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13.5% GDP पर पहुंचने की पीछे की कहानी, क्यों अर्थशास्त्री मान रहे हैं इसको कॉस्मेटिक नंबर?
विश्व बैंक और इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड के हिसाब से भारत की इकोनॉमी विश्व की पांचवी सबसे बड़ी इकोनॉमी हो गई है और इसने ब्रिटेन को भी पीछे छोड़ दिया है.
अभिषेक शर्मा 1 year ago
नई दिल्लीः पहली तिमाही के नतीजों में भारत की जीडीपी ने 13.5 फीसदी की वृद्धि पाई है. विश्व बैंक और इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड के हिसाब से भारत की इकोनॉमी विश्व की पांचवी सबसे बड़ी इकोनॉमी हो गई है और इसने ब्रिटेन को भी पीछे छोड़ दिया है. लेकिन क्या है इसके पीछे की असली कहानी और वित्त वर्ष 2022-23 में यह जीडीपी 7 फीसदी के पार रह पाएगी? इकोनॉमिक एक्सपर्ट की मानें तो जीडीपी के यह नंबर्स काफी कॉस्मेटिक हैं, क्योंकि इनमें कई बड़ी बातों को नजरअंदाज किया गया है.
इससे है चिंता
एक्सपर्ट की मानें तो फिर जीडीपी के इन आंकड़ों में तेजी बरकरार नहीं रहेगी, क्योंकि उच्च ब्याज दर और महंगाई की वजह से यह अपनी रफ्तार की लय खो देगी. भारतीय स्टेट बैंक की रिपोर्ट बताती है कि यह जीडीपी का आंकड़ा जितना कुछ बता रहा है, उससे कहीं ज्यादा छुपा रहा है. यह आईआईपी और महंगाई को छुपा रहा है जिसके लिए आत्मनिरीक्षण करना जरूरी है. एसबीआई का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में जीडीपी 6.8 फीसदी रहेगी.
फिर भी भारत बनेगा 2029 तक तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी
हालांकि एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत 2029 तक तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बन जाएगा. भारत का अभी ग्लोबल जीडीपी में 3.5 फीसदी का हिस्सा है और जो 2014 में 2.6 फीसदी था और इसके 2027 में चार फीसदी पार कर जाने की क्षमता है. यह फिलहाल जर्मनी का स्तर है.
2014 से आया 7 स्थान ऊपर
2014 में भारत जीडीपी के मामले में 10वें पायदान पर था. अब ये 7 स्थान ऊपर है. एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत 2027 में जर्मनी और 2029 में जापान से आगे निकल जाएगा. ऐसे में इकोनॉमी पर अगर कोरोना जैसी महामारी की मार ज्यादा नहीं पड़ती है तो फिर ये आगे की ओर जाने में कामायाब रहेगी.
अर्थशास्त्रियों को क्यों लगता है नंबर हैं कॉस्मेटिक
BW Businessworld ने जब देश के कई प्रमुख अर्थशास्त्रियों से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि उनको जीडीपी के पहली तिमाही के नंबर कॉस्मेटिक लगते हैं. यस बैंक के चीफ इकोनॉमिस्ट इंद्रनील पान ने कहा, "कोविड के कारण पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही का आंकड़ा काफी कम था. तिमाही आधार पर ही इकोनॉमी को देखना चाहिए और इस हिसाब से यह इकोनॉमी 13.5 फीसदी के बजाए 10 फीसदी से नीचे ग्रो कर रही है. आरबीआई द्वारा वित्त वर्ष की जीडीपी के लिए तय 7.2 फीसदी का टारगेट भी पाना मुश्किल लग रहा है और उसे भी इसको संशोधित करना होगा."
