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रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में फंस गया घर? SWAMIH योजना करेगी सपना पूरा

देश के 7 प्रमुख शहरों में लगभग 5 लाख घर रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स में फंसे हुए हैं. अगर आपके सपनों का घर भी किसी प्रोजेक्ट में फंस जाए तो इन बातों का ध्यान रखें.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago

‘सुन्दर वातावरण और शानदार सुविधाओं से लैस यह घर बन सकता है आपके सपनों का घर’ ऐसे ही डायलॉग्स के इस्तेमाल से अधिकतर बिल्डर्स आपका ध्यान अपनी तरफ खींचते हैं ताकि आप उनके इस प्रोजेक्ट में इन्वेस्ट कर सकें. लेकिन जब ऐसा कोई प्रोजेक्ट साल दर साल आगे बढ़ता जाता है या फंस जाता है तो ऐसी स्थिति में क्या होता है? ऐसी स्थिति में आपको दोहरी मार झेलनी पड़ती है. एक तरफ आपके लाखों रुपये फंस जाते हैं तो, वहीं दूसरी तरफ आपको लगातार होम लोन की EMI या घर का किराया भरना पड़ता है. इतना ही नहीं घर खरीदने का सपना देखने वाले को मौके का नुक्सान भी होता है. अगर इन्हीं पैसों को इन्वेस्टर कहीं और इन्वेस्ट करता तो इतने ही समय में उसे ज्यादा बेहतर रिटर्न्स मिलते. लेकिन दशकों से घर खरीदने का सपना देखने वाले लोग ऐसी ही हालत में फंसे हुए हैं. 
RERA बना फरिश्ता
प्रॉपर्टी कंसलटेंट एनारॉक ने पिछले साल जून में जारी हुई एक रिपोर्ट में कहा था कि देश के 7 प्रमुख शहरों में लगभग 4.8 लाख घरों को बनाने के काम में या तो देरी हुई है या फिर ये प्रोजेक्ट्स फंसकर रह गए हैं. रिपोर्ट के अनुसार इन घरों की कीमत लगभग 4.48 लाख करोड़ रुपये है. साल 2016 में RERA (रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी) का गठन किया गया था. लाखों घर खरीदने वालों के लिए RERA एक फरिश्ते जैसा है. RERA का गठन, रियल एस्टेट क्षेत्र में मौजूद समस्याओं को हल करने के लिए किया गया था. इन समस्याओं को हल करने के लिए RERA में बिल्डर्स के लिए कुछ नियम बनाए गए जैसे, कारपेट एरिया का एक स्टैण्डर्ड तय करना और घर खरीदने वालों से लिए गए पैसे का 70% हिस्सा एक अलग खाते में रखकर इसका इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ कंस्ट्रक्शन के लिए करना. 
प्रोजेक्ट में देरी होने पर देना होगा भुगतान
RERA एक्ट के तहत, प्रोजेक्ट में देरी होने पर प्रॉपर्टी के खरीदारों को मासिक आधार पर इंटरेस्ट रेट या खरीददार द्वारा घर के मालिकाना हक के बजाय रिफंड को चुने जाने पर रिफंड और इंटरेस्ट रेट दोनों के भुगतान का प्रावधान है. नवम्बर 2021 में एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि RERA एक्ट पूरी तरह से हर प्रोजेक्ट पर लागू होगा और फिलहाल चल रहे प्रोजेक्ट्स वही प्रोजेक्ट्स हैं जिनके लिए 1 मई 2017 से पहले समाप्ति का सर्टिफिकेट नहीं लिया गया है. RERA के अंतर्गत शिकायत करवाए जाने के 60 दिन के भीतर ही उसे निपटाया जाता है हालांकि कुछ विशेष मामलों में थोड़ा ज्यादा समय लग सकता है. एक ऑर्डर पास होने के 45 दिनों के अन्दर ही बिल्डर को उस आदेश को लागू करना होता है. अगर ऐसा नहीं होता तो RERA, बिल्डर पर प्रॉपर्टी की कीमत का 5% जितना हिस्सा जुर्माने के तौर पर लगा सकता है. इतना ही नहीं दिए गए आदेश का पालन न करने की स्थिति में 3 साल तक का कारावास भी हो सकता है. इसके साथ-साथ RERA, बिल्डर के अन्य प्रोजेक्ट्स को मिली अनुमति को भी कैंसल कर सकता है. 
