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क्या दो साल में संभव हैं अमेरिका जैसी सड़कें? इन सवालों में छिपा है जवाब
देश के अधिकांश राज्यों की सड़कें बदहाल हैं. इन बदहाल सड़कों की वजह से हादसे और उसमें होने वाली मौतों की संख्या बढ़ी है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का दावा है कि अगले दो सालों में भारत की सड़कें अमेरिका जैसी होंगी. उनका कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सड़कों के विकास के लिए धन की कोई कमी नहीं. कुछ साल पहले जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अमेरिकी यात्रा पर गए थे, तब उन्होंने भी दावा किया था कि प्रदेश की सड़कें यूएस से ज्यादा अच्छी हैं. हालांकि, उनके दावों की हकीकत आज बड़े-बड़े गड्डों के रूप में दिखाई दे रही है. करोड़ों खर्च करने के बाद भी प्रदेश के हाल बेहाल हैं, राजधानी भोपाल की सड़कें ही शिवराज सिंह के दावे की पोल खोल रही हैं. अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या नितिन गडकरी जो कह रहे हैं, वो संभव है?
क्या बदलेगी ये व्यवस्था?
देश के अधिकांश राज्यों की सड़कें बदहाल हैं. इन बदहाल सड़कों की वजह से हादसे और उसमें होने वाली मौतों की संख्या बढ़ रही है. 2020 में सड़कों पर गड्ढ़ों की वजह से तीन हजार से ज्यादा एक्सीडेंट हुए थे. सरकार ने संसद में बताया था कि 2019 में गड्ढ़ों के चलते 4,775 और 2020 में कुल 3,564 हादसे हुए थे. अमेरिका से बेहतर सड़कों का दावा करने वाले शिवराज सिंह चौहान के राज्य की राजधानी भोपाल में कुछ वक्त पहले 8 प्रमुख सड़कों पर ही 1024 बड़े-बड़े गड्ढे पाए गए थे. जिनकी वजह से हर रोज कम से कम 50 वाहन चालक हादसे का शिकार हो रहे थे. अन्य राज्यों का हाल भी इससे अलग नहीं है. ऐसे क्या महज दो सालों में यह व्यवस्था बदली जा सकती है? बता दें कि सड़कें बनाने का काम केंद्र और राज्य मिलकर करते हैं.
हर साल बढ़ रहा खर्चा
देश में सड़कों पर होने वाला खर्चा लगातार बढ़ता जा रहा है. Statista की रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 से लेकर अब तक रोड और हाईवे के लिए बजट आवंटन में हर साल इजाफा हुआ है. 2017 में 411.9 अरब रुपए आवंटित किए गए, 2018 में यह रकम बढ़कर 507.5 अरब, 2019 में 675.5 अरब, 2020 में 683.7 अरब और 2022 में 1,212.5 अरब रुपए हो गई है. अनुमान है कि अगले साल यानी कि 2023 में यह आंकड़ा 1.87 ट्रिलियन रुपए हो जाएगा. यानी सड़कों और राजमार्गों के निर्माण और रखरखाव पर हर साल पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है, लेकिन क्या खर्चे के अनुपात में परिणाम मिल रहा है? ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है.
क्वालिटी का क्या?
वहीं, अमेरिका में सड़कों पर होने वाले खर्चे की बात करें, तो 2019 में स्टेट और लोकल गवर्नमेंट ने हाईवे और सड़कों पर करीब 155 अरब डॉलर खर्च किए थे. इसके बाद से इसमें इजाफा होता रहा है. अब जो बाइडेन प्रशासन की योजना सड़कों और पुल के लिए 115 बिलियन डॉलर खर्च करने की है. हालांकि, अमेरिका की सड़कें भी खास ज्यादा अच्छी नहीं हैं, लेकिन भारत की तुलना में फिर भी बेहतर हैं. इस बात में कोई दोराय नहीं है कि भारत में सड़कों का जाल तेजी से फैल रहा है. नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया हर साल लगभग 5 लाख किलोमीटर सड़कें तैयार कर सकती है. लेकिन सड़कों की गुणवत्ता अहम मुद्दा है. हाल ही में बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे की गुणवत्ता की पोल खुल गई थी. PM नरेंद्र मोदी के उद्घाटन करने के महज 5 दिन बाद पहली बारिश में एक्सप्रेस-वे की सड़क कई जगह धंस गईं और सड़क में करीब 1 फुट गहरा गड्ढा हो गया.
क्या संभव है सुधार?
देश की बदहाल सड़कों की सबसे बड़ी वजह है करप्शन. एक रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश में साढ़े चार करोड़ रुपए की लागत से बनी सड़क महज 13 माह में ही उखड़ गई. वहीं, छत्तीसगढ़ में 7 करोड़ रुपए की लगत से बनी सड़क में कुछ महीनों में ही 63 गड्ढे हो चुके हैं. ये महज दो उदाहरण हैं, ऐसी खबरें हर राज्य से आती हैं. आरोप लगते रहे हैं कि PWD यानी पब्लिक वेलफेयर डिपार्टमेंट और कांट्रेक्टर्स की मिलीभगत से सड़कों में भ्रष्टाचार का खेल होता है. सड़कों का टेंडर पाने वाले दिन ब दिन अमीर होते जाते हैं, और सड़कें हर रोज बदहाल. भारत की सड़कों पर ट्रैफिक का बोझ अमेरिका जैसे देशों की तुलना में ज्यादा है, इसलिए यहां सड़कों की गुणवत्ता ज्यादा बेहतर होनी चाहिए, लेकिन हो इसके उलट रहा है. ऐसे में क्या सिर्फ दो सालों में इस स्थिति को सुधारा जा सकता है?
यहां हैं सबसे अच्छी सड़कें
दुनिया में सबसे बेहतर सड़कों के मामले में सिंगापुर पहले स्थान पर है. एक रिपोर्ट में 2006 से 2019 के उपलब्ध डेटा के हवाले से बताया गया है कि रोड क्वालिटी में सिंगापुर दुनिया में पहले नंबर पर है. इसके बाद नीदरलैंड और स्विट्ज़रलैंड का नंबर आता है. इस लिस्ट में अमेरिका 17वें और भारत 46वें नंबर पर है. सिंगापुर ने साल 2020 के बजट में मौजूदा सड़कों के रखरखाव के लिए 5.2 अरब का बजट निर्धारित किया था. यहां सरकार द्वारा सड़कों की गुणवत्ता पर खास ध्यान दिया जाता है. क्या महज दो सालों में हम अपने सुस्त विभागों, लापरवाह अधिकारियों और कमाई पर ध्यान देने वाले ठेकेदारों की आदत को सुधार सकते हैं? ये कुछ सवाल हैं जो नितिन गडकरी के दावे के हकीकत बनने की राह में बाधा हैं, यदि इन बाधाओं को दूर कर लिया जाता है, तो संभव है अगले दो सालों में देश की सड़कों की सूरत बदल जाए. हालांकि, इसकी संभावना कम ही नज़र आती है.
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