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Global Economical Crises से निपटने की क्या है भारत की Strategy?
अमेरिकी बैंकिंग संकट का असर भारतीय शेयर बाजार पर साफ नजर आने लगा है. विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के निवेश में कमी देखी जा रही है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
- अजय शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार
‘स्टेट ऑफ इकॉनमी’ पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की रिपोर्ट में दावा किया किया गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में भले ही गिरावट आये मगर भारत के आर्थिक विकास में सुस्ती नहीं आएगी और वो अपनी रफ्तार से बढ़ता रहेगा. आरबीआई का मानना है कि वो देश की अर्थव्यवस्था को लेकर आशान्वित बने हुए हैं. हालांकि उसमें माना गया है कि तमाम बाधाएं मौजूद हैं. आरबीआई का मानना है कि महामारी के दौरान भारत उम्मीद से अधिक मजबूती से उबरा है. चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही से देश की अर्थव्यवस्था मजबूती से बढ़ती नजर आ रही है. रिपोर्ट में दावा है कि हाल फिलहाल 2023-24 के लिए भारत की वास्तविक जीडीपी की विकास दर 6 से 6.5 फीसदी रहने का अनुमान है. जब आरबीआई यह दावा करता है, तभी विदेशी मुद्रा भंडार के आंकड़े भी सामने आते हैं, जिनके मुताबिक पिछले सप्ताह के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में फिर गिरावट आई है. 2.397 बिलियन डॉलर कम होकर 560 अरब डॉलर ही रह गया है, जो बीते तीन महीने में सबसे कम है. जो पिछले साल के मुकाबले लगभग 100 अरब डॉलर से भी कम हो गया है. दूसरी ओर इसी अवधि में पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ गया. पिछले 5 सप्ताह से पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ता जा रहा है. वहीं, पिछले पांच सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार नीचे जा रहा है. इसी दौरान भारत का सोने का भंडार मूल्य भी घटा है. पिछले सप्ताह की तुलना में यह 11 करोड़ डॉलर घट कर 41.92 अरब डॉलर रह गया है.
भारतीय बाजार पर भी असर
अमेरिकी बैंकिंग संकट का असर भारतीय शेयर बाजार पर साफ नजर आने लगा है. विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के निवेश में कमी देखी जा रही है. चालू मार्च महीने के दौरान एफपीआई निवेश के आंकड़े में कमी आई है. बैंकिंग संकट का असर यह है कि इस माह का कारोबार समाप्त होने के बाद महीने की इक्विटीज में एफपीआई का अभी तक का निवेश 11,495 करोड़ रुपए है. इससे पहले 10 मार्च को समाप्त हुए सप्ताह के दौरान एफपीआई के निवेश का आंकड़ा 13,450 करोड़ रुपये था. स्पष्ट है कि इस सप्ताह 13 मार्च से 17 मार्च के दौरान एफपीआई ने भारतीय बाजार से 7,953.68 करोड़ रुपए की निकासी की, जिसके कारण उनके शुद्ध निवेश में 2,045 करोड़ रुपए की कमी आई. बैंकिंग व वित्तीय जगत के मौजूदा संकट के कारण पिछले सप्ताह भारतीय बाजार में बिकवाली देखी गई थी. बीएसई सेंसेक्स और एनएसई निफ्टी दोनों गिर गये थे. भारतीय शेयर बाजारों में हुई इस बिकवाली में एफपीआई का बड़ा योगदान रहा. मार्च महीने की शुरुआत में ही अडानी समूह की चार कंपनियों को ब्लॉक डील के माध्यम से 15,446 करोड़ रुपए का एफपीआई का निवेश मिला था मगर यह अडानी और चंद अन्य पूंजीपतियों को ही मिला, शेष बाजार सूना रहा. अमेरिका में सिलिकॉन वैली बैंक (एसवीबी) और सिग्नेचर बैंक के बाद ब्रिटेन के क्रेडिट सुईस को जो नुकसान हुआ, उसका असर भारतीय बैंकिंग सेक्टर से लेकर पूंजी बाजार में भी दिखने लगा है. इससे आशंकाएं लगातार बढ़ रही हैं. अमेरिकी बैंकिंग संकट और हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के कारण भारतीय शेयर बाजारों में गिरावट देखने को मिली. क्रेडिट सुईस और फर्स्ट रिपब्लिक बैंक को बचाने के लिए विभिन्न पक्षों के आगे आने से बाजार को कुछ राहत जरूर मिली. महंगाई कम होने की उम्मीद ने आंकड़ों में कुछ सुधार किया है.