RERA की प्रमुख समस्याएं
RERA द्वारा दिए गए ऑर्डर को खरीददार या बिल्डर के द्वारा REAT (रियल एस्टेट अपेलेट ट्रिब्यूनल) में चुनौती दी जा सकती है और REAT किसी ऑर्डर को या तो कैंसिल कर सकता है या फिर उस ऑर्डर को बदल सकता है. REAT द्वारा दिए गए ऑर्डर्स को हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. एनारॉक के सीनियर डायरेक्टर और रिसर्च के अध्यक्ष प्रशांत ठाकुर ने कहा – RERA का फायदा यह है कि कोई भी अपनी शिकायत दर्ज करवा सकता है फिर चाहे वो एक व्यक्ति हो या लोगों का एक समूह और इसके लिए आपको किसी वकील की जरुरत भी नहीं होती. लेकिन ध्यान रखें कि RERA एक अर्ध-न्यायिक संस्था है और इसके द्वारा पास किये गए ऑर्डर्स को लागू करने का सारा भार स्थानीय संस्थाओं पर ही होता है. निश्चित समय में RERA के दिए गए ऑर्डर्स का पूरा न होना फिलहाल इसकी सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है. यही वजह है कि अपने हित में फैसले आने के बाद भी खरीदारों को कई महीनों तक इन्तजार करना पड़ता है. ऐसे बहुत से मामलों में खरीदारों ने सम्बंधित हाई कोर्ट में रिट पिटीशन दर्ज करवाई है. 
प्रोजेक्ट पूरा होने की नहीं है गारंटी
रियल एस्टेट एडवाइजरी फर्म JN वेंचर्स के डायरेक्टर प्रकाश नटराजन कहते हैं – RERA द्वारा दिए गए ऑर्डर्स की धीमी रफ्तार के चलते ही मैं बहुत से संभावित खरीदारों को फ्यूचर प्रोजेक्ट्स में बहुत ध्यानपूर्वक इन्वेस्ट करने की सलाह देता हूं. एगमार्क की तरह RERA को मान्यता प्राप्त नहीं है. RERA केवल समस्या सामने आने पर ही निवारण के बारे में बताता है लेकिन यह किसी भी तरह प्रोजेक्ट के पूरा होने की गारंटी नहीं देता. अगर आप अपने आने वाले 15 सालों की कमाई को कहीं इन्वेस्ट कर रहे हैं तो ध्यान रखें कि प्रोजेक्ट के फंस जाने का जोखिम आप उठा सकें. खरीददार, RERA के साथ-साथ कंज्यूमर कोर्ट्स में कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के तहत भी मामला दर्ज करवा सकते हैं. इस एक फैसले से बिल्डर पर अधिक दबाव पड़ता है. अपने घर के लिए एक दशक तक लड़ने वाले अभय उपाध्याय कहते हैं – घर खरीदने वालों को ज्यादा व्यवस्थित होना चाहिए और बिल्डर पर दबाव बढाने के लिए उन्हें हर तरफ से निशाना बनाना चाहिए. लगातार हमलों और बढ़ते दबाव से ही खरीदारों को उनके पक्ष में फैसला मिलेगा. 
RERA के अंतर्गत खरीदारों के अधिकार: घर खरीदने वाले लोगों को RERA के तहत मिलने वाले विभिन्न अधिकार कुछ इस प्रकार से हैं: 
1.    जानने का अधिकार: एक खरीददार को बिल्डर के ले-आउट प्लान, सुविधाओं, हर स्टेज के पूरा होने के शेड्यूल, अनुमतियों, और सम्बंधित संस्थाओं द्वारा मंजूर किये गए सभी फीचर्स जैसी जानकारियों के बारे में जानने का पूरा अधिकार होता है. 
2.    मालिकाना हक का आधार: स्टेटमेंट या सेल अग्रीमेंट के अनुसार, प्रोजेक्ट के पूरा होने पर घर का खरीदार, प्लाट या अपार्टमेंट के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्रों पर भी अधिकार जता सकता है. 
3.    रिफंड का अधिकार: यदि बिल्डर RERA द्वारा बताये गए किसी भी प्रावधान को पूरा कर पाने में असमर्थ होता है तो खरीददार भुगतान किये गए पैसों का रिफंड भी मांग सकता है. इतना ही नहीं, इस रिफंड के साथ इंटरेस्ट और कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन करने के लिए खरीददार मुआवजे की मांग भी कर सकता है. ऐसा तब भी हो सकता है जब बिल्डर अपने द्वारा किये गए वादों को पूरा न कर पाए. 
