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आखिर Banks में पैसा जमा क्यों नहीं करा रहे लोग, क्या है वजह और क्या होगा असर?
पिछले कुछ समय से बैंक डिपॉजिट में कमी से जूझ रहे हैं. यानी कि लोग अब बैंकों में पैसा जमा कराने में अधिक दिलचस्पी नहीं दिखा रहे.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 2 weeks ago
बैंक (Banks) आजकल एक नई समस्या का सामना कर रहे हैं. बैंकों में पैसा जमा (Bank Deposit) कराने वालों की संख्या में कमी आई है या कह सकते हैं कि लोगों ने अब बैंकों में अपना पैसा डिपॉजिट करना कम कर दिया है. देश के अधिकांश बैंक इस समस्या से जूझ रहे हैं, जो उनके भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं. एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स (S&P Global Ratings) ने इस स्थिति पर चिंता जताई है. साथ ही उसने यह भी कहा है कि अगर यही हालात बने रहते हैं, तो लोगों के लिए लोन लेना कठिन हो जाएगा.
चिंतित बैंकों ने कस ली कमर
बैंक पिछले कुछ समय से घटते डिपॉजिट की समस्या से जूझ रहे हैं. S&P ने भले ही इस पर अभी चिंता जाहिर की हो, लेकिन बैंकों को बिगड़ती स्थिति का आभास है. इसलिए उन्होंने इस दिशा में काम भी शुरू कर दिया है. कुछ सरकारी बैंकों ने इसके लिए बाकायदा अलग टीम तैयार की है, जिसका काम काम केवल घटते डिपॉजिट को बढ़ाना है. इसके अलावा भी बैंक लोगों को पैसा जमा कराने के लिए अलग-अलग तरह से प्रेरित करने में जुटे हैं.
Loan लेने वालों की संख्या बढ़ी
बैंक डिपॉजिट भले ही घट रहा है, लेकिन बैंकों से लोन लेने वालों की कोई कमी नहीं है. बैंकों की लोन ग्रोथ लगातार बढ़ रही है. एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स का कहना है कि डिपॉजिट में लगातार कमी से बैंक लोन संबंधी नियमों को सख्त बना सकते हैं और लोगों के लिए लोन लेना वर्तमान जितना सरल नहीं रह जाएगा. दरअसल, बैंकों में लोग जो पैसा जमा करते हैं, बैंक उसी को कर्ज के रूप में देकर ब्याज से मुनाफा कमाते हैं. ऐसे में अगर बैंकों में पैसा ही जमा नहीं होगा, तो उनके पास लोन देने के लिए भी पर्याप्त धन नहीं होगा. लिहाजा, लोन के आसान नियमों को कड़ा कर देंगे.
बैंक ऐसा करने को होंगे मजबूर
चालू वित्त वर्ष में भारतीय बैंकों की लोन वृद्धि, प्रॉफिटेबिलिटी और संपत्ति की गुणवत्ता मजबूत रहेगी. हालांकि, एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स का कहना है कि बैंक अपनी लोन वृद्धि को धीमा करने के लिए मजबूर हो सकते हैं, क्योंकि जमा राशि समान गति से नहीं बढ़ रही है. एशिया-प्रशांत में बीते वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के बैंकिंग अपडेट में S&P ग्लोबल रेटिंग्स की निदेशक एसएसईए निकिता आनंद ने कहा चालू वित्त वर्ष में यदि जमा वृद्धि, विशेष रूप से खुदरा जमा की गति धीमी रहती है, तो क्षेत्र की मजबूत ऋण वृद्धि 16% से घटकर 14% रह जाएगी.
लोन-टू-डिपॉजिट रेश्यो में गिरावट
आनंद ने कहा कि प्रत्येक बैंक में लोन-टू-डिपॉजिट रेश्यो में गिरावट आई है. लोन वृद्धि डिपॉजिट वृद्धि की तुलना में दो-तीन प्रतिशत अधिक है. लोन वृद्धि सबसे ज्यादा प्राइवेट सेक्टर के बैंकों में हुई है. इनमें यह लगभग 17-18 प्रतिशत रही है. जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक यानी कि सरकारी बैंकों में यह 12-14 प्रतिशत देखी गई है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि डिपॉजिट के घटने से बैंकों को लोन देने में परेशानी होगी. लिहाजा, वे कर्ज देने की प्रक्रिया को मुश्किल कर सकते हैं. इसका मतलब है कि इस बात की कोई गारंटी नहीं रह जाएगी कि आवेदन करने वालों को लोन मिल ही जाए.
इस वजह से घट रहा आकर्षण
बैंकिंग सेक्टर्स से जुड़े एक्सपर्ट्स का मानना है कि डिपॉजिट में कमी की एक सबसे बड़ी वजह है इन्वेस्टमेंट के ढेरों विकल्प. उनके अनुसार, बैंकों में पैसा रखना अब उतना आकर्षक नहीं रहा है. सेविंग अकाउंट पर बैंक साधारण ब्याज देते हैं. बैंक में खुलाए जाने वाले बचत खाते पर सामान्यतः 3 से 5 प्रतिशत तक ब्याज मिलता है. कुछ प्राइवेट और स्मॉल फाइनेंस बैंक बचत खाते पर 7% तक इंटरेस्ट रेट भी ऑफर करते हैं, लेकिन यह डिपॉजिट रकम की सीमा पर निर्भर करता है. वहीं, म्यूचुअल फंड या कुछ दूसरी इन्वेस्टमेंट स्कीम्स में इससे ज्यादा अच्छा रिटर्न मिल जाता है. इसलिए लोग बैंकों में पैसा रखने के बजाए अब उसे म्यूचुअल फंड आदि में निवेश करने लगे हैं. इसी तरह, शेयर बाजार की तरफ भी लोगों का रुझान तेजी से बढ़ा है, निसंदेह बाजार में जोखिम बैंक डिपॉजिट से ज्यादा है. मगर रिटर्न की संभावना भी ज्यादा रहती है. उनका कहना है कि बैंकों को लोगों को आकर्षित करने के लिए कुछ नया करना होगा.
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