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अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: क्या शिक्षा प्रणाली में शामिल होना चाहिए योग?
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर बिज़नेस वर्ल्ड ने किसी न किसी रूप से योग से जुड़े लोगों से यह जाना कि क्या इसे शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाना चाहिए?
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
आज यानी 21 जून को पूरी दुनिया अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मना रही है. योग की शुरुआत भारत में प्राचीनकाल से ही हो गई थी. हमारे साधु-संत योग से खुद को निरोगी और स्वस्थ रखा करते थे. कोरोना काल ने योग की अहमियत एक बार फिर से लोगों को समझा दी है. मौजूदा वक्त में बड़े पैमाने पर योग किया जा रहा है. ऐसे में एक सवाल जायज है कि क्या योग को भारतीय शिक्षा प्रणाली में शामिल नहीं किया जाना चाहिए? बिज़नेस वर्ल्ड की स्नेहा पैत्रो ने इस संबंध में योग से किसी न किसी रूप में जुड़े लोगों से बात की.
हर स्टूडेंट के लिए ज़रूरी योग
योगगुरु शैलेंद्र कहते हैं, शिक्षा की आधुनिक शैली में अनुशासन, सकारात्मक प्रेरणा और सबसे बढ़कर जीवन विज्ञान या साइंस ऑफ़ लिविंग जैसी कई महत्वपूर्ण बातों का अभाव है. पहले के समय में साइंस ऑफ़ लिविंग स्कूल के पाठ्यक्रम का एक हिस्सा थी, लेकिन आधुनिक प्रतिस्पर्धी दुनिया में ये महत्वपूर्ण पाठ हमारे स्कूलों और कॉलेजों से गायब हैं. स्टूडेंट्स केवल ऑनलाइन गतिविधियों में मशगूल हैं. खासतौर पर सोशल मीडिया और ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म पर. शारीरिक गतिविधियां, जैसे कि खेल, योग, एथलेटिक्स आदि से दूर रहने के चलते वे लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों और तनाव से ग्रस्त हो जाते हैं. तनाव उच्च रक्तचाप, अस्थमा, मधुमेह, जोड़ों के दर्द का कारण है. योग शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक संतुलन बनाए रखने के लिए सभी स्तरों पर काम करता है. आसन, प्राणायाम और ध्यान हर छात्र के लिए जरूरी है'.
‘स्कूलों में तैयार होती है नींव’
RouteIn Yoga के संस्थापक अखिल गोरे ने कहा, 'योग को स्कूलों/कॉलेजों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए. क्योंकि स्कूल ही वो जगह है जहां बच्चों की नींव तैयार होती है. यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि प्रत्येक नागरिक अपनी उम्र के समान कुशल बने. यदि बच्चों को पता हो कि अपने शरीर को ठीक से कैसे प्रबंधित करना है, तो यह स्वास्थ्य सेवा का सबसे अच्छा प्रबंधन होगा'.
उन्होंने आगे कहा, 'ऑब्जर्वेशन एक कुंजी है जो जागरुकता की ओर ले जाती है और स्थिरता एक ऐसी कुंजी है जो बेहतर प्रबंधन की ओर ले जाती है. एक बार जब युवा योगाभ्यास में शामिल होने लगेंगे, तो वे स्वतः ही अपने शारीरिक बल और मानसिक दशा की प्रकृति को ऑब्जर्व करना शुरू कर देंगे. जब वे अपने सकारात्मक पक्ष का पता लगा लेंगे तो वे परिणाम देने की पूरी कोशिश करेंगे. आजकल के युवाओं की एक मुख्य समस्या है अस्थिरता. जिसकी वजह से वह ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ रहते हैं. यदि आप अपनी जीवन शैली का सही से प्रबंधन करते हैं, तो आप सबकुछ ठीक ढंग से प्रबंधित करने लगते हैं, और योग इसमें कारगर भूमिका निभा सकता है'.
चरित्र को देता है आकार
अक्षर योग अनुसंधान और विकास केंद्र के संस्थापक हिमालयन सिद्ध, अक्षर ने कहा कि अकादमिक शिक्षा के साथ-साथ योग को स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में जल्द से जल्द शामिल किया जाना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि यह संचार, व्यवहार और अंतर-व्यक्तिगत कौशल अकादमिक विषयों को पढ़ने-समझने जितना ही महत्वपूर्ण है. जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है स्वास्थ्य और बच्चे जितना जल्दी अपनी वेलबीइंग के बारे में जानेंगे उनके लिए उतना ही बेहतर रहेगा’.
उन्होंने आगे कहा, 'योग अभ्यास से न केवल आपके शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य का विकास होता है, बल्कि यह आपके चरित्र को भी आकार देता है, और आपको भीतर से सकारात्मकता और आत्मविश्वास प्राप्त करने में सक्षम बनाता है. बहुत से युवा अपनी खान-पान संबंधी आदतों, अपर्याप्त नींद और अनियमित जीवनशैली के कारण कई तरह की हेल्थ प्रॉब्लम्स से पीड़ित हैं. योग इन समस्याओं को दूर करने में उनकी मदद कर सकता है'.
बड़ी आबादी अभी भी दूर
योग विशेषज्ञ मनीषा शर्मा ने कहा, 'योग दिवस का हिस्सा बनने वालों की संख्या में भले ही बढ़ोत्तरी हो रही हो, लेकिन इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि दुनिया की लगभग दो तिहाई आबादी को अभी से इससे दूर है. यदि हमें लगता है कि योग समग्र रूप से मानव जाति के लिए सकारात्मक बदलाव ला रहा है, तो हमें भारतीय परंपरा के इस अनमोल उपहार को युवाओं तक पहुंचाना चाहिए. शिक्षा प्रणाली में योग को शामिल करने से यह उनकी जीवशैली में खुद ब खुद शामिल हो जाएगा. यदि बच्चे कम उम्र से ही योग से परिचित होंगे, तो वे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनेंगे’.
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