालांकि SVB (सिलिकॉन वैली बैंक) और सिग्नेचर बैंक को अमेरिकी सरकार का समर्थन मिलने और UBS द्वारा Credit Suisse को खरीदे जाने से फाइनेंशियल संकट के बीच थोड़ा आराम तो मिला है लेकिन इस ग्लोबल बैंकिंग संकट का असर काफी लम्बे समय तक रहेगा. इस महीने की शुरुआत में अमेरिका में बैंकिंग संकट की शुरुआत हुई थी जिसके बाद फेडरल इंश्योरेंस डिपॉजिट काउंसिल ने SVB और सिग्नेचर बैंक को अपने कब्जे में ले लिया था और ब्रिटेन में SVB के बिजनेस को HSBC ने खरीद लिया था. यूरोपियन रेगुलेटर्स द्वारा ग्लोबल बैंकिंग सिस्टम में पैदा हुए संकट को काबू करने के लिए एक डील तय की गयी और इसी डील के तहत UBS, संकट में फंसे Credit Suisse को अपने कब्जे में ले रहा है. 

फिलहाल संकट से दूर नजर आ रहा है भारत
फिलहाल भारत इस बैंकिंग संकट से पैदा हुए प्रभावों से दूर नजर आ रहा है. माना जा रहा है कि यह बैंकिंग संकट तब तक भारतीय बैंकिंग सिस्टम या उसकी मैक्रो-इकॉनोमिक स्थिरता को किसी तरह से प्रभावित नहीं कर पायेगा जब तक अमेरिका और यूरोप में और ज्यादा बैंक असफल नहीं हो जाते और यह संकट और बड़ा नहीं हो जाता. लेकिन कुछ एनालिस्ट और इकोनॉमिस्ट का मानना है कि, इस बैंकिंग संकट का प्रभाव अप्रत्यक्ष रूप से भारत की इकॉनमी पर पड़ सकता है और भारत के टेक क्षेत्र, मार्केट और स्टार्टअप्स पर भी देखा जा सकता है. 

भारत के टेक क्षेत्र पर बैंकिंग संकट का प्रभाव
एनालिस्टों की मानें तो अमेरिका और यूरोप में पैदा हुआ बैंकिंग संकट 245 बिलियन डॉलर्स के भारतीय IT बिजनेस प्रोसेस मैनेजमेंट क्षेत्र पर थोड़ा सा भारी पड़ सकता है क्योंकि इस क्षेत्र की 41% कमाई बैंकिंग, फाइनेंशियल सुविधाओं और इंश्योरेंस (BFSI) के क्षेत्र से ही आती है. लेकिन सारा प्रभाव सिर्फ नेगेटिव ही हो यह जरूरी नहीं है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इतने बड़े और मशहूर बैंकिंग संस्थानों के गिरने से न सिर्फ पुराने बिजनेस में कमी आएगी बल्कि इसकी वजह से भविष्य में टेक के क्षेत्र पर होने वाले खर्चों में भी कमी आएगी और डील क्लोजर्स में भी देरी देखने को मिल सकती है. अगर यह बैंकिंग संकट और बढ़ता है तो TCS (टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज), इन्फोसिस (Infosys), विप्रो (Wipro) और LTIमाइंडट्री (LTIMindtree) जैसी कंपनियों पर ज्यादा प्रभाव पड़ने की आशंका है क्योंकि अमेरिकी बैंकिंग संस्थानों में इन कंपनियों की ज्यादा पहुंच है. 

BFSI बन सकता है परेशानी का विषय
इंडस्ट्री प्रमुख Nasscom की मानें तो वित्त वर्ष 2023 में टेक इंडस्ट्री में BFSI का योगदान लगभग 41% का है और BFSI एंटरप्राइज टेक खर्च और देश से बाहर आउट-सोर्सिंग जैसे क्षेत्रों में प्रमुख रूप से शासन करता है. टेक क्षेत्र की कंपनियों की कमाई में नॉर्थ अमेरिका का हिस्सा 50% से ज्यादा है. विप्रो, BFSI से 35% की कमाई करता है जो BFSI से होने वाली सबसे ज्यादा कमाई है. BFSI से TCS को 31.5%, इन्फोसिस को 29.3%, एचसीएल टेक (HCLTech) को 20% और टेक महिंद्रा को 16% की कमाई होती है. टेक महिंद्रा को BFSI से सबसे कम कमाई होती है. 

