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Vaping: महामारी की तरह किशोरों को अपनी गिरफ्त में ले रही E-Cigarette

तंबाकू में निकोटिन वह रसायन है जो आपके अंदर धूम्रपान की इच्छा उत्पन्न करता है. जब कोई व्यक्ति सिगरेट पीता है, तो कश लेने के कुछ सेकंड के भीतर निकोटिन उसके दिमाग में पहुंच जाता है.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 11 months ago

  • डॉ रिया गुप्ता, डेंटल सर्जन और Certified Tobacco Cessation स्पेशलिस्ट

इस विश्व तंबाकू निषेध दिवस (31 मई) पर, धूम्रपान में एक नए चलन यानी वैपिंग , इसके हानिकारक प्रभावों और इसे कैसे छोड़ें, आदि के बारे में जागरुकता फैलाना महत्वपूर्ण है. वैपिंग को ई-सिगरेट (इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट/वेप पेन/पेन हुक्का के रूप में भी जाना जाता है) नामक एक उपकरण द्वारा उत्पादित निकोटिन और सुगंधित पदार्थों से युक्त वाष्प को सांस द्वारा अंदर लेने और छोड़ने की क्रिया के रूप में जाना जाता है.

वैपिंग कैसे विकसित हुई?
तंबाकू के सेवन का इतिहास लगभग 8000 साल पुराना है. तंबाकू में औषधीय गुण होने का दावा किए जाने के बाद यूरोप और चीन में इसने व्यापक लोकप्रियता हासिल की. भारत में, शुरुआत में इसका इस्तेमाल धूम्रपान (हुक्का) के लिए एक उत्पाद के रूप में किया जाता था और फिर धीरे-धीरे धूम्ररहित रूपों (जैसे पान, खैनी) में किया जाने लगा. तंबाकू के इस्तेमाल को अधिक सुलभ बनाने के लिए बाद में इसे सिगरेट के तौर पर विकसित किया गया. लेकिन धीरे-धीरे मानव स्वास्थ्य पर तंबाकू सेवन के दुष्प्रभावों को पहचाना गया जिसके कारण सिगरेट के धुएं के खिलाफ व्यापक अभियान चलाए गए. सिगरेट बट में सिगरेट उत्पादों के अधूरे दहन (combustion) के कारण सिगरेट को हानिकारक माना जाता है. इससे निपटने के लिए HTP’s (Heated Tobacco products) और ई-सिगरेट मार्केट में पेश किए गए. HTP में, तंबाकू को सिगरेट की तरह जलाया नहीं जाता. बल्कि उसे केवल हीट किया जाता है. इसे IQOS “I Quit Ordinary Smoking के रूप में प्रचारित किया जाता है.

दरअसल, तंबाकू इंडस्ट्री इरादा अपनी रिवेन्यु स्ट्रीम्स में विविधता लाना और नई पीढ़ी को अपने उत्पादों से जोड़ने का था, क्योंकि उसे समझ आ गया था कि यदि बीमारियों के डर से उसके मौजूदा ग्राहक सिगरेट छोड़ते हैं या दुनिया छोड़ जाते हैं, तो उनका बिजनेस बुरी तरह प्रभावित हो जाएगा. इसलिए ई-सिगरेट को विकसित किया गया. पहली ई-सिगरेट चीन में वर्ष 2003 में विकसित की गई थी. इन ई-सिगरेट की कम नुकसान वाले उत्पाद के रूप में मार्केटिंग की जाती है, न कि जोखिम मुक्त उत्पादों के रूप में. ई-सिगरेट के मुख्य घटक को ई-लिक्विड कहा जाता है, जिसमें निकोटिन होता है.

