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Bengaluru Water Crisis: आखिर कैसे सूखा बेंगलुरु का कंठ, क्या है इसकी सबसे बड़ी वजह?
बेंगलुरु को जल संकट का सामना करना पड़ रहा है. हालात इतने खराब हैं कि सैकड़ों घरों में एक बूंद भी पानी नहीं है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 2 months ago
आईटी हब कहा जाने वाले बेंगलुरु का कंठ सूख गया है (Bengaluru Water Crisis). इस अत्याधुनिक शहर के पास अपने लोगों की प्यास बुझाने के लिए पानी नहीं है. शहरवासी अब पूरी तरह से वॉटर टैंकर्स पर निर्भर हैं, और टैंकर ऑपरेटरों ने इस प्राकृतिक आपदा को अवसर मान लिया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 1000 लीटर पानी के टैंकर की कीमत पहले 600-800 रुपए के बीच थी, लेकिन अब उसके लिए 2000 रुपए से ज्यादा वसूले जा रहे हैं. बता दें कि कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में Walmart और Google से लेकर कई ग्लोबल कंपनियों के भी ऑफिस हैं.
इन गतिविधियों पर रोक
गंभीर जल संकट को देखते हुए अधिकांश रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशंस ने अपने इलाकों में पानी की राशनिंग शुरू कर दी है. वाहन धोने, गार्डनिंग जैसी गतिविधियों पर रोक लगाई गई है. स्विमिंग पूल को भी बंद दिया गया है. वहीं, कंपनियों की तरफ से भी वॉटर फाउंटेन और निर्माण गतिविधियों को रोक दिया गया है. कुछ हाउसिंग सोसाइटियों में पानी की खपत को सीमित कर दिया गया है. साथ ही नियमों के उल्लंघन पर जुर्माना लगाया जा रहा है. हालात इतने खराब हो गए हैं कि लोग वॉशरूम आदि इस्तेमाल करने के लिए शॉपिंग मॉल का रुख करने को मजबूर हैं. जबकि कुछ लोगों ने शहर से दूर अस्थाई ठिकाने तलाश लिए हैं.
कावेरी का जल स्तर गिरा
बेंगलुरु में पानी की किल्लत कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार स्थिति बेहद चिंताजनक हो गई है. ऐसे में यह सवाल लाजमी है कि आखिर ऐसा कैसे हो गया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, पर्याप्त बारिश न होने के कारण कावेरी नदी के जल स्तर में काफी गिरावट आई है. इससे पेयजल आपूर्ति और कृषि सिंचाई दोनों पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. इसके अलावा धरती का सीना चीरकर पानी निकालने की बोरवेल तकनीक ने भी संकट बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है. शहर में बीते कुछ वक्त में निर्माण कार्य बहुत तेजी से चले हैं, जिनके लिए बड़े पैमाने पर पानी की जरूरत होती है. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि सरकार स्थिति की गंभीरता को समय रहते भांपने में नाकाम रही. इसके लिए मौजूद सरकार से ज्यादा पिछले सरकार कुसूरवार है.
सूखे पड़े हैं इतने बोरवेल
सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, 16,781 बोरवेल में से 6,997 बोरवेल सूख गए हैं. शेष 7,784 बोरवेल चालू हैं. कावेरी और स्थानीय झीलें बेंगलुरु के लिए वरदान साबित होती रही हैं. 1961 तक यहां कम से कम 260 से ज्यादा झीलें थीं. बाद में इनकी संख्या घटकर 81 रह गई और अब इनमें से महज 33 'जीवित' की श्रेणी में आती हैं. बाकी की झीलें शहर के विस्तार की भेंट चढ़ गई हैं. इस वजह से शहर में पहले जितना पानी हुआ करता था, वो लगातार कम होता गया. वहीं, कमजोर मानसून भी समय-समय पर शहर की समस्या बढ़ाता रहा है.
सरकारें नहीं रहीं गंभीर
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि शहर के विस्तार की वजह से निर्माण गतिविधियां बढ़ी हैं और इसके लिए पानी का जमकर इस्तेमाल होता है. बोरवेलों पर अधिक निर्भरता ने शहर में भूजल स्तर को कम कर दिया है. शहर पर आबादी का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है. जाहिर है ऐसे में प्राकृतिक संसाधनों पर भी दबाव बना है. बेंगलुरु का जल आपूर्ति इंफ्रास्ट्रक्चर काफी पुराना है, जो बढ़ती मांग को पूरा करने में नाकाफी साबित हो रहा है. उनका ये भी कहना है कि यदि राज्य सरकारों ने शुरुआत से इस पर ध्यान दिया होता तो हालात इतने नहीं बिगड़ते.
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