4.    अगर प्रॉपर्टी खराब हो: अगर खरीददार द्वारा कब्जा करने के 5 सालों के अन्दर प्रॉपर्टी की क्वालिटी में किसी प्रकार की कोई भी खराबी होती है तो बिल्डर, खरीददार पर किसी प्रकार के अधिक शुल्क लगाए बिना इन खराबियों को 30 दिनों के अन्दर सही करवाएगा. अगर प्रॉपर्टी के टाइटल में किसी प्रकार की कोई खराबी हो तो खरीददार RERA एक्ट के सेक्शन 18(2) के तहत मुआवजे भी मांग सकता है. 
बिल्डर दिवालिया हो जाए तो क्या करें? 
2016 में IBC (दिवाला एवं दिवालियापन कोड) को लागू करने के बाद से बहुत से बिल्डर्स इसे गलत तरीके से इस्तेमाल करते हैं. फंसे हुए प्रोजेक्ट्स से पीछा छुड़ाने के लिए बिल्डर्स खुद को दिवालिया घोषित कर देते हैं. ऐसे बहुत से मामलों को लेकर खरीददार NCLT (राष्ट्रिय कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल) के पास पहुंचे हैं. IBC के कानूनों के अंतर्गत, ऐसे लोग जिन्हें प्रॉपर्टी आवंटित की जा चुकी है का 10% या फिर 100 खरीदारों में से जो भी छोटी संख्या हो, इन मामलों की निवारण प्रक्रिया की शुरूआत कर सकते हैं. जिसके बाद NCLT एक IRP (अंतरिम रिजोल्यूशन प्रोफेशनल) को नियुक्त करती है और यह IRP, CoC (लेनदारों की कमेटी) के साथ मिलकर ऐसे मामले को निपटाने के लिए एक प्लान बनाता है. क्योंकि प्रॉपर्टी के खरीदारों को सिक्योर्ड या वित्तीय लेनदार माना जाता है इसलिए यह CoC का हिस्सा होते हैं और इन्हें बैंक या वित्तीय लेनदारों जैसी संस्थाओं की तुलना में अधिक महत्त्व दिया जाता है. 
अब तक सामने आये अधिकतर मामले - जिनमें खरीदार NCLT के पास गए हैं - में खरीदारों द्वारा प्रोजेक्ट की कंस्ट्रक्शन को जारी रखने का विकल्प ही चुना गया है. किसी भी रियल एस्टेट कंपनी को निष्क्रिय बनाने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि प्रमोटर्स दिवालिया हो चुके होते हैं, उनके पास रिफंड के लिए पैसे नहीं बचे होते और प्रोजेक्ट को कोई और बिल्डर खरीदना नहीं चाहता. निवारण का एक तरीका निश्चित कर लेने और CoC में से अधिकतम लोगों द्वारा मंजूरी मिलने के बाद घर खरीदने वाले लोग इसे अपनाते हैं. अधिकतर मामलों में खरीदार बचे हुए पैसे को खुद ही लगाकर कंस्ट्रक्शन का पूरा ध्यान रखते हैं.
लेकिन ऐसा सिर्फ उन मामलों में ही संभव है जिनमें प्रोजेक्ट का स्ट्रक्चर खड़ा हो चूका हो और 30% से कम काम ही बचा हो. इसके साथ-साथ किसी प्रोजेक्ट को खुद से पूरा करना ही अपने आप में एक काफी बड़ी चुनौती है क्योंकि आपको सारा सामान खुद ही जुटाना होता है फिर चाहे वो टाइल्स हों या एलिवेटर्स. इन्वेस्टर्स को ऐसे प्रोजेक्ट्स में और अधिक इन्वेस्टमेंट करने के लिए मनाना भी एक बड़ी चुनौती है क्योंकि इनमें से कुछ इन्वेस्टर्स कभी पैसा नहीं देते जिसकी वजह से दुसरे इन्वेस्टर्स को भी उनके हिस्से का पैसा देना पड़ता है. साथ ही कंस्ट्रक्शन का ध्यान रखने के लिए बहुत से वालंटियर की ज़रूरत पड़ती है जिसके लिए लोगों को मानना पड़ता है. 
