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US के बैंकों जितनी कमजोर नहीं है भारतीय बैंकिंग व्यवस्था

भारतीय इकॉनमी पर पड़ने वाले प्रभाव और उससे जुड़ा जो डर भारत में फैल रहा है वह मुझे बेबुनियाद लगता है. SVB में जिन स्टार्टअप का भारतीय फंड जमा था वह पूरी तरह सुरक्षित है.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago

 Srinath Sridharan, Independent markets commentator. Media columnist. Board member. Corporate & Startup Advisor / Mentor. 

US के 16वें सबसे बड़े बैंक यानी सिलिकॉन वैली बैंक (SVB) के गिरने से भारतीय इकॉनमी पर पड़ने वाले प्रभाव और उससे जुड़ा जो डर भारत में फैल रहा है वह मुझे बेबुनियाद लगता है. भारतीय स्टार्टअप जिनका फंड SVB में था, पूरी तरह सुरक्षित हैं. भारतीय बैंकिंग सेक्टर भी इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा है. जिनकी इन्वेस्टमेंट से भारतीय स्टार्ट-अप्स को आकार मिला है उन भारतीय प्राइवेट इन्वेस्टर्स के लिए यह एक सीख है कि ज्यादा ब्याज के लालच में उन्हें अपना सारा पैसा एक ही इकाई में जमा नहीं करना चाहिए और अपनी इन्वेस्टमेंट में अच्छी तरह से विविधता बनाकर रखनी चाहिए. 

भारतीय फाइनेंशियल संस्थान 
भारतीय फाइनेंशियल संस्थानों के लिए सबक ये है कि, उन्हें अपने रिस्क मैनेजमेंट फ्रेमवर्क में सुधार करें और एसेट लायबिलिटी मैनेजमेंट (ALM) की रियल टाइम में जांच करते रहें. ब्याज दर में होने वाले उतार-चढ़ाव के साथ, ALM को पहले से ज्यादा मजबूत बनाने की आवश्यकता होती है. RBI (भारतीय रिजर्व बैंक) के सावधानी और दखल देने वाले नियम और रेगुलेशंस यहीं काम में आते हैं.

US के बैंक हो गए फेल
SVB पिछले चालीस सालों से बिजनेस में था और टेक्नोलॉजी फर्मों के साथ-साथ वेंचर कैपिटल इंडस्ट्री के लिए भी पहली पसंद का बैंक था. सिलिकन वैली के सबसे बड़े डिपॉजिट बैंक SVB के पास गिरने से ठीक पहले 209 बिलियन डॉलर्स की संपत्ति और 175 बिलियन डॉलर्स की जमा राशि थी. अमेरिकी इतिहास में यह दूसरी सबसे बड़ी बैंकिंग असफलता है और 2008 के ग्लोबल फाइनेंशियल संकट (GFC) के बाद से यह अमेरिकी बैंकिंग सिस्टम को पहला झटका है. अमेरिका में सिस्टमैटिकली इम्पोर्टेन्ट फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन (SIFI) के रूप में रैंक करने के लिए SVB पूरी तरह से बड़ा बैंक नहीं था. इंडिया बैंक पर नजर रखने वालों के लिए बता दूं कि, बैंकिंग के नजरिए से केवल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), HDFC बैंक और ICICI बैंक ही SIFI टैग में आ सकते हैं.
SVB के पास US ट्रेजरी और सरकार द्वारा समर्थित मॉर्गेज सिक्योरिटीज जैसे शानदार एसेट्स हैं, जिन्हें सुरक्षित दांव कहा जा सकता है. लेकिन जब US फेडरल ने ब्याज दरों में आक्रामक रूप से वृद्धि की, तो SVB होल्डिंग्स का मूल्य काफी कम हो गया था.
अमेरिका से पैदा हुए 2008 के वित्तीय संकट के बाद, अमेरिका में ब्याज दरें रुक गयी हैं. इस फैसले की वदौलत लोन सस्ते हुए और प्राइवेट इन्वेस्टमेंट कम्युनिटी ने स्टार्ट-अप्स में ज्यादा पैसे लगाए. बदले में इनमें से कई स्टार्टअप्स ने फ्लश ट्रेजरी पॉकेट्स के साथ SVB जैसे बैंकों में अपने पैसे जमा करवाए. लेकिन फिर मार्च 2022 में जो ब्याज दरें 0.25-0.50% के रेट पर स्थिर थीं वह बढ़कर 4.5-4.75% हो गईं. हाल ही में US फेडरल के चेयरमैन ने भी इशारा किया था कि ब्याज दरें 5.75% तक जा सकती हैं. इन बढ़ती ब्याज दरों ने बॉन्ड पर रिटर्न को कम कर दिया, और स्टार्टअप की फंडिंग साइकल को भी कम कर दिया. SVB अपने रिस्क मैनेजमेंट में असफल रहा - उन्होंने इतनी तेजी से काम नहीं किया कि बढ़ती ब्याज दर का रिस्क उठाया जा सके., SVB अपने खुद के कैश भंडार का उपयोग करके जितनी तेजी से भुगतान कर सकता था, उससे ज्यादा तेजी से SVB के जमाकर्ता अपने जमा पैसों को निकाल रहे थे. अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए बैंक ने 1.8 बिलियन डॉलर का नुक्सान उठाते हुए अपने 21 बिलियन डॉलर की कीमत वाले अपने सिक्योरिटीज पोर्टफोलियो को बेच दिया. SVB द्वारा लिए गए इस फैसले की वजह से इतनी ही कीमत की कैपिटल इकट्ठा करने के लिए एक मांग शुरू हुई जिससे बाजार में घबराहट पैदा हो गयी और परेशान कस्टमर्स द्वारा अपनी जमा राशि को निकालने में और तेजी आई, 
 