विकास की गति कमजोर है
साथ ही कई रिपोर्टों और प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने पहले ही भविष्यवाणी कर दी है कि 13.5 फीसदी की वृद्धि निश्चित रूप से गति खो देगी क्योंकि विकास की गति कमजोर बनी हुई है. इस समय, निजी उपभोग व्यय में वृद्धि चिंता का विषय है. यद्यपि सुधार के कुछ संकेत थे, फिर भी निजी उपभोग व्यय पिछली तिमाही की तुलना में 2 फीसदी कम था. इसके अलावा, निजी उपभोग व्यय Q4 FY20 की तुलना में सिर्फ 6 फीसदी अधिक था, एक तिमाही जो महामारी से प्रभावित नहीं थी.
6 फीसदी विकास दर रहने से बनेगी बात
हालांकि, फाइनेंशियल सर्विसेज रिस्क के पार्टनर और नेशनल लीडर विवेक अय्यर का मानना है कि आने वाली तिमाहियों में ग्रोथ की रफ्तार कम नहीं होगी. उन्होंने कहा, “विकास दर वह संख्या नहीं होगी जो हमने अतीत में देखी है. हमें संभवत: लंबी अवधि में 5 फीसदी से 6 फीसदी की वृद्धि दर से समायोजित होने की आवश्यकता है, क्योंकि यह अधिक टिकाऊ प्रतीत होता है. दिशात्मक रूप से देश सही रास्ते पर है और एक सतत संतुलित विकास दर संख्या से हमें लगातार रास्ते पर बने रहने में मदद मिलनी चाहिए.”
चुनौतियां
इस बारे में बात करते हुए कि क्या हेडलाइन जीडीपी जितना खुलासा करती है, उससे ज्यादा छिपाती है, यस बैंक के पान को इसका जवाब देना बहुत मुश्किल मुद्दा लगता है. उन्होंने कहा कि यह अज्ञात नहीं है कि सकल घरेलू उत्पाद अर्थव्यवस्था के ज्यादातर संगठित खंड पर कब्जा कर लेता है और अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र का प्रतिनिधित्व अपेक्षाकृत कम है.
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि यह नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के लागू होने के बाद भी है, जिससे मोटे तौर पर अर्थव्यवस्था को औपचारिकता की ओर धकेलने की उम्मीद थी.
वित्त वर्ष 2023 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (स्थिर मूल्य पर) बढ़कर 36.85 ट्रिलियन रुपये हो गया, जबकि वित्त वर्ष 2020 की पहली तिमाही में 35.60 ट्रिलियन रुपये के मुकाबले 3 वर्षों में 3.5 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी. इसके अलावा, वित्त वर्ष-2023 की पहली तिमाही में 13.5 प्रतिशत की वृद्धि आरबीआई के 16.2 फीसदी के अनुमान से कम है.
आरपी गुप्ता, अर्थशास्त्री और लेखक ने कहा, “इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, जीडीपी की वार्षिक वृद्धि दर 6.5-7 फीसदी प्राप्त करने में कई चुनौतियां हैं, जैसा कि आरबीआई और कई विशेषज्ञों द्वारा अनुमान लगाया गया है. उच्च मुद्रास्फीति, बढ़ते व्यापार घाटे और गिरते रुपये ने जोखिम को बढ़ा दिया है. पिछले दो वर्षों में छोटे व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, जिससे श्रम भागीदारी अनुपात (LPR) और रोजगार में गिरावट आई है.”
गुप्ता ने कहा कि कम विकास दर के साथ गिरते एलपीआर और रोजगार की समस्या को हल करना एक बड़ी चुनौती है; जिसे सर्वोच्च प्राथमिकता की आवश्यकता है. गरीब वर्ग को अंतरिम राहत के रूप में जब तक भारत रोजगार संकट का समाधान नहीं करता, तब तक उच्च सामाजिक खर्च की आवश्यकता है. हालांकि इससे सरकारी निवेश पर असर पड़ सकता है।.दुर्भाग्य से, निजी निवेश इतना उत्साहजनक नहीं है.
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