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बड़ा सवाल: महंगाई के मोर्चे पर मिली कुछ राहत, महंगे कर्ज से कब मिलेगी मुक्ति?
रिजर्व बैंक ने पिछले काफी समय से रेपो रेट को स्थिर रखा हुआ है, यानी इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 month ago
महंगाई (Inflation) के मोर्चे पर कुछ राहत मिली है. खुदरा महंगाई दर फरवरी में घटकर 5.09% रह गई. जनवरी में यह 5.10% थी. महंगाई की दर में यह गिरावट अनुमानों के अनुरूप है. खुदरा महंगाई दर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के निर्धारित 2 6% के निर्धारित लक्ष्य के भीतर बनी हुई है. महंगाई दर में आई इस गिरावट के साथ ही अब ये सवाल पूछा जा रहा है कि क्या महंगे कर्ज से मुक्ति मिलेगी? क्या RBI रेपो रेट में कोई कटौती करेगा?
दूसरी तिमाही से शुरुआत
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एक्सपर्ट्स का मानना है कि महंगाई में स्थिरता से कर्ज दरों में कटौती की संभावनाएं बढ़ी हैं, लेकिन रेपो रेट में कटौती के लिए अभी कुछ और इंतजार करना होगा. रिजर्व बैंक अगले वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही से दरों में कटौती की शुरुआत कर सकता है. आर्थिक मामलों के जानकारों का कहना है कि महंगाई दर अनुमान के मुताबिक ही है. ऐसे में उम्मीद है कि महंगाई अगले वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में रिजर्व बैंक के 4 फीसदी के लक्ष्य के करीब पहुंच जाएगी. यदि ऐसा होता है, तो रिजर्व बैंक अगस्त से दरों में कटौती की शुरुआत कर सकता है.
मानसून पर रहेगी नजर
वहीं, कुछ अर्थशास्त्रियों का यह भी मानना है कि रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती से पहले मानसून की तस्वीर साफ होने का इंतजार कर सकता है. क्योंकि मानसून की चाल पर महंगाई की चाल निर्भर करती है. यदि मानसून उम्मीद अनुरूप नहीं रहता, तो महंगाई फिर से बेकाबू ही सकती है. कुछ के अनुसार, संभावना है कि अगस्त में होने वाली पॉलिसी समीक्षा बैठक तक रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं होगा. जून समीक्षा से रिजर्व बैंक के रुख में नरमी के संकेत देखने को मिल सकते हैं. बता दें कि पिछले साल महंगाई को नियंत्रित करने के लिए RBI ने लगातार कई बार रेपो रेट में इजाफा किया था, जिससे सभी तरह के कर्ज महंगे हो गए थे.
क्या है RBI की जिम्मेदारी?
मालूम ही कि RBI के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि उसे पिछले साल महंगाई को नियंत्रित करने में अपनी असफलता पर सरकार को स्पष्टीकरण देने पड़ा. दरअसल, रिजर्व बैंक अधिनियम के तहत अगर महंगाई के लिए तय लक्ष्य को लगातार तीन तिमाहियों तक हासिल नहीं किया जाता, तो RBI को केंद्र सरकार के समक्ष स्पष्टीकरण देना होता है. मौद्रिक नीति रूपरेखा के 2016 में प्रभाव में आने के बाद से ऐसा पहली बार हुआ जब RBI को इस संबंध में केंद्र को रिपोर्ट भेजनी पड़ी. आरबीआई को केंद्र की तरफ से खुदरा महंगाई दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर बनाए रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद आरबीआई मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने में नाकाम रहा था.
क्या होती है रेपो रेट?
रेपो रेट वह दर होती है जिस पर RBI बैंकों को कर्ज देता है. बैंक इस पैसे से कस्टमर्स को LOAN देते हैं. रेपो रेट बढ़ने का सीधा सा मतलब है कि बैंकों को मिलने वाला कर्ज महंगा हो जाएगा और इसकी भरपाई वो ग्राहकों से करेंगे. इसीलिए कहा जाता है कि Repo Rate बढ़ने से होम लोन, वाहन लोन आदि की EMI ज्यादा हो सकती है. इसके उलट जब यह दर कम होती है तो बैंक से मिलने वाले कई तरह के कर्ज सस्ते होने की संभावना बढ़ जाती है.
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