होम / एक्सप्लेनर / कोई सब्जी खेत से किचन तक पहुंचते-पहुंचते कैसे 3-4 गुना महंगी हो जाती है, समझिए इसका गणित
कोई सब्जी खेत से किचन तक पहुंचते-पहुंचते कैसे 3-4 गुना महंगी हो जाती है, समझिए इसका गणित
जब कोई किसान सब्जी को खेत से निकालकर मंडी तक पहुंचता है, तो वह खेत में लगी लागत, मंडी तक लाने का ट्रांसपोर्टेशन चार्ज जोड़कर उसे मंडी में लाकर आढ़ती तक पहुंचाता है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
नई दिल्ली: दिल्ली-NCR में लगातार जारी बारिश के कारण खेतों में कई सब्जियां नष्ट हो गई हैं, जिसके कारण सप्लाई पर असर पड़ा है. इस वजह से सब्जियों के दाम आसमान पर पहुंच गए हैं. गोभी 100 रुपये से 120 रुपये प्रति किलो बिक रहा है तो बैंगन 60 रुपये से 80 रुपये किले बिक रहा. आलू की कीमतें भी 20 रुपये से लेकर 30 रुपये प्रति किलो है. पर क्या आप जानते हैं कि किसी भी सब्जी की कीमत खेत से निकलकर किचन तक पहुंचते-पहुंचते कैसे बढ़ जाती है? हम आपको बता रहे हैं इसके पीछे का गणित.
चाहे सब्जियां हों या फिर अनाज, खेत से किचन तक पहुंचते-पहुंचते इनकी कीमतें काफी ज्यादा बढ़ जाती हैं. खेत से लेकर मंडी, मंडी से लेकर थोक व्यापारी और थोक व्यापारी से रेहड़ी पटरी तक पहुंचने में सब्जियों और अनाज के दाम कई गुना बढ़ जाते हैं.
आढ़ती को भी देना होता है 2.5 प्रतिशत
जब कोई किसान सब्जी को खेत से निकालकर मंडी तक पहुंचता है, तो वह खेत में लगी लागत, मंडी तक लाने का ट्रांसपोर्टेशन चार्ज जोड़कर उसे मंडी में लाकर आढ़ती (कर्जदार या कृषि व्यापारी जिनसे किसान कर्ज लेकर अपनी फसल बोते हैं) तक पहुंचाता है. उत्तर प्रदेश की अगर बात करें तो यहां पर मंडी समितियों में किसान के सामान पर 2.5 प्रतिशत लिया जाता है. आढ़ती भी अपना 2.5 प्रतिशत लेते हैं. इस लिहाज से देखें तो समान का कुल दाम का 5 प्रतिशत ऐसे ही बढ़ जाता है. इसके अलावा उसमें खेती में लगी लागत और ट्रांसपोर्टेशन चार्ज जुड़ने के बाद कीमत और बढ़ जाती है.
उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों को दी है सहूलियत
सब्जियों की कीमतें नियंत्रित रहें और किसानों पर कोई अतिरिक्त दबाव न हो, इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों को सहूलियत देते हुए मंडी समिति के 2.5 प्रतिशत को कम करके 1.5 प्रतिशत कर दिया है. इसे थोड़ी राहत जरूर मिली है, क्योंकि अब उन्हें 5 प्रतिशत (मंडी समिति के 2.5 प्रतिशत + आढ़ती के 2.5 प्रतिशत) की जगह 4 प्रतिशत (मंडी समिति के 1.5 प्रतिशत + आढ़ती के 2.5 प्रतिशत) देना होता है.
और कहां-कहां ऐड होती हैं कीमतें
हालांकि कीमतें यही नहीं रुक जातीं. ये तो रही किसानों की बात, जो यहां खत्म हो जाती है. अब उसके आगे की बात करते हैं. मंडी समितियों में किसान की सब्जियों को बड़े और थोक विक्रेता व्यापारियों को बेचा जाता है और उनके साथ-साथ फुटकर व्यापारी भी सामान लेकर जाते हैं. ये लोग उसपर अपने ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा, सामान की पैकेजिंग पर होने वाले खर्च, लेबर चार्ज और दुकान के किराये पर होने वाले खर्च को भी जोड़ते हैं. इससे खेत से लेकर किचन तक पहुंचते-पहुंचते सब्जी की मूल कीमत में कई गुना इजाफा हो जाता है.
और किन बातों का पड़ता है असर
कई बार खराब मौसम, ट्रांसपोर्टर्स की हड़ताल और पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों का असर भी इनपर दिखाई देता है. इन सबके बीच सबसे अधिक कोई पिसता है तो वह है आम आदमी, क्योंकि आखिरी खरीददार वहीं होता है, जिसे मूल कीमत के मुकालबे 3-4 गुना अधिक कीमतें चुकानी पड़ती हैं, जिससे उसका बजट बिगड़ जाता है.
VIDEO : एयर इंडिया से आई ये खबर सीनियर सिटीजंस को कर सकती है नाराज
टैग्स