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क्या है ‘सेंगोल’ का इतिहास, क्यों मच रहा है इतना बवाल?

क्या अब सरकारें हर बार सत्ता बदलने पर एक अलग ‘सेंगोल’ स्थापित करेंगी? यह भी अपने आप में एक बहुत ही दिलचस्प कहानी होगी.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 11 months ago

Dr SS Mantha, Former Chairman AICTE

तमिल का ‘सेंगोल’ जिसे अंग्रेजी में Sceptre या फिर Staff भी कहा जाता है, पिछले कुछ समय से खबरों में बना हुआ है और आने वाले समय में भी यह चर्चा का विषय बना रहेगा क्योंकि यह सत्ता, संप्रभुता और न्याय का प्रतीक है. दुनिया भर में मौजूद बहुत सी संसदों में एक औपचारिक छड़ी मौजूद होती है जिसे संसदीय सत्रों के दौरान सत्ता के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. संसद में मौजूद यह छड़ी, विधायिका की शक्ति को दर्शाती है और अक्सर इसे स्पीकर या फिर पीठासीन अधिकारी के सामने ही रखा जाता है. अब सवाल उठता है कि ‘सेंगोल’ की स्थापना होने पर आखिर इतनी ज्यादा चीख-पुकार क्यों मची हुई है? क्या यह लोकतंत्र की ताकत को नहीं दर्शाता? क्या यह सालों पहले खत्म हो चुकी तानशाही का डर है या फिर ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि शायद लोगों को लगता है कि ‘सेंगोल’ की स्थापना से इतिहास बदल जाएगा या नया इतिहास लिखा जाएगा. 

इस वक्त ही क्यों मशहूर हुआ ‘सेंगोल’?
‘सेंगोल’ ने अचानक आम आदमी का ध्यान तब खींचा है जब रूलिंग पार्टी के द्वारा इसे सम्मान दिया गया, इसकी प्रशंसा की गयी और इसे सत्ता हस्तांतरण के चिन्ह के रूप में अपना लिया गया. इतिहास और पौराणिक कथाओं के अनुसार बहुत सी संस्कृतियों में राजदंड को सत्ता के चिन्ह, नेतृत्व और अलौकिक सत्ता के रूप में सम्मान दिया जाता रहा है. वह ऐसी बहुत सी आकर्षक कहानियां सुनाते हैं जो उनके समय के राजदंडों की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक प्रसंगों से जुड़ी हुई हैं. इतिहास को गौर से देखने पर पता चलता है कि क्यों हमारे ‘सेंगोल’ को उसकी उचित जगह और सम्मान मिलना चाहिए. 

ब्रिटिश शासन से मिस्त्र की कहानियों तक
ब्रिटिश शासक के पास भी एक औपचारिक राजदंड है जिसे ‘Sceptre With The Cross’ कहा जाता है और इसे पारंपरिक तौर पर राज्याभिषेक के दौरान ही इस्तेमाल किया जाता है. यह ब्रिटेन के ताज से जुडी ज्वेलरी में से एक है और यह शासक की लौकिक सत्ता का प्रतीक माना जाता है. इसके अलावा आयरिश पौराणिक कथाओं में भी सोने के राजदंड के बारे में पढ़ने को मिलता है और यह Bolg लोगों द्वारा आयरलैंड लाया गया था. इसकी कथित जादुई शक्तियों की मदद से ही आयरिश राजाओं ने अपने लिए अधिकारों और वैधता की मांग की थी. इसी तरह मिस्त्र की पौराणिक कहानियों में अनूबिस, मृतकों के देवता, और पुनर्जन्म के देवता Osiris को भी राजदंडों के साथ दिखाया गया है, जो एक लम्बी छड़ी होती है और इस पर किसी न किसी जानवर का सिर लगा हुआ होता था. यह राजदंड अलौकिक सत्ता और सुरक्षा के प्रतीक के रूप में जाने जाते थे. 

ग्रीक से लेकर जापान तक
पौराणिक ग्रीक कथाओं में सुनने को मिलता है कि दवाओं और उपचार के देवता Asclepius के पास भी एक राजदंड हुआ करता था जिसपर घुमावदार तरीके से सांप लिपटा हुआ था. इसके साथ ही ग्रीक कथाओं में भगवानों के राजा Zeus को भी एक राजदंड पकड़े दिखाया जाता है. इस राजदंड के ऊपरी तरफ चील है जो Zeus की परम सत्ता और भगवानों और मनुष्यों के ऊपर उनके प्रभुत्व को दर्शाता है. पुराने मिस्त्र में फैरो के पास एक औपचारिक राजदंड हुआ करता था जिसे ‘Heqa’ कहा जाता था और यह साम्राज्य के ऊपर उनकी सत्ता को दर्शाता था. रोमन कैथलिक चर्च के पोप के पास भी एक औपचारिक राजदंड होता है जिसे ‘Papal Ferula’ या ‘Papal Cross’ के नाम से जाना जाता है. यह राजदंड पोप की आध्यात्मिक सत्ता और चर्च के प्रमुख के रूप में उनकी भूमिका को दर्शाता है. जापान में सम्राट के पास एक राजदंड होता है जिसे ‘Shaku’ या ‘Sceptre of Chrysanthemum’ कहा जाता है. यह जापान के तीन पवित्र खजानों में से एक है और यह जापान के साम्राज्यवाद और वैधता को दर्शाता है. 

