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क्या भारत वैश्विक आर्थिक मंदी से बच सकता है? जानिए, एक्सपर्ट्स ने क्या कहा
आईएमएफ ने भारत के लिए 2022 में आर्थिक विकास के अपने अनुमान को घटाकर 6.1 प्रतिशत कर दिया है, जो प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज है.
अभिषेक शर्मा 1 year ago
नई दिल्ली: संयुक्त राज्य अमेरिका से लेकर यूरोप और मध्य पूर्व से लेकर दक्षिण एशिया तक, हर देश यूक्रेन पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के हमले का खामियाजा भुगत रहा है. कोविड -19 महामारी के घातक परिणाम से दुनिया अभी बाहर निकली भी नहीं थी कि इस भू-राजनीतिक संकट ने दुनिया को एक चरम सीमा पर धकेल दिया है.
यूक्रेन युद्ध ने सब कुछ उल्टा कर दिया
मुद्रस्फीति से लेकर उच्च ब्याज दरों और गरीबी से लेकर आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान तक, यूक्रेन युद्ध ने सब कुछ उल्टा कर दिया है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने अपनी वार्षिक विश्व आर्थिक आउटलुक रिपोर्ट में कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को तीन शक्तिशाली ताकतों के प्रभाव के कारण भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है: 1. यूक्रेन पर रूसी आक्रमण, 2. मुद्रास्फीति में बढ़ोत्तरी और व्यापक दबावों के कारण जीवन यापन की लागत का संकट और 3. चीन में मंदी.
IMF ने भी आर्थिक विकास दर घटाया
आईएमएफ ने भारत के लिए 2022 में आर्थिक विकास के अपने अनुमान को घटाकर 6.1 प्रतिशत कर दिया है, जो प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज है. हालांकि, कोटक महिंद्रा बैंक ने एक रिपोर्ट में कहा है कि भले ही भारत में आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि दर के मामले में तेज वृद्धि देखी गई है, पर कोविड पूर्व स्तरों से ऊपर की रिकवरी अधूरी है और भारत के वैश्विक मंदी से प्रतिरक्षा होने की संभावना नहीं दिख रही.
प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता भारत
मेघनाद देसाई एकेडमी ऑफ इकोनॉमिक्स (MDAE) के चेयरमैन और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के सेवामुक्त प्रोफेसर मेघनाद देसाई ने कहा, "भारतीय अर्थव्यवस्था अब बेहतर है, लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था में भी अधिक एकीकृत है. इसलिए, यह ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि से पीड़ित हुए बिना नहीं रह सकता. रूस से डायरेक्ट खरीददारी कर यह प्रतिबंधों को झेलने और संभावित सबसे खराब स्थिति से तो बच गया, लेकिन युद्ध अभी जारी रहने वाला है (मेरे हिसाब से दो से चार साल और). ऐसे में भारत गतिरोध में फंस सकता है.
देसाई ने कहा कि भारत अभी भी कुल जीडीपी में 5वें नंबर पर आने को लेकर उत्साह के मूड में है, लेकिन डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट भारत के लिए कतई अच्छा संकेत नहीं है. सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था जाल में फंस जाएगी. इससे भारत का बचना मुश्किल होगा.
भारत के लिए सकारात्मक संकेत
Indifi Technologies के CEO आलोक मित्तल ने कहा, "IMF के ताजा अनुमान वैश्विक मंदी के मद्देनजर भारत के लिए सकारात्मक संकेत देते हैं, क्योंकि भारत इस साल और आने वाले सालों में सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहेगा. मंदी का मुकाबला करने वाले देशों के मुकाबले हमारी अर्थव्यवस्था के बढ़ने में कई कारक योगदान करते हैं. सबसे पहले, बड़ी घरेलू मांग को देखते हुए, हमारी अर्थव्यवस्था वैश्विक बाजारों से अपेक्षाकृत स्वतंत्र है, जो हमारे लिए एक वरदान है, क्योंकि हमारा सकल घरेलू उत्पाद (GDP) मुख्य रूप से निर्यात पर घरेलू मांग से प्रेरित है." उन्होंने कहा, "अमेरिका, चीन और यूरोप के विपरीत, भारत की अर्थव्यवस्था सेवा-आधारित है, न कि विनिर्माण-आधारित. जब हम 1991 और 2008 की पिछली मंदी के साक्ष्यों को देखते हैं, तो ये पाते हैं कि सेवा आधारित ग्लोबल ट्रेड काफी मजबूत हुआ है.
