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किरण बेदी ने साझा किए Social Impact से जुड़े अनुभव, बताया कैसे दी अपराधियों को मात
BW Disrupt Social Impact में बोलते हुए किरण बेदी ने सर्विस के दौरान के अपने अनुभव साझा किए. उन्होंने बताया कि किस तरह उन्होंने सबको साथ लाकर अपराधियों को मात दी.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 8 months ago
BW Disrupt Social Impact के दूसरे एडिशन का आयोजन दिल्ली में किया जा रहा है. अलग-अलग सेक्टर्स की दिग्गज हस्तियां यहां अपने विचार और सोशल इम्पैक्ट से जुड़े अनुभव साझा कर रही हैं. इसी कड़ी में पूर्व IPS और पुडुचेरी की उप-राज्यपाल रहीं किरण बेदी (Kiran Bedi) ने बताया कि किस तरह उन्होंने लोगों के साथ मिलकर अपराधियों का सामना किया, किस तरह वह दिल्ली की ट्रैफिक की समस्या से निपटीं और कैसे उनका नाम क्रेन बेदी पड़ा.
अंधेरे में होती थीं वारदातें
किरण बेदी ने बताया कि 1980 के दौर में उन्हें वेस्ट दिल्ली पुलिस का चार्ज मिला था. दक्षिणी दिल्ली की सीमा में उस समय नजफगढ़ सहित 120 से ज्यादा गांव थे. इन गांव में अपराधियों ने आतंक फैलाया हुआ था. रात के अंधेरे में हर रोज कोई न कोई वारदात हो जाया करती थी. उस समय गांव की महिलाएं चांदी के जेवर ज्यादा पहनती थीं. अपराधी उन्हें टारगेट करते थे, महिलाओं से रेप के मामले भी सामने आ रहे थे. अधिकांश क्रिमिनल एक खास समुदाय से थे. ये ट्राइबल समुदाय इसी काम के लिए फेमस था. अपराधी दूसरे शहरों से ट्रेन पकड़कर यहां आते, अपराध को अंजाम देते और वापस निकल जाते. इस वजह से उन्हें पकड़ना मुश्किल था.
क्राइम कंट्रोल का फ़ॉर्मूला
बेदी ने कहा - पुलिस में स्टाफ की कमी हमेशा से रही है, लेकिन उससे अपेक्षा काफी ज्यादा होती है. मैंने अपने साथियों से पूछा कि इन अपराधियों को कैसे काबू में किया जा सकता है. जवाब मिला - जवानों की संख्या बढ़ाकर, लेकिन हमारे पास अतिरिक्त जवान थे ही नहीं और मिलने की कोई संभावना भी नहीं थी. इसलिए मैंने सभी गांवों के सरपंचों की बैठक बुलाई. उनसे कहा कि क्राइम रोकने के लिए हमें आपकी मदद चाहिए. सभी ने पॉजिटिव रिस्पोंस दिया. मुझे पता था कि नजफगढ़ आदि गांव के लिए रात के समय गश्त के लिए मेरे पास केवल 4 सिपाही बचते हैं. लिहाजा, मैंने सरपंचों से कहा कि हमें हर गांव से 9 जवान लड़के चाहिए. हम उन्हें ट्रेनिंग देंगे, वो केवल रात में 2 घंटे ड्यूटी दें और हम सबमिलकर अपराधियों के हौसले पस्त कर देंगे.
सेल्फ प्रोटेक्शन का नमूना
सभी सरपंच राजी हो गए, एक हफ्ते के भीतर हमने इन लड़कों की मदद से नाइट पेट्रोलिंग शुरू कर दी. ये सबकुछ हमने बिना किसी CSR यानी कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के किया. हमने एक नियम बनाया था कि पेट्रोलिंग टीम में शामिल हर शख्स जोर-जोर से जागते रहो बोलेगा. ताकि अपराधियों को भी समझ आ जाए कि लोग जाग रहे हैं. अपने 4 में से प्रत्येक सिपाही को मैंने लड़कों की अलग-अलग टीम के साथ कर दिया और उनसे कहा कि अलग-अलग हिस्सों में जाकर पिस्टल इस्तेमाल करना है. रात के समय सभी अलग-अलग इलाके से पिस्टल चलाते थे, जोर से आवाज होती थी. इसके बाद से उन गांवों में एक भी रेप, हत्या या लूट की वारदात नहीं हुई. इसे आप सेल्फ प्रोटेक्शन, कॉलोब्रेट वर्किंग कह सकते हैं. भले ही आपके पास पैसा न हो, लेकिन सोच, दिमाग और एनर्जी है, तो सब मुमकिन है.
इस तरह जुटाईं क्रेनें
इसके बाद किरण बेदी ने बतौर ट्रैफिक DCP अपने सोशल इम्पैक्ट के बारे में बताया. उन्होंने कहा - जब मैंने ट्रैफिक DCP का चार्ज संभाला, हमारे पास केवल 2 क्रेनें थीं. आप जानते ही हैं कि चाहे बंद पड़े वाहनों को हटाना हो या नो-पार्किंग वाले वाहनों पर कार्रवाई करनी हो, क्रेन कितनी जरूरी है. मैंने पता किया कि हमारे पास केवल 2 क्रेन हैं और उसमें से भी एक खराब है. हालांकि, स्टाफ से जानकारी मिली कि दिल्ली में 16 प्राइवेट क्रेन हैं. मैंने तत्काल सभी क्रेन मालिकों को बुलाया. उनसे कहा कि हम और आप मिलकर काम कर सकते हैं. आपकी क्रेन पर हमारा आदमी चलेगा और ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई करेगा. जुर्माने की रकम हमारे विभाग के पास जाएगी और क्रेन से वाहन उठाने का भाड़ा आपका होगा. वो सभी खुश हो गए. इससे हमारा फायदा हुआ, क्रेन मालिकों का और आम जनता का भी.
ऐसे मिला क्रेन बेदी नाम
क्रेन की पावर मिलने के बाद सभी ट्रैफिक इंस्पेक्टर जोश में आ गए, नियमों का पालन न करने वालों पर कार्रवाई होने लगी और इसी वजह से प्राइम मिनिस्टर की गाड़ी का भी चालान हुआ. बेदी ने आगे कहा - मेरे इंस्पेक्टर ने देखा कि एक कार गलत जगह पार्क है, उसने कार को तुरंत हटाने को कहा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इसके बाद हमने नियम अनुसार कार्रवाई की. आसपास भीड़ जमा हो गई. किसी ने पूछा कि क्या हुआ है, तो पास से गुजर रहे एक रिक्शा चालक ने कहा आगे क्रेन बेदी हैं. शायद वो किरण बोलना चाह रहा था, लेकिन क्रेन बोल गया. बस यहीं से मेरा नाम क्रेन बेदी पड़ गया. ये दूसरा सोशल इम्पैक्ट था, इसके बाद से ट्रैफिक डिपार्टमेंट में क्रेनों के संख्या बढ़ गई. अपनी बात को समाप्त करते हुए पूर्व IPS बेदी ने यह भी बताया कि किस तरह उन्होंने ट्रैफिक डिपार्टमेंट में स्टाफ की कमी दूर करने के लिए NCC कैडेट्स को ट्रेंड किया था.
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