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भारत और क्रिप्टो: दो विभिन्न विचारों की कहानी
भारत के केंद्रीय बैंक ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्रिप्टोकरेंसी के नकारात्मक प्रभावों को लेकर बार-बार आशंका व्यक्त की है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 8 months ago
Srinath Sridharan – Author, Policy Researcher & Corporate Advisor
भारत में क्रिप्टो का परिदृश्य परस्पर विरोधी इच्छाओं के बीच उलझी हुई एक कहानी की तरह लगता है, जो हमें यह सोचने के लिए मजबूर करता है कि क्या यह एक क्रिप्टो एसेट क्लास है या एक क्रिप्टोकरेंसी? क्या यह एक क्रिप्टो एक्सचेंज बनना चाहता है या कम नियमों के लिए तरस रहा है? इन दुविधाओं के बीच भारतीय क्रिप्टो इंडस्ट्री द्वारा भारत के केंद्रीय बैंक RBI (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) के खिलाफ 2018 में लड़ी गई कानूनी लड़ाई ने कुछ मुद्दे तो जीत लिए, लेकिन रेगुलेटरी के भरोसे का एक बड़ा भाग खो दिया. रेगुलेटरी संस्थाओं के साथ क्रिप्टो करेंसी का विवादास्पद संबंध, भारत की दो भागों में बंटी क्रिप्टो कहानी में शांतिपूर्ण रास्ता खोजने के लिए चल रहे संघर्ष का उदाहरण है. इंडस्ट्री में विरोधाभास अभी भी जारी है. जहां एक तरफ कोई अन्य रास्ता नहीं होने पर यह इंडस्ट्री थोड़े से बदलाव के साथ नियमों में सुधार चाहती है, जबकि रेगुलेटरी संस्थाएं कुछ और ही चाहते हैं. इंडस्ट्री नियमों की स्वीकृति के लिए तरस रही है, लेकिन फिर भी यह सेक्टर अपनी पसंद, सुविधा और समय के अनुसार रेगुलेटरी का रुख नहीं कर सकता है.
Web3 और क्रिप्टो
Web3 के मूलभूत कारक के रूप में क्रिप्टो की स्थिति नीतिगत रेखाओं को धुंधला कर देती है, क्योंकि Web3 सिर्फ क्रिप्टोकरेंसी ही नहीं बल्कि उससे कहीं ज्यादा अधिक चीजों को खुद में शामिल करता है. इस वजह से एक बहुत ज्यादा भ्रमित करने वाला इकोसिस्टम बनता है और इसी वजह से यह Web 3 के विकास में समस्या भी पैदा करता है. अधिक से अधिक Web3 उद्यमी देश से बाहर ग्लोबल मार्केटों की ओर पलायन कर रहे हैं, क्योंकि यहां पहले से ही Web3 स्टार्टअप के लिए नीतियों, नियमों, टैक्स और इन्वेस्टमेंट के दिशा-निर्देशों को परिभाषित करना शुरू कर दिया गया है, इस वजह से नीति निर्माताओं का यह रुख हमें काफी खराब लगता है. रेगुलेटरी के रुख में स्पष्टता के साथ व्यापार करने में आसानी ज्यादा जरूरी है, न कि उच्च टैक्स और अस्थिर नीतियों की दोधारी तलवार.
क्या G20 में बदले जाएंगे नियम?
भारत के केंद्रीय बैंक यानी RBI ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्रिप्टोकरेंसी के संभावित नकारात्मक प्रभावों को लेकर बार-बार अपनी आशंका व्यक्त की है. भारत सरकार का मानना है कि क्रिप्टोकरेंसी की सीमाहीनता के कारण सिर्फ एक तरफा प्रतिबंध लगाना या नियम बनाना अप्रभावी साबित होगा और साथ ही इस क्षेत्र में रेगुलेटरी की मध्यस्थता को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बहुत आवश्यक है. G20 की अध्यक्षता करते हुए भारत ने क्रिप्टोकरेंसी गवर्नेंस पर एक स्थिर रुख बनाकर रखा है. देश की क्रिप्टो इंडस्ट्री रेगुलेटरी की अनिश्चितता के साथ-साथ टैक्स के चुनौतीपूर्ण नियमों से भी जूझ रही है. यह ध्यान रखना बहुत महत्वपूर्ण है कि लागू करने लायक फाइनेंशियल नियम बनाने का अधिकार G20 समूह के पास बिल्कुल नहीं है.
अमेरिका और क्रिप्टोकरेंसी के ग्लोबल नियम
अगर कोई देश है जो वैश्विक स्तर पर चुप्पी तोड़ने वाला देश बन सकता है तो वह अमेरिका ही है. हालांकि अपने घरेलू क्रिप्टो बाजार को नियमित करना इस देश को कई कारणों से इसे चुनौतीपूर्ण लग सकता है. एक प्रमुख कारक फ्री मार्केटों और बोलने के स्वतंत्र सिद्धांतों के प्रति संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रतिबद्धता है, जो क्रिप्टोकरेंसी पर उसके रुख तक भी फैली हुई है. इसके अलावा, क्रिप्टो इंडस्ट्री को देश के भीतर मौजूद प्रभावशाली हस्तियों और संस्थानों से पर्याप्त समर्थन भी मिला हुआ है, जिसकी वजह से यह एक शानदार मौका बन गया है. साथ ही इस फैसले की वजह से इनोवेशन पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों और तकनीकी प्रगति को रोकने के जोखिम को देखते हुए, अमेरिका क्रिप्टोकरेंसी के खिलाफ कठोर कदम उठाने को लेकर सावधान हो सकता है. क्रिप्टो के प्रति उत्साह और क्रिप्टो एक्सचेंजों के ढहने के बीच मौजूद यह दोहरा मानक अमेरिका में क्रिप्टो के मुद्दे की जटिलता और उसके द्वारा समर्थित आदर्शों को संरक्षित करने के लिए अमेरिका द्वारा बनाए जाने वाले संतुलन को उजागर करता है. विडंबना यह है कि बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी की शुरुआत अमेरिका से हुई है.
भारत के लिए कैसा होगा रास्ता?
फिलहाल भारत इस जटिल रास्ते को पार करने की कोशिश कर रहा है और इस दौरान भारत को ग्लोबल परिदृश्य के बारे में भी ध्यान रखना चाहिए. G20 के क्रिप्टोकरेंसी नियमों और IMF के क्रिप्टोकरेंसी स्ट्रक्चर का असर निस्संदेह तौर पर भारत पर पड़ेगा, क्योंकि यह इनोवेशन को बढ़ावा देने और नए नियम एवं उपायों को लागू करने के बीच संतुलन तलाशता है. G20 समूह में शामिल देश क्रिप्टो-एसेट के लिए सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त नियामक एवं स्ट्रक्चर स्थापित करने का प्रयास कर सकते हैं, जिससे अदालतों को इस आधार रेखा से परे सख्त नियम लागू करने की छूट मिल सके और यदि वे उचित समझें तो संभवतः पूर्ण प्रतिबंध यानी बैन का विकल्प भी चुन सकते हैं.
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