निकोटिन की लत क्यों लगती है?
तंबाकू में निकोटिन वह रसायन है जो आपके अंदर धूम्रपान की इच्छा उत्पन्न करता है. जब कोई व्यक्ति सिगरेट पीता है, तो कश लेने के कुछ सेकंड के भीतर निकोटिन उसके दिमाग में पहुंच जाता है. दिमाग में निकोटिन डोपामाइन जैसे ब्रेन कैमिकल रिलीज करता है. इससे जिस मात्रा में डोपामाइन रिलीज किया जाता है, वो मात्र किसी अन्य गतिविधि से उत्पन्न होने वाले डोपामाइन से काफी ज्यादा होती है. उदाहरण के तौर पर जब हम सेब जैसी स्वादिष्ट चीज खाते हैं तो मस्तिष्क डोपामाइन रिलीज करता है. डोपामाइन व्यक्ति को अच्छा महसूस कराता है. कुछ पढ़ने, सैर करने, संगीत सुनने आदि से भी डोपामाइन रिलीज होता है. लेकिन भोजन के माध्यम से रिलीज होने वाले  डोपामिन की मात्रा हमेशा अन्य गतिविधियों से अधिक होती है. उदाहरण के तौर पर अगर आप 2 दिन बिना भोजन और गतिविधियों के रहते हैं तो आपके शरीर को गतिविधियों के बजाय भोजन की इच्छा ज्यादा होगी. इसे उत्तरजीविता के पदानुक्रम के रूप में जाना जाता है.
अब शरीर सोचता है कि निकोटिन भोजन से ज्यादा महत्वपूर्ण है. इस तरह निकोटिन हमारे उत्तरजीविता के पदानुक्रम में पहले स्थान को हाईजैक कर लेता है. लिहाजा तंबाकू का सेवन करने वाले को लगता है कि बिना उसके वो मर जाएगा. यह व्यसन यानी लत लगने की अत्यधिक चरम अवस्था है. अब यह सिर्फ एक बुरी आदत ही नहीं बल्कि दिमागी बीमारी भी है. यह रोग आकस्मिक प्रयोग से बढ़ सकता है.

किशोर अधिक संवेदनशील
शोधों से पता चलता है कि किशोर निकोटिन की लत के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं क्योंकि वे अभी भी अपने विकासशील चरण में होते हैं और उनका मस्तिष्क निकोटिन द्वारा जारी डोपामाइन की झूठी भावना के प्रति संवेदनशील है. इसके विपरीत, 21 वर्ष की आयु तक इन हानिकारक पदार्थों को उनके उत्तरजीविता के पदानुक्रम से हटाना अपेक्षाकृत अधिक कठिन हो जाता है. निम्नलिखित संस्कृत श्लोक में व्यसन को इस रूप में अभिव्यक्त किया गया है, जैसे कि बिल्ली किसी भी सूरत में चूहे को कभी नहीं छोड़ती; मनुष्य कितना भी गरीब क्यों न हो, तंबाकू का सेवन नहीं छोड़ता. व्यसन या लत की इस प्रक्रिया को सिगरेट कंपनियां अच्छी तरह समझती हैं और वे इसका फायदा उठाती हैं.

ई-सिगरेट क्या है?
ई-सिगरेट और कुछ नहीं बल्कि सिगरेट का एक फैंसी रूप है.
ई-सिगरेट में 3 भाग होते हैं:
1. कार्टिज
2. हीटिंग एलिमेंट या एटमाइजर
3. रीचार्जेबल बैटरी
कार्ट्रिज में ई-लिक्विड (प्रोपीलीन ग्लिसरॉल, निकोटिन, विटामिन ई- एसीटेट से प्राप्त फ्लेवर) शामिल है. इसमें मिलाये गए कुछ पदार्थ रासायनिक यौगिक हैं, जैसे कि प्रोपलीन ऑक्साइड, एक्रोलिन, एसीटैल्डिहाइड, फॉर्मलाडिहाइड, एसिटामाइड, धातु के कण (कॉपर, निकेल और सिल्वर) और सिलिकेट कण. अधिकांश लोग इस मिथक के शिकार हैं कि ई-सिगरेट पारंपरिक सिगरेट की तरह हानिकारक नहीं है, लेकिन सच्चाई यह है कि ई-सिगरेट पारंपरिक सिगरेट की तरह ही हानिकारक होती है. इन उपकरणों में ई-लिक्विड एरोसोल में परिवर्तित हो जाता है न कि वाष्प बनकर उड़ जाता है.

जागरुकता की कमी, खुद को कूल दिखाने की ललक, आकर्षक पैकेजिंग के चलते किशोरों द्वारा वैपिंग उत्पादों के उपयोग में वृद्धि हुई है. द लैंसेट के अनुसार, दुनिया भर में वैपिंग की बिक्री 2018 में 15.7 बिलियन डॉलर की थी और इसके 2023 तक 40 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. नेशनल यूथ टोबैको सर्वे, 2022 के अनुसार हाई स्कूल के 2.14 मिलियन छात्र ई-सिगरेट का उपयोग करते हैं. ई-सिगरेट कंपनियां अपने उत्पाद का "तंबाकू निषेध उत्पाद" के रूप में प्रचार करती हैं, लेकिन ई-लिक्विड में निकोटिन होता है, इसलिए FDA अभी भी इसे तंबाकू उत्पाद मानता है.