आईटी उद्योग खतरे में
रिपोर्ट्स बताती हैं कि बैंकिंग संकट के चलते भारत के 20 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के आईटी उद्योग, प्रबंधन का भविष्य खतरे में है. इस उद्योग का करीब 40 फीसदी राजस्व बैंकिंग, वित्तीय सेवाएं एवं इंश्योरेंस सेक्टर से आता है. दुनिया के बड़े बैंकों के डूबने से इन दोनों क्षेत्रों की कमाई में भारी कमी आ सकती है क्योंकि पहले से ही संकट में फंसे बैंक अपने मौजूदा टेक बजट में कटौती कर सकते हैं. नरमी के इस दौर में बैंकों की जमा और उधारी दर पर रेपो रेट का असर अधिक पड़ रहा है. फरवरी 2019 से मार्च 2022 के बीच नरमी के बेंचमार्क रेपो रेट में 250 आधार अंक की कटौती की गई. उसके साथ ही बैंकों ने अपनी मध्यावधि सावधि जमा दरों या कार्ड दरों में 208 आधार अंक की कटौती की. इसी तरह से इस अवधि के दौरान बैंकों की भारित औसत घरेलू सावधि जमा दरें 188 आधार अंक कम हुईं. दूसरी तरफ उधारी की स्थिति को देखें तो एक साल की मध्यावधि धन की सीमांत लागत पर आधारित उधारी दर में 155 आधार अंक की कटौती की गई. वहीं रुपये में दिए जाने वाले नए कर्ज पर भारित औसत उधारी दर और बैंकों के बकाया रुपये और कर्ज में क्रमशः 232 आधार अंक और 150 आधार अंक की कटौती की गई. वहीं, पूंजी बाजार और बचत को प्रोत्साहन देने की व्यवहारिक नीति न होने से भी नुकसान हो रहा है. डेट म्युचुअल फंड के निवेशकों को मिलने वाले कर फायदे हटाने के वित्त मंत्रालय के प्रस्ताव ने बाजार का मनोभाव बिगाड़ दिया. ट्रेडर्स का मानना है कि इससे कॉरपोरेट डेट की मांग को लेकर चिंता पैदा हुई. म्यूचुअल फंड्स का इस्तेमाल कॉरपोरेट डेट की खरीद में किया जाता है, जिसमें कर छूट की पेशकश होती है, ऐसे में आगे प्रतिभूतियों की मांग पर असर पड़ सकता है. इसका भी पूंजी बाजार पर नकारात्मक असर पड़ेगा.
कोई बेहतर योजना नहीं
समस्या यही है कि सरकार और नियामकों के दावे तो बड़े-बड़े हैं मगर न संकटों से निपटने के लिए कोई बेहतर योजना है और न ही कोई व्यवस्था. पूंजी संकट लगातार बढ़ता जा रहा है. बेरोजगारी दूर करने और सामाजिक सुरक्षा देने के बारे में सरकार के पास कोई नीति नहीं है. यही नहीं, तमाम जरूरी सेक्टर्स को भी सरकार की मदद नहीं मिल पा रही है जो रोजगार बढ़ाने में मदद करें. स्टार्टअप की सफलता की दर इतनी खराब है कि इसमें पड़कर अधिकतर लोग बर्बाद जरूर हो गये हैं. इससे आवश्यक है कि सरकार सिर्फ अधिकतम टैक्स वसूलने की नीति के बजाय जनता को लाभ देने पर विचार करे और स्वस्थ व्यावसायिक प्रतिस्पर्धी वातावरण निर्मित करे. अगर ऐसा नहीं किया गया, तो वैश्विक आर्थिक संकट का भारत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ना लाजिमी है.
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