प्रॉपर्टी मैनेजमेंट कंपनी नाईट फ्रैंक के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर गुलाम जिया बताते हैं – ऐसे मामलों में खरीदारों को खुद ही म्युनिसिपल संस्थाओं से बातचीत करनी पड़ती है. बिल्डर्स को पता होता है कि इस इकोसिस्टम को कैसे मैनेज करें लेकिन आम लोगों के लिए यह एक चुनौती भरा अनुभव हो सकता है. वातावरण से सम्बंधित समस्याओं और कानूनी समस्याओं के चलते खुद ही कंस्ट्रक्शन का पूरा ध्यान रखना, बहुत सी हाउसिंग सोसायटियों के लिए मुश्किलों से भरा रास्ता होता है. जिन्होंने यह रास्ता चुना है लगभग उन सभी प्रॉपर्टी ओनर्स को प्रोजेक्ट के पुरे होने के सर्टिफिकेट और दुसरे सर्टिफिकेट लेने के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बिल्डर्स का बकाया म्युनिसिपल अधिकारियों के पास बाकी होता है. इसीलिए ऐसी अधिकतर सोसायटियों के पास अभी तक रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट नहीं होता है. 
साल 2010 – 2011 में लोटस 300 में इन्वेस्ट करने वाले रिटायर्ड मेजर एस एस राय कहते हैं – सरकारी संस्थाओं के आलस और बिल्डर्स के साथ उनके संबंधों की सजा प्रॉपर्टी ओनर्स को क्यों दी जा रही है? 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा में एक जमीन के हिस्से पर रोक लगाई थी जिसके बावजूद 2010 में नोएडा की सरकारी संस्थाओं ने इसे 3C नाम की एक कंपनी को बेच दिया था. 2013 में जब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया और कहा की यह जमीन किसानों को वापस दी जानी चाहिए तो बेचारे प्रॉपर्टी ओनर्स को इसका नुक्सान उठाना पड़ा क्योंकि प्रोजेक्ट फंस गया था. 
ऐसे उठा सकते हैं SWAMIH स्कीम का फायदा
SWAMIH (स्पेशल विंडो फॉर कम्पलीशन ऑफ अफोर्डेबल एंड मिड-इनकम हाउसिंग) इन्वेस्टमेंट फंड् को केंद्रीय सरकार द्वारा नवम्बर 2019 में फंसे हुए प्रोजेक्ट्स से प्रभावित हुए प्रॉपर्टी ओनर्स को आराम देने के लिए बनाया गया था. यह एक केटेगरी 2 का AIF (अल्टरनेट इन्वेस्टमेंट फण्ड) डेब्ट फण्ड है जो SEBI के साथ रजिस्टर्ड है और इसे SBICAP वेंचर्स के द्वारा मैनेज किया जाता है. SWAMIH स्कीम का फायदा उठाने के लिए एक प्रोजेक्ट को इन शर्तों को पूरा करना होता है: 
1.    अफोर्डेबल हाउसिंग: प्रोजेक्ट में बनाये जा रहे घरों का 90% FAR (फ्लोर एरिया रेशो) या तो अफोर्डेबल हाउसिंग या एक मिड-इनकम हाउसिंग यूनिट के तौर पर बना होना चाहिए. आसान शब्दों में कहें तो कारपेट एरिया 200 स्क्वेयर मीटर से कम होना चाहिए. 
2.     सकारात्मक नेट-वर्थ: बेची जा चुकी प्रॉपर्टी और वह प्रॉपर्टी जो अभी नहीं बिकी है को मिलाकर इनकी कुल कीमत कंस्ट्रक्शन में लगी रकम से बड़ी होनी चाहिए. 
3.    अधूरा नहीं होना चाहिए प्रोजेक्ट: कम से कम प्रोजेक्ट का 30% कंस्ट्रक्शन पूरा होना चाहिए. 
4.    RERA की मान्यता: प्रोजेक्ट को RERA के अंतर्गत रजिस्टर होना चाहिए 
5.    Lenders से मिलना चाहिए NOC: फण्ड प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि आपको प्रोजेक्ट के बाकी लेंडर्स से NOC (नो ओब्जेक्शन सर्टिफिकेट) प्राप्त हो. हर बैंक के पास अपना एक नोडल ऑफिसर होता है जो SWAMIH स्कीम की फंडिंग की देख रेख कर सकता है.

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