ई-सिगरेट और वैपिंग के हानिकारक प्रभाव क्या हैं?
फेफड़ों के रोग
2019 में, रोग नियंत्रण केंद्र ने EVALI शब्द गढ़ा, जिसका मतलब है ई-सिगरेट या वैपिंग उत्पादों के इस्तेमाल से फेफड़ों को नुकसान पहुंचता है. एक अन्य हानिकारक प्रभाव ई-सिगरेट में मौजूद डायसेटाइल के कारण होता है, जिसे ‘पॉपकॉर्न लंग इंजरी’ कहा जाता है, जो सांस लेने को बदतर बना देता है. फेफड़े के ऊतकों को नुकसान अन्य स्वास्थ्य जटिलताओं को जन्म दे सकता है. युवा किशोर जो जल्दी धूम्रपान करते हैं, उनमें हृदय रोग होने की संभावना अधिक होती है.
हृदय स्वास्थ्य
एरोसोल रक्त वाहिकाओं को कठोर बनाकर रक्त वाहिकाओं के कार्य को बाधित करता है, जिससे पूरे शरीर में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है और रक्त के थक्के जमने या दिल के दौरे का खतरा बढ़ जाता है.
मुंह एवं दातों से जुड़े रोग 
ई-सिगरेट का मीठा स्वाद आकर्षक लगता है, लेकिन इससे दांतों की सड़न और मसूड़ों की समस्या हो सकती है. वैपिंग में मुंह के कैंसर के तत्व भी पाए गए हैं. इसके अलावा, प्रजनन संबंधी समस्याएं, कैंसर, पेट से जुड़ी समस्याएं भी ई-सिगरेट की वजह से हो सकती हैं. इसका सेवन नर्वस सिस्टम पर भी नेगेटिव असर डालता है. ई-सिगरेट पीने वालों को Diabetes और बाधित नींद की शिकायत भी हो सकती है. वैपिंग न केवल श्वसन प्रणाली बल्कि प्रतिरक्षा प्रणाली को भी नुकसान पहुंचाता है, जिससे कोविड संक्रमण की आशंका भी बढ़ जाती है.

साइड स्ट्रीम स्मोक
आमतौर पर यह माना जाता है कि केवल वैपिंग (फर्स्ट हैंड स्मोक) करने वाले व्यक्ति को ही बीमारियों का खतरा है, लेकिन वैपर द्वारा छोड़े गए एरोसोल को उसके आस-पास के लोग आसानी से सांस द्वारा अंदर ले सकते हैं (जिन्हें सेकंड हैंड स्मोक कहा जाता है). सेकंड हैंड स्मोक से अस्थमा, कोरोनरी हृदय रोग, फेफड़ों का कैंसर और कई अन्य बीमारियां हो सकती हैं. यहां तक कि इससे अकाल मृत्यु भी हो सकती है.

एरोसोल के जहरीले अवशेष जो धुआं साफ होने के बाद सतह और धूल से चिपक जाते हैं, उन्हें थर्ड हैंड स्मोक के रूप में जाना जाता है/ यह थर्ड हैंड स्मोक या तो बना रह सकता है, फिर से उत्पन्न हो सकता है या पर्यावरण में अन्य हानिकारक रसायनों के साथ प्रतिक्रिया करके जहरीले रसायन बना सकता है. यह थर्ड हैंड स्मोक छोटे बच्चों और पालतू जानवरों के लिए एक संभावित स्वास्थ्य खतरा है.

ई-सिगरेट का इस्तेमाल करने वाले अक्सर यह कहते हैं कि इससे उन्हें तनाव दूर करने में मदद मिलती है, लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? कई रिसर्च में यह बात गलत साबित हुई है. रिसर्च बताती हैं कि धूम्रपान चिंता और तनाव को बढ़ाता है. दरअसल, निकोटिन तुरंत राहत का अहसास पैदा करता है, इसलिए इसका सेवन करने वालों को लगता है कि उनका तनाव या चिंता कम हो रही है.  

