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मिल गई कैंसर के इलाज की दवा? मौत की कगार पर थी NRI महिला, बच गई जान!
इससे पहले डेविड का 15 महीने तक इलाज चला था और वो सही होकर के वापस भी आ गई थी, लेकिन कैंसर फिर से वापस आ गया. उसके बाद उसे ट्रीटमेंट के दौरान ट्रायल के लिए ऑफर किया गया.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
नई दिल्ली/लंदनः मैंचेस्टर में रहने वाली एक भारतीय मूल की महिला जो ब्रेस्ट कैंसर की वजह से कुछ महीनों के लिए जीने वाली थी, उसको यूके के एक अस्पताल में नई दवा के लिए हुए क्लिीनिकल ट्रायल में नई जिंदगी मिल गई है. अब 51 साल की जैसमीन डेविड अपनी सितंबर में आने वाली 25वीं एनीवर्सरी को भी सही से मना सकेगी.
नेशनल हेल्थ सर्विस ने किया था ट्रायल
नेशनल हेल्थ सर्विस ने दो साल तक डेविड पर एक नई दवा का ट्रायल किया था, जो कि National Institute for Health and Care Research (NIHR) के द्वारा क्रिस्टी एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट के द्वारा संचालित National Institute for Health and Care Research (NIHR) अस्पताल में भर्ती थी. इस ट्रायल में Atezolizumab के कॉम्बिनेशन वाली दवा का टेस्ट किया गया था, जो डेविड हर तीसरे हफ्ते लेती थी.
पहले चला था 15 महीने इलाज
इससे पहले डेविड का 15 महीने तक इलाज चला था और वो सही होकर के वापस भी आ गई थी, लेकिन कैंसर फिर से वापस आ गया. उसके बाद उसे ट्रीटमेंट के दौरान ट्रायल के लिए ऑफर किया गया. डेविड के दो बच्चे हैं जो बड़े हो गए हैं और वो खुद इलाज से पहले एक वृद्धाश्रम में काम कर रही थीं.
2017 में पता चला कैंसर
डेविड को 2017 में पहली बार ब्रेस्ट कैंसर का पता चला जब उन्हें निपल के ऊपर एक गांठ दिखी.अप्रैल 2018 में छह महीने की कीमोथेरेपी और एक मास्टक्टोमी से गुजरना पड़ा, इसके बाद रेडियोथेरेपी के 15 राउंड्स ने उसके शरीर को कैंसर से मुक्त कर दिया.
अक्टूबर में वापस आया कैंसर
फिर अक्टूबर 2019 में कैंसर वापस आ गया और स्कैन में उसके पूरे शरीर में कई घाव दिखाई दिए. कैंसर फेफड़े, लिम्फ नोड्स और छाती की हड्डी में फैल गया था और बताया गया था कि उसके पास जीने के लिए एक वर्ष से भी कम समय है. दो महीने बाद, जब और कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था, तब उसको नई दवा के ट्रायल में शामिल होने का ऑफर दिया गया. ट्रायल शुरू होने के बाद जून 2021 में स्कैन के दौरान, उसके शरीर में कोई मापने योग्य कैंसर कोशिकाएं नहीं दिखाई दीं और उसे कैंसर मुक्त माना गया. वह दिसंबर 2023 तक इलाज पर रहेगी, ताकि तब तक बीमारी का कोई सबूत नहीं दिखे.
द क्रिस्टी में मैनचेस्टर सीआरएफ के मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट और क्लीनिकल डायरेक्टर प्रोफेसर फियोना थिस्टलेथवेट ने कहा हम वास्तव में खुश हैं कि जैस्मीन का इतना अच्छा परिणाम रहा है. द क्रिस्टी में हम लगातार नई दवाओं और उपचारों का परीक्षण कर रहे हैं ताकि यह देखा जा सके कि क्या वे अधिक लोगों को लाभान्वित कर सकते हैं.
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