IT क्षेत्र पर बैंकिंग संकट के पॉजिटिव प्रभाव
लेकिन इस बैंकिंग संकट से IT क्षेत्र पर कुछ पॉजिटिव प्रभाव भी देखने को मिलेंगे. IT कंसल्टेंसी और रिसर्च फर्म एवरेस्ट के फाउंडर Peter Bendor-Samuel की मानें तो TCS और इन्फोसिस जैसी फर्म्स अब कॉस्ट ऑप्टिमाइजेशन प्रोजेक्ट्स को जीतने के लिए इस वक्त सबसे सही स्थान पर हैं क्योंकि इस वक्त टेक के क्षेत्र में एक परेशानी का माहौल बना हुआ है और सिर्फ एक बड़ी डील भी कंपनियों के विकास की रफ़्तार बढाने के लिए काफी है. एचसीएल टेक्नोलॉजी के पूर्व CEO और भारतीय IT क्षेत्र के अनुभवी विनीत नायर का मानना है कि, अब आगे क्या होगा यह कह पाना तो बहुत मुश्किल है लेकिन माहौल में बनी हुई इस अस्थिरता की वजह से IT क्षेत्र के नए प्रोजेक्ट्स पर प्रभाव पड़ेगा. 

भारत के बैंकिंग क्षेत्र पर कुछ ऐसा होगा प्रभाव
एसेट्स में 6%, लोन में 4% और डिपॉजिट में 5% के हिस्से के साथ भारत में विदेशी बैंकों की मौजूदगी बहुत ही कम है. विदेशी बैंक, फॉरेक्स और इंटरेस्ट रेट जैसी डेरिवेटिव मार्केट्स में ज्यादा एक्टिव हैं और यहां उनकी हिस्सेदारी लगभग 50% की है. Credit Suisse को भारत के लिए सीधे तौर पर खतरा नहीं माना जा रहा क्योंकि भारत के बैंकिंग सिस्टम के एसेट्स में इसकी हिस्सेदारी सिर्फ 0.1% की है. भारत में यह 12वां सबसे बड़ा विदेशी बैंक है और इसके एसेट्स की कीमत लगभग 20,700 करोड़ रुपये है. 
 

भारत में कम हैं UBS की शाखाएं
भारत में UBS की शाखाएं भी बहुत कम हैं और देश में मौजूद अपनी इकलौती शाखा को बैंक 2013 में बंद कर चुका है. यह बैंक कैश इक्विटी बिजनेस चलाता था जिसकी वजह से FII (Foreign Institutional Investors) को देश में पार्टिसिपेटरी नोट्स के माध्यम से ट्रांजेक्शन करने का मौका मिलता था. अभी भी भारत की अपनी इकलौती शाखा के लिए Credit Suisse के पास लाइसेंस मौजूद है और वेल्थ मैनेजमेंट, इन्वेस्टमेंट बैंकिंग और ब्रोकरेज सुविधाओं के साथ एक काफी बड़ा बिजनेस भी मौजूद है. साथ ही यह बैंक शेयर्स के बदले ‘हाई-यील्ड प्रमोटर फाइनेंसिंग’ की सुविधा प्रदान करने में भी बहुत एक्टिव रहता है. 

डेरीवेटिव मार्केट का प्रमुख है Credit Suisse
जेफरिज द्वारा की गयी एक स्टडी की मानें तो Credit Suisse की मौजूदगी प्रमुख रूप से डेरिवेटिव मार्केट में है और इसके 60% एसेट्स का फंड लोन के माध्यम से आता है. इतना ही नहीं इस 60% एसेट्स में से 96% हिस्से की अवधि लगभग 2 महीने है. भारत के बैंकिंग सेक्टर में Credit Suisse की योग्यता को देखते हुए एनालिस्टों का मानना है कि काउंटर-पार्टी रिस्क की जांच में थोड़ा बहुत एडजस्टमेंट देखने को मिल सकता है, खासकर डेरिवेटिव मार्केट्स में. 

बैक-ऑफिस जॉब्स पर कुछ ऐसा हो सकता है प्रभाव
UBS द्वारा Credit Suisse को खरीदे जाने के बाद से यह आशंका जताई जा रही है कि ऑपरेशंस के रिस्ट्रक्चर होने और खर्च कम करने के लिए उठाये गए फैसलों से भारत में उसके बिजनेस और खासकर नौकरियों पर पर प्रमुख रूप से प्रभाव पड़ेगा. UBS और Credit Suisse के भारत स्थित टेक्नोलॉजी बैंक ऑफिसों में लगभग 14,000 लोग काम करते हैं. UBS द्वारा अपने परेशान विरोधी बैंक का कब्जा करने और भूमिकाओं में बदलाव के साथ-साथ खर्चा कम करने के लिए उठाये गए फैसलों से इन ऑफिसों पर सबसे बड़ा प्रभाव पड़ेगा. साथ ही, मल्टी-सिटी फैसिलिटीज, जिन्हें ग्लोबल-इन-हाउस सेंटर्स के रूप में जाना जाता है, में छंटनी भी देखने को मिल सकती है.