ई-सिगरेट बनाम पारंपरिक सिगरेट, कौन अधिक खतरनाक?
तंबाकू मुक्त उत्पाद के रूप में ई-सिगरेट के नाम पर लोगों को गुमराह किया जा रहा है और उन्हें इसका उपयोग नहीं करना चाहिए. ई-सिगरेट को कम हानिकारक बताकर बेचा जाता है, लेकिन ये तंबाकू उत्पादों जितनी ही हानिकारक है. चूंकि किशोरों में ई-सिगरेट के इस्तेमाल के मामले बढ़ रहे हैं, ऐसे आप कुछ बातों पर ध्यान देकर पता लगा सकते हैं कि कहीं आपका बच्चा भी तो इसकी गिरफ्त में नहीं है. उदाहरण के तौर पर यदि आपके बच्चे से फल या कैंडी जैसी गंध आती है, उसे अस्पष्ट खांसी है, मुंह में छाले पड़ रहे हैं, प्यास ज्यादा लगती है, नाक से खून आ जाता है, वो बार-बार अपना गला साफ करता है, उसमें चिड़चिड़ापन बढ़ गया है या उसका मूड जल्दी-जल्दी बदलता रहता है, तो समझ लीजिये कि कुछ गड़बड़ है.

ऐसे निकालें इस जाल से बाहर
यदि आपका बच्चा ई-सिगरेट के जाल में फंस गया है, तो आपको उसे उससे बाहर निकालना होगा. इसके लिए आप उसे अच्छे-बुरे का फर्क समझाएं, उसकी बातों को भी सुनें. उसका ध्यान दूसरी चीजों की तरफ आकर्षित करें और यदि जरूरत हो तो किसी विशेषज्ञ से परामर्श लें. तंबाकू की लत छोड़ने के लिए 7D का सिद्धांत अपनाएं. Drink Water – यानी ज्यादा पानी पीयें. हर रोज कम से कम 8 से 10 ग्लास पानी पीयें. Deep Breathing Exercises – यानी गहरी सांस लें, कम से कम 10 बार प्राणायाम करें. Delay -यानी वैपिंग के समय को बढ़ाएं. प्रत्येक वैपिंग के बीच कम से कम 1 घंटे का समय बढ़ाएं. Distract – यानी अपना ध्यान सिगरेट से भटकाने के लिए अपनी पंसद के दूसरे कामों पर दें. Diet -संतुलित आहार लें. Discuss – परिवार के साथ अपनी समस्याओं पर बातचीत करें. Drugs (SNRT’s) – एक्सपर्ट्स के मार्गदर्शन में Nicotine Replacement Therapy लें. 

वैपिंग छोड़ने के क्या फायदे हैं?
20 मिनट के बाद: रक्तचाप और नाड़ी सामान्य हो जाती है. हाथ पैर गर्म होने लगते हैं.
8 घंटे बाद: रक्त में कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर सामान्य हो जाता है. आप अधिक ऊर्जावान महसूस करते हैं.
24 घंटे के बाद: हार्ट अटैक की संभावना कम हो जाती है.
48 घंटे के बाद: गंध और स्वाद की भावना में सुधार होता है.  
72 घंटे के बाद: ब्रोन्कियल ट्यूब आराम की मुद्रा में आ जाते हैं
2 सप्ताह से 3 महीने के बाद: परिसंचरण, फेफड़े की कार्यक्षमता और स्टेमिना में सुधार होता है
1 महीने से 9 महीने के बाद: खांसी और सांस की तकलीफ कम हो जाती है.
1 साल बाद: धूम्रपान करने वालों की तुलना में हृदय रोग का खतरा आधा हो जाता है.
5 साल बाद: स्ट्रोक और सर्वाइकल कैंसर का जोखिम धूम्रपान न करने वाले के समान ही होता है. मुंह, गले, ग्रासनली और मूत्राशय के मौखिक कैंसर का जोखिम आधा हो जाता है.
10 साल बाद: फेफड़े के कैंसर का खतरा धूम्रपान करने वाले की तुलना में आधा होता है. अग्न्याशय के कैंसर का जोखिम कम हो जाता है.
15 साल बाद: हृदय रोग और मृत्यु का खतरा कम रहता है. 

एक किशोर के रूप में यह तय करना बहुत महत्वपूर्ण है कि आप किस तरह का जीवन जीना चाहते हैं, निकोटिन का गुलाम जीवन या सिद्धि और सफलता से भरा जीवन. 


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