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पुस्तक समीक्षा: जगजीत सिंह की जिंदगी के हर पहलू को छूती है ‘कहां तुम चले गए’

राजेश बादल ने इस किताब को इतनी गहन रिसर्च और बारीकियों के साथ लिखा गया है कि हाल के दिनों में उसकी दूसरी मिसाल नहीं मिलती.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago

दिनेश काण्डपाल, वरिष्ठ टीवी पत्रकार

कहां तुम चले गए... ये जगजीत सिंह की उस मशहूर गजल की लाइन है, जिसे तब तक गुनगुनाया जाएगा जब तक दुनिया में दर्द और उम्मीद ज़िंदा रहेगी. प्रख्यात गजल गायक जगजीत सिंह से सवाल पूछती ये जीवनी लिखी है वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने. इस किताब को इतनी गहन रिसर्च और बारीकियों के साथ लिखा गया है कि हाल के दिनों में उसकी दूसरी मिसाल नहीं मिलती. 14 चैप्टर वाली ये किताब श्रीगंगानगर से मुंबई तक के सफर में जगजीत के संघर्ष और स्टारडम के साथ-साथ उनके व्यक्तित्व की वो खास बातें बताती हैं, जो आज तक सार्वजनिक नहीं थीं. इस पुस्तक को पढ़ने के बाद आप जगजीत सिंह के जीवन के कई नए पहलुओं से वाकिफ होते हैं. पुस्तक के लेखक ने जीवनी लेखन की नई शैली सृजित की है, चूंकि लेखक ने एक लंबा वक्त टीवी पत्रकारिता में बिताया है इसलिये उस तरह की स्क्रिप्ट की छाप उनके लेखन पर भी पड़ती है.

भावनाओं का ज्वार भाटा
जगजीत सिंह का बचपन, जवानी, उनकी गायकी, तोड़ कर रख देने वाला संघर्ष, चित्रा जी का उनके जीवन में आना, शोहरत की ऊंचाइयां और जीवन का सागर से भी गहरा दुख, ये सब इस किताब में इस कदर पिरोया हुआ है कि आप पुस्तक पढ़ना शुरू करते हैं तो भावनाओं के ज्वार भाटे में ऐसे बह जाते हैं कि किनारा तभी मिलता है जब किताब खत्म हो जाती है. पुस्तक शुरू होती है जगजीत के पिता अमीन चंद से जो बाद में अमृत छक कर सिख हो गए. जगजीत के पिता के पंजाब से राजस्थान के श्रीगंगानगर आने में ही राजेश जी ने इतनी रिसर्च की है कि पाठक हैरान हो जाता है. जगजीत सिंह का जन्म जिस घर में हुआ केवल उसका फोटो ही नहीं है बल्कि उस दाई का नाम भी है जिसने जगजीत की मां का प्रसव करवाया. जगजीत सिंह के हुनर को बचपन से ही कैसे उनके पिता ने पहले पहचाना और फिर तराशा, मां ने कैसे आगे बढ़ाया, भाइयों ने किस तरह का सहयोग किया वो एक एक बात इस किताब का हिस्सा है. राजेश बादल तो जगजीत के बचपन के उन दोस्तों से भी मिल आए जो उनके साथ पतंग लूटने में होड़ लगाते थे.

बेटे की मौत का भी जिक्र
पहले पढ़ाई फिर गायकी, घर के इस सिद्धांत में कैसे जगजीत धारा के विपरीत बह चले, कैसे श्रीगंगानगर में उनके नाम के चर्चे होते थे, किस तरह से कॉलेज में अपनी धाक जमाने वाले जगजीत अचानक मुंबई का रुख कर लेते हैं और फिर कैसे संघर्षों का एक लंबा दौर चलता है, वो सब पढ़ते हुए लगता है मानो आप जगजीत सिंह के साथ साथ चल रहे हों. ये लेखक का कौशल ही है. मायानगरी में कैसे जगजीत सिंह का मुकद्दर बना, ज़िंदगी में चित्रा जी कैसे आईं और फिर कैसे ये जोड़ी शिखर पर पहुंची उसे लेखक ने अपने शब्दों में इस तरह गुंथा है कि भावनाएं उमड़ कर आंखों से बरस पड़ती हैं. जीवन में हुए वज्रपात के बाद कैसे जगजीत बाहर निकले और चित्रा का क्या हुआ वो तो ये किताब बताती है, साथ ही लेखक ने उनके बेटे के विषय में कुछ ऐसे तथ्य भी बताए हैं जो अभी भी बहुत कम लोग ही जानते हैं. कैसे जगजीत और चित्रा के बेटे विवेक की मौत से जुड़ा सच सामने लाने के लिए उनकी बहन ने जद्दोजहद की, इसकी पूरी रिपोर्ट इस किताब में लिखी है.

दिल के मरीज सावधान
किताब का 10वां चेप्टर पढ़ने से पहले दिल के मरीज सावधानियां बरतें, क्योंकि इसमे वो कहानी है जो शर्तिया तौर पर आपको रुला देगी. एक तो जगजीत और चित्रा की ज़िंदगी में आया भूचाल ऊपर से लेखक ने शब्दों को पीड़ा के धागे में इस तरह पिरोया है कि मेरे जैसे पाठक इसे पढ़ते वक्त गहरे आकाश की ओर देखने लगते हैं. किताब में बहुत दुर्लभ फोटोग्राफ्स हैं, जो इसे बेहद खास बना देतें हैं. बड़े-बड़े गायकों के साथ जगजीत सिंह की केमिस्ट्री तो बताई ही है, लता जी कैसे जगजीत सिंह के लिए एक बार वरदान साबित हुईं वो भी आपको इसमें मिलेगा. 

अपने आप में नई किताब
जगजीत सिंह की चुनिंदा गजलों का ज़िक्र किताब में है. हालांकि जगजीत सिंह के गाये मीरा के भजनों ने कैसे उन्हें गजल और फिल्मी गीत न सुनने वालों के बीच भी पहुंचा दिया इसका जिक्र शायद आने वाले एडिशन में राजेश जी करेंगे. जगजीत सिंह का गाया हे राम करो़ड़ों भजन प्रेमियों के घरों में आज भी हर रोज बजता है. ये अपने आप में नई किताब है, क्योंकि जीवनी लेखन की ऐसी शैली कहीं और नहीं मिलती. जगजीत सिंह के नाम भर को जानने वाला हर शख्स इसे पढ़ना शुरू करेगा तो फिर आखिरी पेज पर ही रुकेगा. मंजुल प्रकाशन से छपी इस पुस्तक की कीमत महज 699 रुपए है.  
 


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