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FDI, FPI, FII में क्या अंतर होता है, आसान भाषा में समझिए

FDI ठीक ऐसे ही है जैसे अपने घर में रहना, आप उसकी देखभाल करते हैं, आप उस घर के मालिक होते हैं, उसकी टूट-फूट, जिम्मेदारियां सब आपकी होती है.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago

अखबार पढ़ते समय या टीवी पर खबरें देखते वक्त FDI, FII और FPI जैसे शब्द आपको अक्सर सुनने में आते होंगे. इन शब्दों के पीछे किसी भी देश की पूरी इकोनॉमी निर्भर करती है, लेकिन क्या आपको इनके मतलब पता है, अगर आपको नहीं पता तो चलिए हम आपको बताते हैं. और वो भी बिल्कुल बेहद आसान भाषा में 

FDI क्या होता है?
FDI इसका फुल फॉर्म होता है Foreign Direct Investment, मतलब ऐसा निवेश जो विदेश से डायरेक्ट भारत में हुआ हो. जब कोई कंपनी भारत में आकर कोई निवेश करती है, तो उसे विदेशी निवेश यानी Foreign Investment बोलते हैं. और जब कोई कंपनी भारत में आकर किसी दूसरी कंपनी के साथ मिलकर कोई बिजनेस शुरू करे, या अपनी ही किसी नई कंपनी की स्थापना करे या अपनी कोई सब्सिडियरी कंपनी खोले, तब उसे FDI कहते हैं. ऐसे निवेश में जब कोई कंपनी FDI के जरिए भारत की किसी कंपनी में पैसा लगाती है तो घरेलू कंपनी में विदेशी कंपनी की ओनरशिप भी होती है मैनेजमेंट में हिस्सेदारी भी होती है. 

उदाहरण के तौर पर मान लीजिए, एलन मस्क की कंपनी Tesla भारत में आती है और अपने इलेक्ट्रिक व्हीकल बेचने के लिए वो Tata Motors के साथ मिलकर काम करती हैं. इसके लिए दोनों कंपनियां मिलकर कोई ज्वाइंट वेंचर बनाती है, जिसमें Tata Motors और Tesla दोनों की हिस्सेदारी होती है, तब Tesla का निवेश FDI कहलाएगा, उसकी Tata Motors के साथ बिजनेस में ओनरशिप भी होगी और मैनेजमेंट अधिकार भी होंगे, बोर्ड में Tesla की जगह भी होगी. दोनों कंपनियों के बीच किया गया ये करार काफी लंबे समय के लिए होगा, इसमें से निकलना Tesla के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि ये निवेश काफी बड़ा होगा. 

एक और उदाहरण लीजिए, मान लीजिए Tesla किसी भी कंपनी के साथ करार नहीं करती है, और अपना खुद का ही एक प्लांट खोलती है. जहां वो इलेक्ट्रिक कारों की मैन्यूफैक्चरिंग करेगी. ये भी FDI कहलाएगा, क्योंकि Tesla भारत में अपना पूरा सेटअप स्थापित कर रही है, इसके लिए वो जमीन खरीदेगी, मशीनें खरीदेगी, लोगों को नौकरी पर रखेगी,  यानी Tesla भारत में रहकर अपना कारोबार करेगी. जैसे Apple और Samsung भारत में आईफोन बना रहे हैं. 

याद रहे कि FDI में कंपनियां भारत में आकर फैक्ट्री लगाती हैं, ब्रांच खोलती है, दुकानें खोलती हैं, इसलिए किसी भी देश के लिए FDI का आना उसकी इकोनॉमी के लिए अच्छा माना जाता है, क्योंकि ये लंबी अवधि का निवेश होता है. इसलिए सरकार भी ज्यादा से ज्यादा FDI भारत में आए, अपनी पॉलिसीज को लचकदार बनाती हैं. 