बैंकों का बिजनेस
बैंक में जमा पैसे निकालने की ऐसी भगदड़ किसी भी मार्केट में कभी भी हो सकती है. डिजिटल और सोशल मीडिया के इस जमाने में अफवाहों और कानाफूसी से बहुत ध्यान से निपटना चाहिए.
एक बैंक अपने ग्राहकों से जमा (लायबिलिटी) स्वीकार करता है और अन्य ग्राहकों को लोन (एसेट्स) देने के लिए जमा राशि का इस्तेमाल करता है. किसी भी जमा राशि का सरप्लस कहीं और इन्वेस्ट किया जाता है. किसी भी बैंक के सेफ में निवेश की न्यूनतम कानूनी मात्रा को तय करने के लिए बैंक के रेगुलेटर्स के पास नियम होते हैं. बैंकिंग का यह बिजनेस इस आधार पर काम करता है, कि सभी जमाकर्ता एक ही समय में अपनी जमा राशि वापस नहीं लेंगे. SVB के साथ जो हुआ वह क्लासिक बैंक रन का एक शानदार मामला है, जहां बहुत से जमाकर्ता एक ही समय में बैंक से अपना पैसा निकालते हैं. ऐसे मामले में बिना किसी गवर्नेंस समस्या वाला एक सही बैंक भी कुछ ही दिनों में दिवालिया हो सकता है. SVB की यह असफलता गवर्नेंस की असफलता नहीं थी. खराब ALM की वजह से SVB का दिवाला हो गया इसके पीछे कोई समस्या वजह नहीं थी.
1 ट्रिलियन डॉलर्स से अधिक की बैंक जमा राशि बीमाकृत नहीं है और यह अमेरिकी सरकार के सामने इस वक्त मौजूद एक बड़ा जोखिम है. फेडरल डिपॉजिट बीमा निगम द्वारा केवल 250,000 डॉलर्स तक की जमा राशि का ही बीमा किया जाता है. अगर हालत ऐसे ही रहे तो अमेरिकी बैंकिंग प्रणाली भविष्य में ऐसी बैंक-रन की चुनौतियों का सामना कैसे करेगी?
 

भारत पर नहीं पड़ा है कोई प्रभाव? 
US फेडरल ने SVB संकट को बहुत जल्दी सुलझा दिया जिससे जमाकर्ताओं के पैसे बचे हैं. इसमें SVB के साथ भारतीय या भारतीय मूल की SaaS (सॉफ्टवेयर एज अ सर्विस) संस्थाओं के 600 गिने हुए फंडों में से लगभग 2.5 बिलियन डॉलर्स शामिल हैं, जबकि कुछ भारतीय स्टार्टअप्स के फंड SVB में बंधे हुए हैं. ये बातें चिंता का विषय नहीं होनी चाहिए.
एक, वे अपने धन का उपयोग कर सकते हैं क्योंकि US फेडरल सुनिश्चित करेगा कि बैंकिंग चलती रहे. दूसरा, SVB की ट्रेजरी इन्वेस्टमेंट्स में भारतीय इकाइयों का हिस्सा उनकी अपनी लिक्विडिटी इन्वेस्टमेंट्स से बहुत कम है. तीसरा, इन संस्थाओं के फंड पर अब सख्त और बेहतर रिस्क मैनेजमेंट सुनिश्चित करने के लिए उनके बोर्ड द्वारा पूछताछ की जाएगी. चौथा, एक्सिस बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, आईसीआईसीआई बैंक सहित अन्य भारतीय बैंकों ने GIFT सिटी में अपनी शाखाओं का उपयोग करते हुए इन स्टार्टअप्स के SVB खातों को अपनी शाखा में ट्रान्सफर करने के लिए प्रोडक्शन-माइग्रेशन ऑपरेशन की शुरुआत की है.
 

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