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कैसे दूर होंगी डाइग्नोसिस की खमियां? पढ़ें BW HealthCare इवेंट में क्या बोले एक्सपर्ट्स
BW हेल्थकेयर एक्सीलेंस अवॉर्ड्स सेरेमनी में एक्सपर्ट्स ने इस विषय पर अपने विचार पेश किए कि कैसे डाइग्नोसिस में खामियों को दूर किया जा सकता है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
किसी मरीज को कितनी जल्दी ठीक किया जा सकता है, यह काफी हद तक सटीक डाइग्नोसिस पर निर्भर करता है. कई बार डाइग्नोसिस में खामियां आ जाती हैं, जिसकी वजह से मरीज और डॉक्टर दोनों को अपने-अपने स्तर पर परेशानियों का सामना करना पड़ता है. क्या टेक्नोलॉजी इन खामियों को दूर करने में अहम भूमिका निभा सकती है? BW हेल्थकेयर एक्सीलेंस अवॉर्ड्स सेरेमनी में एक्सपर्ट्स ने इस विषय पर अपने विचार पेश किए.
पैनल डिस्कशन में ये रहे शामिल
कार्यक्रम में 'Reducing Diagnosis Errors - Role that technology will play' विषय पर पैनल डिस्कशन में महाजन इमेजिंग के एसोसिएट डायरेक्टर कबीर महाजन, पैथकाइंड लैब्स के एमडी और CEO संजीव वशिष्ठ, ICMR की पूर्व डिप्टी डायरेक्टर और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर दीपिका सराफ, Sigtuple के फाउंडर एवं सीईओ Dr. Tathagato Rai Dastidar ने अपने विचार रखे. मॉडरेटर के रूप में Dr. Dang's Labs के सीईओ डॉक्टर अर्जुन डांग उपस्थित थे.
कोरोना महामारी ने सिखाया
सबसे पहले ICMR की पूर्व डिप्टी डायरेक्टर और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर दीपिका सराफ ने बताया कि टेक्नोलॉजी डाइग्नोसिस की खामियों को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी ने हमें काफी कुछ सिखाया है. महामारी से पहले तक जो हम सोच भी नहीं सकते थे, अब कर रहे हैं. उदाहरण के तौर पर आज डॉक्टर डिजिटल कंसल्टेशन करते हैं. यानी वो डिजिटली पेशेंट से मिलकर उसकी समस्या जानकर मेडिसिन प्रिस्क्राइब करते हैं. क्या कोरोना काल से पहले, ऐसा संभव था? कुछ खास मामलों में भले ही ऐसा होता हो, लेकिन जितना आम ये आज हो गया है, उतना पहले संभव नहीं था. लॉकडाउन के समय डिजिटल कंसल्टेशन शुरू हुआ था और आज ये बहुत कॉमन हो गया है. इसलिए टेक्नोलॉजी डाइग्नोसिस की खामियों को दूर करने में अहम् भूमिका निभा सकती है.
कई वजह से होती हैं खमियां
पैथकाइंड लैब्स के एमडी और CEO संजीव वशिष्ठ ने समझाया कि डाइग्नोसिस में गड़बड़ी कई वजह से हो सकती है. उन्होंने कहा कि प्रोटोकॉल का ठीक से पालन नहीं करने से लेकर प्रिस्क्रिप्शन को गलत पढ़े जाने तक ऐसी कई वजह हैं, जिनके चलते कभी-कभी Diagnosis Errors हो जाते हैं. संजीव वशिष्ठ ने आगे कहा, 'कई बार सैंपल शहर के एक छोर से कलेक्ट होता है और लैब दूसरे छोर पर होती है, ऐसे में यदि सही पैकेजिंग और कोल्ड चेन आदि का ठीक से पालन नहीं किया गया है, तो लैब तक पहुंचते-पहुंचते गर्मी की वजह से सैंपल में बदलाव संभव है'.
प्रोटोकॉल का पालन ज़रूरी
पैथकाइंड लैब्स के CEO ने कहा कि कभी-कभी प्रिस्क्रिप्शन को गलत पढ़ लिया जाता है, फिर चाहे वह डॉक्टर की राइटिंग की वजह से हो या किसी और वजह से, ऐसे में डाइग्नोसिस में खामियां संभव हैं. इसी तरह, यदि बार कोडिंग ठीक नहीं है, तो सैंपल के मिक्सअप होने का खतरा रहता है. कई मामलों में गलती पेशेंट की तरफ से होती है, वो प्रोटोकॉल का पालन नहीं करते. उदाहरण के तौर पर कुछ मामलों में यदि सैंपल कलेक्शन से पहले उन्होंने अत्यधिक कसरत कर रखी है या फिर किसी वजह से बेहद तनाव में हैं, तो इसका असर सैंपल पर भी पड़ेगा'. उन्होंने कहा कि टेक्नोलॉजी से डाइग्नोसिस से जुड़ी कई तरह की खामियों को दूर किया जा सकता है.
AI टेक्नोलॉजी महत्वपूर्ण
महाजन इमेजिंग के एसोसिएट डायरेक्टर कबीर महाजन ने रेडियोलॉजी में AI टेक्नोलॉजी पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि भारत जैसे देश में रेडियोलॉजी में AI काफी प्रभावशाली साबित हो सकती है. इससे समय पर केस डिटेक्ट करने में मदद मिल सकती है. रेडियोलॉजिस्ट के रिपोर्टिंग डेटा क्वालिटी और सटीकता में इजाफा हो सकता है. कबीर महाजन के मुताबिक, कई प्रकार के कैंसर की स्क्रीकिंग में AI से विभिन्न लाभ मिल सकते हैं.
स्क्रीनिंग में हम काफी पीछे
बेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग पर बात करते हुए महाजन इमेजिंग के एसोसिएट डायरेक्टर ने कहा कि इस मामले में कम काफी पीछे हैं. अफसोस की बात है कि हमें जहां होना चाहिए था, हम वहां नहीं हैं. शायद इसलिए कि हमारे पास पर्याप्त मैनपावर नहीं है, जो इमेजस से कैंसर डिटेक्ट कर सके. पश्चिमी देशों में AI स्टडी से पता चलता है कि यदि कैंसर डिटेक्ट करने के लिए AI सल्यूशन की अनुमति दी जाती है, तो स्क्रीनिंग प्रोग्राम के मामले में रेडियोलॉजिस्ट के समय को 62% कम किया जा सकता है. उन्होंने कहा, 'इस तरह की स्टडी डेनमार्क में हुई थी, पता नहीं क्यों भारत में कोई अध्ययन नहीं किया गया'.
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