भारत प्रमुख वैश्विक निर्यातक नहीं
आंकड़ों के अनुसार, भारत प्रमुख वैश्विक निर्यातक (विश्व निर्यात का लगभग 2.2 प्रतिशत) नहीं है और यहां तक कि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान के मामले में भी, यह अन्य देशों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है. हालांकि, व्यापार चैनल कुछ हद तक भारत को प्रभावित करेगा. संयुक्त राज्य अमेरिका (US) और यूरोपीय संघ (EU) मिलकर भारत के कुल निर्यात का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा हैं. साथ ही, वैश्विक निर्यात का एक बड़ा हिस्सा अमेरिका और यूरोप पर निर्भर है, जिसका भारत पर भी अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ेगा.
निर्यात में 15-20 फीसदी की बढ़ोतरी हो
अर्थशास्त्री और लेखक आरपी गुप्ता ने कहा, "राजकोषीय प्रोत्साहन देकर निर्यात में 15-20 फीसदी की बढ़ोतरी होनी चाहिए. निर्यात प्रतिबंध और उच्च निर्यात शुल्क को युक्तिसंगत बनाया जाना चाहिए. रसद और ऊर्जा की लागत को हर तरह से कम किया जाना चाहिए. खनिज और कोयला करों में भारी कटौती की जानी चाहिए. ब्याज में और बढ़ोतरी को तुरंत रोका जाना चाहिए. इन सभी कार्रवाइयों से निर्यात प्रतिस्पर्धी बनेगा और CAD कम होगा. यह कार्रवाई मुद्रास्फीति को भी शांत करेगा. मेरा दृढ़ विश्वास है कि राजकोषीय घाटे की तुलना में CAD अधिक हानिकारक है."
गुप्ता ने यह भी कहा, "जैसा मेरी किताब 'टर्न अराउंड इंडिया-2020' में सुझाया गया है, सभी नीतिगत साधनों को तैनात करके आयात को कम किया जाना चाहिए और घरेलू उत्पादन द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए. सोने के आयात में कटौती की जानी चाहिए और इसे घरेलू सोने से बदला जाना चाहिए."
कई एजेंसियों ने भारत की ग्रोथ रेट को कम किया
हाल ही में, कई एजेंसियों ने उच्च मुद्रास्फीति और बढ़ती नीतिगत ब्याज दरों के बीच भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के विकास के अनुमान में कटौती की है. 6 अक्टूबर को, विश्व बैंक ने भारत के लिए 2022-23 के लिए अपने विकास पूर्वानुमान को 7.5 प्रतिशत के पिछले अनुमान से घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया. अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी, एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स, एलियर ने सोमवार को अनुमान लगाया कि चालू वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 7.3 प्रतिशत है, जिसमें गिरावट का जोखिम बरकरार है.
एशियाई विकास बैंक ने भी आर्थिक विकास का अनुमान घटाया
साथ ही, एशियाई विकास बैंक (ADB) ने 2022-23 के लिए भारत के आर्थिक विकास के अनुमान को 7.2 प्रतिशत से घटाकर 7 प्रतिशत कर दिया. एडीबी के अनुसार, भारत में अपेक्षा से अधिक मुद्रास्फीति और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक सख्ती के कारण यह कदम उठाया गया है. इस बीच, फिच ने वित्त वर्ष 2023 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि के अनुमान को घटाकर 7 प्रतिशत कर दिया, जबकि इसके पहले के अनुमान में यह 7.8 प्रतिशत था. यह कदम वैश्विक मंदी और सख्त मौद्रिक नीति के कारण उठाया गया है.
भारत को तुरंत बनानी चाहिए योजना
विशेषज्ञों ने कहा कि भारत को वैश्विक उथल-पुथल से बचने के लिए एक समग्र योजना बनानी चाहिए. प्राथमिकता के आधार पर, भारत को चालू खाता घाटा (CAD) को कम करना चाहिए, जो एक रिकॉर्ड उच्च स्तर पर है. इससे आने वाले वर्षों में GDP 5.0 प्रतिशत से नीचे जा सकती है. अन्य देशों की तुलना में उच्च बेरोजगारी और कम "प्रति व्यक्ति आय" को देखते हुए भारत इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता. मार्च 2022 तक भारत की GDP FY 2019-20 के लगभग समान ही थी. इसलिए अगले दो दशकों में भारत को 7 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि करनी होगी.
बेरोजगारी और मुद्रास्फीति का कॉम्बिनेशन हो रहा खतरनाक
भारत में, बेरोजगारी और मुद्रास्फीति का कॉम्बिनेशन गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के लिए परेशानी का कारण बन रहा है. वैश्विक संघर्ष वास्तव में चिंताजनक हैं. विशेषज्ञों ने कहा कि भारत को समस्याओं को स्वीकार करना चाहिए और बहुत देर होने से पहले संभावित जोखिमों को कम करने के लिए सभी जरूरी उपाय करने चाहिए. कम होते रोजगार के समाधान के लिए, भारत को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) क्षेत्र को तत्काल प्राथमिकता देनी चाहिए. इसके लिए भारत को ऋण सुगमता के अलावा कई विनियामक और कराधान प्रोत्साहनों की जरूरत है.
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