मंगोलों से लेकर यूनिवर्सिटीज तक
सिर्फ इतना ही नहीं, चंगेज खान और बाद के खानों समेत मंगोल शासकों के पास भी एक छड़ी हुआ करती थी जिसे वह ‘Noyan’ या ‘Sceptre Of Authority’ कहते थे. इससे मंगोल साम्राज्य पर उनके नेतृत्व और नियंत्रण का पता चलता था. पुराने मेसोपोटामिया में Uruk के राज्य के प्रमुख पुजारी के पास एक राजदंड हुआ करता था जिसे ‘Mace Of Anu’ कहा जाता था और यह उनकी धार्मिक सत्ता और भगवान् से उनके जुड़ाव को दर्शाता था. भारतीय इतिहास में राष्ट्रकूट, पाल, चोल, मुगल, अहोम, मराठा, विजयनगर और बहमनी जैसे विभिन्न साम्राज्यों और राजवंशों के पास अपने-अपने राजदंड हुआ करते थे जो शाही सत्ता और संप्रभुता को दर्शाते थे. हिन्दू शास्त्रों और पौराणिक कथाओं में भी ऐसे बहुत से उदाहरण देखने को मिलते हैं. मृत्यु और न्याय के देवता ‘यम’ को भी अक्सर एक छड़ी पकड़े दर्शाया जाता है जिसे ‘दंड’ कहा जाता है. यह छड़ी न्याय के देवता के रूप में उनकी भूमिका को प्रदर्शित करती है. साथ ही, हर यूनिवर्सिटी के जुलूस में भी एक राजदंड देखने को मिलता है जिसे रजिस्ट्रार या परीक्षा नियंत्रक के पास देखा जा सकता है. 

सिर्फ प्रतीक है सेंगोल?
हो सकता है कि ‘सेंगोल’ सिर्फ एक प्रतीक हो लेकिन प्रतीकों में इतनी शक्ति होती है कि वह लोगों को प्रेरणा दे सकते हैं, उन्हें बदल सकते हैं, ठीक कर सकते हैं और अनिश्चितताओं के समय पर उन्हें बेहतर क्लैरिटी प्रदान कर सकते हैं. प्रतीक सिर्फ ऊपरी प्रतिनिधित्व के बारे में नहीं होते बल्कि इनसे, ज्यादा गहरी सच्चाई का पता चलता है और यह लोगों को ज्यादा जागरूक होने के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरणा देते हैं. कोई भी व्यक्ति यह सवाल पूछ सकता है कि टेक्नोलॉजी से चलने वाली दुनिया में प्रतीकों और चिन्हों पर विश्वास करने की क्या जरूरत है? गार्डन में खड़ा बांज या बलूत का पेड़ ताकत, स्थिरता और लचीलेपन को दर्शाता है. इसकी जड़ें जमीन में बहुत गहरे तक उतर जाती हैं और इनकी बदौलत यह जमीन पर आराम से खड़ा रहता है और इसकी टहनियां आसमान की तरफ बढ़ती जाती हैं. इस पेड़ से हमें सबक मिलता है कि हमें अपने लक्ष्य आसमान जितने ऊंचे जरूर तय कर लेने चाहिए लेकिन हमारी जड़ें जमीन से जुड़ी रहनी चाहिए. यही प्रतीकवाद है. अगर एक जर्जर वातावरण में भी गुलाब की एक कली मिलती है तो आस-पास के खराब वातावरण के बावजूद खूबसूरती और जीवनशक्ति का प्रसार होता है और इससे लचीलेपन और उम्मीद के बारे में पता चलता है. 

हर बार बदलेगा ‘सेंगोल’?
हर संस्कृति द्वारा बहुत सी चीजों को कभी-कभी अनोखे प्रतीकवाद और महत्त्व के साथ भर दिया जाता है और इनसे ही उन संस्कृतियों के विभिन्न विश्वासों और उनके शासन के बारे में पता चलता है. फिर भी यह बहुत ही आकर्षक बात है कि अपनी खोज के बावजूद भी यह सभी सत्ता और वैधता को दर्शाते हैं और कभी-कभी इनके साथ प्रतीकवाद की बहुत ही आकर्षक कहानियां भी जुड़ी हुई होती हैं. साथ ही अब एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि क्या अब सरकारें हर बार सत्ता बदलने पर एक अलग ‘सेंगोल’ स्थापित करेंगी? यह भी अपने आप में एक बहुत ही दिलचस्प कहानी होगी.
 

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