7000 लोगों की नौकरी को हो सकता है खतरा? 
भारत के 3 शहरों में स्थित अपने टेक्नोलॉजी सेंटर्स में UBS और Credit Suisse के लगभग 7000 लोग काम करते हैं. मर्जर पूरा होने के बाद भूमिकाओं की व्यवस्था में बदलाव किया जाएगा जिससे इन सेंटर्स में काम करने वाले बहुत से लोगों की नौकरी को खतरा हो सकता है क्योंकि UBS, Credit Suisse से सिर्फ बेस्ट टैलेंट को ही चुनकर नौकरी पर रखेगा. भारत में दोनों बैंकों के ऑपरेशंस से अच्छी तरह परिचित एक बैंकर ने कहा कि, उन्हें शायद इतने ज्यादा लोगों की जरूरत नहीं होगी और शायद इसीलिए भूमिकाओं की व्यवस्था में बदलाव अटल है. बैंकिंग की बात करें तो UBS पहले से ही भारत में बहुत कमजोर था और इसलिए जो सबसे बड़ा सवाल सामने आता है वह यह है कि, क्या UBS Credit Suisse के ऑपरेशंस के साथ आगे बढ़ता है या फिर कैपिटल-कम करने की कोशिश के तहत उसमें भी कमी देखने को मिलेगी. 

भारतीय स्टार्ट-अप्स पर बैंकिंग संकट का प्रभाव
जब अमेरिकी रेगुलेटर्स ने सभी जमाकर्ताओं को एक करने का वादा किया तो SVB के जमाकर्ताओं ने चैन की सांस ली थी. फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस द्वारा बनायीं गयी इकाई सिलिकॉन वैली ब्रिज बैंक असफल हो चुके SVB बैंक को अपने कब्जे में लेगा. लेकिन बहुत से स्टार्टअप्स को SVB के गिरने से पैदा हुए प्रभाव थोड़े लम्बे समय तक महसूस होते रहेंगे. इस बैंकिंग संकट ने बाहरी SaaS फर्मों और Y कोम्बिनेटर के पोर्टफोलियो समेत बहुत से भारतीय स्टार्टअप्स को प्रभावित किया है. अमेरिकी रेगुलेटर्स द्वारा बंद हो चुके बैंक के जमाकर्ताओं को उनके पैसे का फिर से एक्सेस देने के बावजूद वह स्टार्टअप्स अपने पैसों को कहीं और ट्रान्सफर करने के प्रमुख तरीके ढूंढ रहे हैं जिनके फंड्स SVB में जमा हैं. भारतीय IT मंत्री राजीव चन्द्रसेखर के अनुसार, SVB में भारतीय स्टार्टअप्स के लगभग 1 बिलियन डॉलर्स जमा हैं. 

स्टार्टअप इकोसिस्टम पर कुछ ऐसा होगा प्रभाव 
SVB के गिरने से घरेलु स्टार्टअप इकोसिस्टम में अस्थायी रूप से लिक्विडिटी की कमी और फंड्स इकट्ठा करने में चुनौतियों के साथ-साथ हजारों कर्मचारियों की छंटनी भी देखने को मिल सकती है. साथ ही, यह ख्याल भी सबको परेशान कर रहा है कि, क्या नयी मैनेजमेंट उसी प्रकार से स्टार्टअप्स को समर्थन देगी जिस प्रकार से SVB पहले देता आया था? अपनी फ्लेक्सिबिलिटी, स्पेशल फायदों और कस्टमाइज्ड सोल्यूशंस की वजह से SVB टेक स्टार्टअप्स का पसंदीदा बैंक बन गया था. 

भारतीय मार्केटों पर ऐसा होगा बैंकिंग संकट का प्रभाव
ग्लोबल बैंकिंग संकट की वजह से मार्केटों में प्रमुख रूप से एक नेगेटिव भावना फैल गयी और ज्यादातर कैपिटल सीधा सेफ-हेवेन्स में पहुंच गयी. लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो ब्रोकरेज फर्म आनंद राठी का कहना है कि, SVB के साथ हुई इस घटना से भारतीय शेयर मार्किट पर पॉजिटिव प्रभाव पड़ सकता है. इन घटनाओं की वजह से इंटरेस्ट रेट के दृष्टिकोण में सुधार हो सकता है. इससे इंडियन इक्विटीज की कीमत तय करने वाले प्राइज-टू-अर्निंग्स के मल्टीपल्स में वृद्धि देखने को मिल सकती है. हमें अभी भी विश्वास है कि इंडियन इक्विटी मार्केट लगभग 12% रिटर्न्स हासिल कर सकती है. घरेलु ब्रोकरेज फर्म ने यह भी कहा कि, संभावित तौर पर RBI (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) अप्रैल में होने वाली अपनी MPC (मोनेटरी पॉलिसी कमेटी) की मीटिंग में एक ज्यादा नर्म मोनेटरी पॉलिसी अपना सकता है जैसा फेडरल रिजर्व अपनी फेडरल ओपन मार्केट कमेटी की मीटिंग में करेगा. इस वक्त देश में इंटरेस्ट रेट का माहौल पहले से ज्यादा अच्छा है. 
 

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