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भारतीय प्रतियोगिता कानून नियम में हो सकता है बड़ा परिवर्तन
इस संवाद में ‘एंटीट्रस्ट 2.0: प्रतियोगिता (संशोधन) विधेयक, 2022 एवं अन्य परिवर्तन’ पर राउंडटेबल वार्ता की गई.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
नई दिल्ली: भारतीय प्रतियोगिता कानून नियम में आने वाले महीनों में बड़ा परिवर्तन होने की उम्मीद है, जो खासकर प्रतियोगिता (संशोधन) विधेयक, 2022 से शुरू होगा. यह विधेयक, अपने मौजूदा रूप में, ‘ईज ऑफ डूईंग बिजनेस’ को बढ़ावा देने और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करता है. हालांकि, इसमें कुछ कमियां हैं, जो इसके क्रियान्वयन से पहले दूर की जानी जरूरी हैं. इसके अलावा, डिजिटल परिवेश में भी डिजिटल मार्केट्स यूनिट (डीएमयू) और एक डिजिटल इंडिया एक्ट को शामिल किया जा सकता है ताकि भारत में डिजिटल व्यवसायों के लिए एक पूर्वानुमान आधारित प्रणाली स्थापित हो. लगातार विकसित होते हुए भारतीय बाजार और नीति के परिवेश में डिजिटल प्लेयर्स पर कड़े अनुपालन का भार लागू करने के जोखिम से बचने के लिए इन नियमों की व्यवहारिकता का आकलन किया जाना जरूरी है.
इस संवाद में ‘एंटीट्रस्ट 2.0: प्रतियोगिता (संशोधन) विधेयक, 2022 एवं अन्य परिवर्तन’ पर राउंडटेबल वार्ता की गई, ताकि भारत के एंटीट्रस्ट प्रणाली के भविष्य के लिए सुझाव एवं विचार दिए जा सकें. इस वार्ता में पैनल में शामिल औद्योगिक विशेषज्ञों द्वारा कुछ प्रारंभिक सिफारिशें की गईं.
- यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इस विधेयक पर एक विस्तृत परामर्श की प्रक्रिया का पालन हो, तथा मुख्य अंशधारकों के साथ इस विधेयक के क्रियान्वयन एवं लागू किए जाने की पेचीदगियों के बारे में वार्ता हो.
- प्रभावशाली पद के दुरुपयोग के आरोपों को प्रभाव-आधारित परीक्षण के अधीन होना चाहिए ताकि इसे अधिनियम की प्रकृति अनुरूप बनाया जा सके.
- बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) छूट का विस्तार प्रभुत्व के मामलों के दुरुपयोग तक किए जाने पर विचार होना चाहिए.
- यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक मार्गदर्शन मिलना चाहिए कि डील वैल्यू थ्रेशोल्ड एवं स्थानीय सांठगांठ की जरूरतों को अधिनियम में सुसंगत तरीके से क्रियान्वित किया गया हो.
- भारतीय नीति और बाजार की वास्तविकताओं के संदर्भ में पूर्वानुमान आधारित ढांचे की व्यवहारिकता पर ध्यान दिया जाना चाहिए, और क्या इस ढांचे की जरूरत है, इस पर विचार होना चाहिए.
मिस निरुपमा सुंदरराजन, इकॉनॉमिस्ट एवं सीईओ, पहले इंडिया फाउंडेशन ने शुरुआत करते हुए कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रतियोगिता की यह प्रणाली किसी दूसरे देश के नियमों से कॉपी-पेस्ट न की गई हो. उन्होंने कहा, "बाजार की वास्तविकताओं को उनकी जगह रखना जरूरी है और ये विधान बनाते वक्त सख्त व कठोर नहीं होना चाहिए. भारतीय बाजार लगातार विकास कर रहे हैं, इसलिए व्यवसायों की पूंजी के आकार व उत्पत्ति के आधार पर नियामक मध्यस्थता से बचा जाना चाहिए. एंटीट्रस्ट के मूलभूत सिद्धांतों को सेक्टर, कंपनी के आकार, कंपनी की उत्पत्ति, या ऐसे अन्य मानकों से अप्रभावित होना चाहिए."
श्री राहुल राय, पार्टनर एवं को-फाउंडर, एग्जियॉम लॉ चैंबर्स ने कहा, "आईपीआर का अपवाद विधेयक की धारा 4 में स्पष्ट रूप से बनाया जाना चाहिए. इसकी अनुपस्थिति में, आयोग के पास प्रभुत्व के दुरुपयोग के आरोपों की जाँच करते हुए आईपीआर धारकों द्वारा लगाए गए तर्कपूर्ण और आवश्यक प्रतिबंधों पर विचार करने की वैधानिक शक्ति का अभाव है. आईपीआर धारकों द्वारा अपनी बौद्धिक संपदा का व्यवसायीकरण करते हुए लागू किए जाने वाले तर्कपूर्ण एवं आवश्यक प्रतिबंधों की निंदा करने के लिए आयोग अक्सर प्रतियोगिता अधिनियम के शाब्दिक अर्थ पर निर्भर रहा है. इसी दृष्टिकोण को जारी रखने से अभिनवता और उद्यमशीलता का दम घुट जाएगा."
श्री समीर आर. गांधी, पार्टनर एवं को-फाउंडर, एग्जियॉम लॉ चैंबर्स ने कहा, "हमारे पास आईपीआर को सुरक्षित रखने के लिए एक समानांतर आईपीआर प्रणाली द्वारा पहले से सुरक्षा मौजूद है. प्रतियोगिता अधिनियम द्वारा पेटेंट धारकों को सीमित अवधि के लिए अपना एकाधिकार सुरक्षित रखने का अधिकार मिलना चाहिए और अधिनियम की धारा 4 में आईपीआर अपवाद को शामिल किया जाना चाहिए."
उन्होंने कहा, "डीएमए जैसा एक अंतर्राष्ट्रीय नियम यूरोप के लिए ठीक हो सकता है, जहां अनेक राष्ट्रीय प्रतियोगिता प्राधिकरण हैं, लेकिन भारत में इसकी जरूरत नहीं, जहां पहले से ही संघीय सीसीआई है, जिसके पास नियामक और न्यायिक, दोनों शक्तियां हैं."
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