FPI क्या होता है. 
FPI का फुल फॉर्म होता है Foreign Portfolio Investment. FDI का फंडा क्लियर हो गया हो तो FPI को समझना मुश्किल नहीं. FPI में Portfolio शब्द पर ध्यान दीजिए, जब कोई विदेशी कंपनी या कोई निवेशक किसी दूसरे देश की कंपनी के शेयरों, बॉन्ड्स या डिबेंचर्स में निवेश करती है तो उसे FPI कहा जाता है. दरअसल, वो विदेशी कंपनी या निवेशक अपने निवेश का पोर्टफोलियो तैयार कर रही होता है, इसलिए इसे Foreign Portfolio Investment कहते हैं. FPI का ये निवेश स्टॉक एक्सचेंज के जरिए होता है, इसके लिए SEBI की मंजूरी लेनी होती है. 

मान लीजिए फेसबुक के फाउंडर मार्क जकरबर्ग को भारत की कंपनी Reliance बहुत पसंद है, लेकिन वो उनके साथ कारोबार नहीं करना चाहते, बस उनकी कंपनी में हिस्सेदारी चाहते हैं, तो वो रिलायंस के शेयरों को इक्विटी मार्केट से खरीद लेंगे. शेयरों की ये खरीद FPI कहलाएगी. इसमें मार्क जकरबर्ग को भारत आकर रिलायंस के साथ कोई करार करने की जरूरत नहीं है, न तो कोई ब्रांच खोलने की जरूरत है और न ओनरशिप या मैनेजमेंट अधिकारों की जरूरत है. वो सिर्फ उसके शेयरों को खरीदकर अपने पोर्टफोलियो में रख लेंगे, जब उन्हें लगेगा कि मुनाफा कमाने का वक्त आ गया है तो वो उसे बेचकर मुनाफा कमा लेंगे. जकरबर्ग के ऊपर इस निवेश में लंबी अवधि तक बने रहने की कोई मजबूरी नहीं होगी. इस मामले में FPI को हम FDI उलट मान सकते हैं.

FDI, FPI ठीक ऐसे ही है जैसे अपने घर में रहना और किराए के घर में रहना. FDI में आप एक घर खरीदते हैं, उसकी देखभाल करते हैं, आप उस घर के मालिक होते हैं, उसकी टूट-फूट, जिम्मेदारियां सब आपकी होती है. लेकिन FPI एक किराएदार की तरह होता है, वो घर का मालिक नहीं होता, घर की देखरेख की जिम्मेदारी भी उसकी नहीं होती, वो जब चाहे उसे छोड़कर जा सकता है. 

FII क्या होता है. 
FII का मतलब है  Foreign Institutional Investor. FII  भी एक तरह का विदेशी निवेश है, जिस तरह से FPI भारत की किसी कंपनी के शेयरों, बॉन्ड या डिबेंचर्स में निवेश करते हैं, ठीक वैसे ही जब किसी देश की वित्तीय संस्थाएं, जैसे- बीमा कंपनियां, म्यूचुअल फंड्स, पेंशन कंपनियां, बैंक्स और बड़ी बड़ी कंपनियां भारत के फाइनेंशियल मार्केट में आकर निवेश करती हैं तो उसे FII कहा जाता है. आप ध्यान दीजिए कि Foreign Institutional Investor में Institutional का मतलब संस्थानों से है. इसलिए जब किसी देश की बड़ी बड़ी वित्तीय संस्थाएं भारत के वित्तीय मार्केट में अपना पैसा लगाती हैं तो उसे  FII कहते हैं, जबकि FPI में कोई भी कंपनी या व्यक्ति भारत के फाइनेंशियल मार्केट में निवेश करता है. FII में आने वाला निवेश काफी बड़ा है रेगुलेटेड संस्थाओं का होता है, जबकि FPI का निवेश किसी व्यक्ति या कंपनी की ओर से किया जाने वाला निवेश होता है, जो कि FII के मुकाबले छोटा होता है. FIIs किसी भी देश के शेयर बाजार पर काफी असर रखता है. इसलिए अक्सर आप सुनते होंगे कि FIIs की बिकवाली की वजह से शेयर बाजार गिर गया. क्योंकि इनका शेयर बाजार में निवेश काफी बड़ा होता है. इसलिए FIIs के आने और जाने से बाजार में भारी उतार चढ़ाव देखने को मिलता है. 

 

 

 


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