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जजों की नियुक्ति में कॉलेजियम सिस्टम में चलता है भाई भतीजावाद- विकास सिंह
कॉलेजियम सिस्टम में बहुत रेयर होता है कि बिलकुल सही वकील को जज बनाया जाए.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
नई दिल्लीः BW Legal World 40 Under 40 Summit में मुख्य अतिथि के शामिल हुए विकास सिंह, सीनियर एडवोकेट, President सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन व Former ASG of India 40 के बारे में ललित भसीन ने कहा कि साल के वकीलों के लिए एक आदर्श हैं. किसी भी मामले में निर्भीक होने के साथ ही वो कोर्ट के फैसलों, तथ्य और केस के बारे में बहस के जरिए पैरवी करने में कभी चूक नहीं करते हैं. समाचारों और लॉ के पीरियोडिकल्स में विकास सिंह की चर्चा इसलिए होती रहती है, क्योंकि वो गरीब लोगों के हक की लड़ाई को सर्वोच्च न्यायालय में काफी बेबाकी से लड़ते हैं. समिट के चीफ गेस्ट विकास सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि कॉलेजियम सिस्टम में बहुत रेयर होता है कि बिलकुल सही वकील को जज बनाया जाए. यहां पर भी भाई भतीजावाद खूब चलता है.
कॉलोजियम सिस्टम गलत तरीका जज बनाने का
कॉलेजियम सिस्टम पर बोलते हुए सिंह ने कहा कि बहुत सारे वकील ऐसे हैं जो छोटे कोर्ट में काम करते हैं उनको मौका नहीं मिलता है. जज कहते हैं कि उनको सभी वकीलों के बारे में पता रहता है और किसको जज बनाना है और किसको नहीं यह हम ही तय कर सकते हैं. हम उनसे बातचीत करते हैं, इसलिए हमको यह अधिकार होना चाहिए. लेकिन मेरी नजर में कॉलेजियम सिस्टम एक Melecious तरीका है जज बनाने का.
भारत में कोई पार्टी नहीं चाहती जज स्वतंत्र रहे
विकास सिंह ने कहा कि पहले मैं भी कॉलेजियम सिस्टम का पक्षधर था, लेकिन जब देश में नेता और पार्टियों में ऐसे लोग हों जिनका क्रिमिनल रिकॉर्ड हो और जो नहीं चाहते है कि जज स्वतंत्र रहे. पर जो हो रहा है वो होना नहीं चाहिए था. जब वो कहते हैं कि हम वकीलों को जानते हैं तो वो उनकी व्यक्तिगत जानकारी होती है वो भी हाईकोर्ट के तीन जजों को. ऐसे में वो क्या संदेश देना चाहते हैं.
जज कभी अपनी जाति, कभी जूनियर्स व रिश्तेदार देखकर तय करते हैं कि कौन से वकील को जज बनाया जा सकता है. ये बहुत रेयर होता है कि एक कॉलेजियम सही वकील को चुनकर जज बनाए.
पैसा कमाना लीगल प्रोफेशन में एक Bye Product है
विकास सिंह ने कहा कि मुझे इस समिट और अवॉर्ड में आकर के बारे में बड़ी खुशी हो रही है और जैसा कि डॉ. अनुराग बत्रा ने कहा कि लीगल प्रोफेशन में पैसा कमाना एक उप उत्पाद है, मैं उसका पूरी तरह से समर्थन करता हूं. जब हम यह लीगल प्रोफेशन ज्वाइन करते हैं तो मैं सबको ये ही कहता हूं अपने क्लाइंट की समस्या को अपना समझे और उसको फील भी करें, तभी कोई भी लॉ का छात्र इस करियर में सक्सेसफुल हो सकता है.
क्लाइंट की समस्या के साथ सोना पड़ेगा
सिंह ने आगे कहा कि समस्या को फील करने का मतलब है कि क्लाइंट की परेशानी के साथ सो जाओ और जब शॉवर ले रहे हो तब भी क्लाइंट की समस्या एक लॉयर के दिमाग में होनी चाहिए. इस तरीके से क्लाइंट की परेशानी का हल भी मिल जाता है और ऐसा कई बार होता है जब समाधान हमको ऐसी जगह पर मिलता है, जहां के बारे में हम सोच भी नहीं सकते हैं. यह समाधान फाइल को पढ़ते वक्त भी नहीं आता है.
अगर क्लाइंट की समस्या या परेशानी को हल करने की आपने ठान ली है तो फिर पैसा सही में एक बाई प्रोडक्ट जैसा लगता है. जो लोग पैसे के पीछे भागते हैं उनसे पैसा थोड़ा दूर रहता है. अगर आप क्लाइंट की समस्या को सॉल्व करते हैं तो पैसा आता है. कहीं बार क्लाइंट का केस हारने के बाद भी वो 2-3 साल बाद ड्राफ्ट भेजते थे एक Acknowledgement के नाते ताकि जो खर्चा केस लड़ने के दौरान वकील ने किया वो उसको मिल सके. इसके बाद विकास सिंह ने लॉयर बनने से पहले अपनी नौकरी और अन्य के बारे संस्मरण सुनाए.
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