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आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से भागने की बजाए उससे व्यवहारिक होने की जरूरत है- सौरभ द्विवेदी
सौरभ द्विवेदी ने कहा कि सुदूर गांव में बैठा कोई भी शख्स क्या पढ़ना चाहता है और क्या देखना चाहता है इसका अंदाजा एआई नहीं लगा सकता है बल्कि इंसान ही सोच सकता है.
ललित नारायण कांडपाल 8 months ago
समाचार4मीडिया के मीडिया संवाद 2023 कार्यक्रम में कई जाने-माने पत्रकारों ने ‘मीडिया की चुनौती’ विषय पर अपनी बात रखी. इस मौके पर इंडिया टुडे हिंदी और लल्लनटॉप के एडिटर-इन-चीफ सौरभ द्विवेदी ने अपनी बात कहते हुए कहा कि एआई उन लोगों रिप्लेस करेगा जो उसके साथ व्यवहारिक नहीं होंगे. उन्होंने कहा कि एआई की कल्पनाशीलता इंसानों से ज्यादा कभी नहीं हो सकती है. एक इंसान ही समझ सकता है कि आखिर कानपुर, बलिया, लखनऊ का पाठक और दर्शक क्या देखना चाहता है.
सौरभ बोले पढ़ना क्यों जरुरी है
इंडिया टुडे हिंदी और लल्लनटॉप के एडिटर-इन-चीफ सौरभ द्विवेदी ने कहा कि पढ़ना ही जरूरी है क्योंकि ये मान लिया गया है कि जो दिखता है वही बिकता है, आदि. अगर आप दिखते हैं तो उसे उसकी तात्कालिक सफलता माना जा सकता है लेकिन वो कुछ दिन तक चल सकता है, लेकिन ज्यादा नहीं चलेगा. वो कुछ ही दिन तक चल सकता है। लेकिन आखिरकार आपको पढ़ना होगा, पढ़कर जब आप बोलेंगे तो उसमें गुरुत्व होगा. वरना फर्जी गुरूर होगा. हमने लल्लटॉप में जो सीखा है, हम इसलिए कर पा रहे हैं क्योंकि हमसे पहले के जो संपादक हैं उन्होंने अपने तजुर्बों को लिपिबद्ध किया हमने उनका पढ़ा उससे हमें राजनीतिक विवेक मिला.
क्या आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस हमें रिप्लेस कर देगा
सौरभ द्विवेदी ने कहा कि मैं यहां चुनौतियों पर कितनी बात कर पाउंगा इस पर मुझे संशय है. भारतीय भाषा परिवार के न्यूजरूम की सबसे बड़ी चुनौती ये होनी चाहिए कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को कैसे अडॉप्ट करने वाली है. इसमें से कई लोगों को ये लगता है कि एआई उन्हें रिप्लेस कर देगा. मेरा उस पर मानना है कि वो हमें रिप्लेस नहीं करेगा, वो उसे रिप्लेस करेगा जो उसे नहीं सीखेगा. जो एआई के साथ व्यवहारिक बनेगा उसके साथ ऐसा नहीं होगा. अंतत मशीन वही करेगी जो हम कहेंगे. अगर कोई एक आदमी आपका 15 डिस्क्रिप्शन लिखता है तो चैट जीपीटी उसे 10 मिनट में ही लिखता है. चैटजीपीटी कल्पनाशीलता के बारे में आपका मुकाबला नहीं कर सकता है.
इंसानी कल्पनाशीलता की कोई सीमा नहीं
सौरभ द्विवेदी ने कहा कि कानपुर. बलिया दिल्ली, लखनऊ का पाठक क्या चाहता है उसे वही जानता है. इंडीविजुअल क्रियेटर जिन्हें या तो आप प्यार कर सकते हैं या फिर आप उन्हें नफरत कर सकते हैं. लेकिन आप उन्हें नजरंदाज नहीं कर सकते हैं. ये सरकारें भी समझ रही हैं, मीडिया हाउस भी समझ रहे हैं हमें ऐसे इकोसिस्टम को बनाने की जरूरत है जहां सभी का ध्यान रखा जा सके. वो हर विषय पर बात कर सकते हैं. मास कम्युनिकेशन का मतलब है मास से संबंध स्थापित करना. अगर आप उनके जैसा दिखोगे नहीं उनके जैसा करोगे नहीं, अगर ऐसा नहीं होगा तो वो आपसे नहीं जुड़ेगा. चौथा स्तंभ बचा है या नहीं, मसला ये है कि न्यू एज कंटेट है को आप कितना समझते हैं. हमें अपने क्षेत्र का विस्तार करना होगा.. ना कि एक सीमित क्षेत्र में हिस्सा लेने के लिए लड़ना होगा. अगर आप एक अखबार निकालते हैं तो आप दुनिया के दूसरे देशों तक नहीं जा सकते हैं. लेकिन अगर उसकी खबर को आप डिजिटल पर पर पोस्ट करें तो उसे दुनिया के किसी भी देश में देखा जा सकता है. यहां कहने का मतलब ये है कि सभी की अपनी भूमिका है, हमें सभी को साथ लेकर चलना होगा. आज वो जमाना नहीं है जब आपके फोन को मुख्यमंत्री उठा लेता था, आपके फोन पर ट्रांसफर पोस्टिंग हो जाता था, आज सबसे अहम ये है कि आपका कंटेट कितने लोग पसंद कर रहे हैं. आपकी कहने की कला कैसी है आपका कंटेट कैसा है.
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