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जीवन में ताकझांक को बखूबी दर्शाता है जयंती रंगनाथन का ‘मैमराजी’
इस उपन्यास की कहानी बहुत रोचक है, ऐसा लगता है जैसे सब कुछ आप अपने आसपास घटित होते हुए देख रहे हों.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 9 months ago
जयंती रंगनाथन ने हाल के वर्षों में लेखन में जितने प्रयोग किए हैं शायद ही किसी लेखक ने किए हों. उनके नए उपन्यास ‘मैमराजी’ को पढ़ते हुए यह विचार और पुख़्ता हुआ. छोटी सी रोचक कहानी है, लेकिन कस्बाई जीवन की तथाकथित सामाजिकता पर करारा व्यंग्य है. दिल्ली से शशांक नामक एक युवक भिलाई के स्टील प्लांट में इंजीनियर बनकर जाता है और वहां मैमराजी के फेर में आ जाता है. स्वीटी आंटी का किरदार ग़ज़ब गढ़ा है जयंती जी ने. महानगरीय जीवन से एक आदमी भिलाई नामक अलसाये हुए कस्बे में पहुंचता है और जैसे सारे शहर की नींद खुल जाती है. सबको एक नया काम मिल जाता है उस नये कुंवारे इंजीनियर के निजी जीवन में ताकझांक करना.
निजता का सवाल
मजाक मजाक में ही यह उपन्यास एक इंसान की निजता के सवाल को उठाता है. किस तरह तथाकथित सामाजिकता की आड़ में किसी के निजी जीवन का कोई महत्व ही नहीं रह जाता है - उपन्यास की कथा का यही विमर्श है. बहुत रोचक कहानी, लगता है जैसे सब कुछ आप अपने आसपास घटित होते हुए देख रहे हों. शशांक का जीवन जैसे लाइव शो हो जाता है शहर की मैमराजियों के लिए. बहुत करारा व्यंग्य है. स्वीटी मैम के किरदार में 1990 के दशक के टीवी धारावाहिक ‘हमराही’ की देवकी भौजाई की याद आ जाती है. साथ ही यह हाल में प्रकाशित अनुकृति उपाध्याय के उपन्यास ‘नीना आंटी’ की याद भी दिलाता है. किसी समानता के कारण नहीं बल्कि ये सारे किरदार भी कस्बाई जीवन की जड़ता को तोड़ने वाले हैं. उपन्यास हिन्द युग्म से प्रकाशित है.
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