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'मैटेरियल साइंस और स्पिरिचुअल साइंस दोनों जरूरी, इनके बिना जीवन अधूरा' 

स्वामी मुकुंदानंद ने कहा कि स्पिरिचुअलिटी को फॉलो करने वाले ऐसे लोग जो मैटेरियल साइंस की जरूरत को नकारते हैं, वे गलती करते हैं.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 5 months ago

BW Businessworld की ओर से मायानगरी मुंबई में Spirituality Conclave 2023 का आयोजन किया गया. इस इवेंट में आध्यात्मिक दुनिया से जुड़ी तमाम प्रसिद्ध हस्तियों ने शिरकत की और विभिन्न विषयों पर अपने विचार साझा किए. JK Yog (Jagadguru Kripaluji Yog) संस्था के फाउंडर Swami Mukundananda ने इस दौरान बताया कि कैसे जीवन में मैटेरियल साइंस और स्पिरिचुअल साइंस के बीच बैलेंस बनाकर चलना जरूरी है. उन्होंने कहा कि आमतौर पर मैटेरियल साइंस और स्पिरिचुअल साइंस को विरोधाभासी माना जाता है, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है. वैदिक परिदृश्य से मैटेरियल साइंस और स्पिरिचुअल साइंस में कोई विरोधाभास नहीं है. 

क्या है मैटेरियल सक्सेस?
स्वामी मुकुंदानंद ने Living with Purpose: Exploring the Ethics and Morality of Spiritual Living विषय पर बोलते हुए कहा कि मैटेरियल सक्सेस और स्पिरिचुअलिटी को आमतौर पर विरोधाभासी माना जाता है. मैटेरियल सक्सेस का मतलब है एक्सटर्नल लग्जरी, कम्फर्ट जबकि स्पिरिचुअलिटी एक आंतरिक यात्रा है, जो आपको मैटेरियल सुख से दूर ले जाती है. क्या इन दोनों के बीच संतुलन बनाना संभव है? अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा - पश्चिम में स्पिरिचुअलिटी को विज्ञान से परे रखा जाता है. क्योंकि साइंटिफिक लोग फैक्ट, प्रूफ और लॉजिक पर बात करते हैं. जबकि स्पिरिचुअलिटी के लिए Nebulous Concept में विश्वास की आवश्यकता होती है, जो तुरंत टेंजिबल नहीं होते. हालांकि वैदिक परिदृश्य से मैटेरियल साइंस और स्पिरिचुअल साइंस में कोई विरोधाभास नहीं है. 

दोनों जीवन के लिए जरूरी
स्वामी मुकुंदानंद ने कहा कि ज्ञान की 2 बोनाफाइड ब्रांच होती हैं. पहली मैटेरियल साइंस और दूसरी स्पिरिचुअल साइंस. और ये दोनों ही आपके जीवन के लिए जरूरी हैं. स्पिरिचुअलिटी को फॉलो करने वाले ऐसे लोग जो मैटेरियल साइंस की जरूरत को नकारते हैं, वे गलती करते हैं. क्योंकि बिना मैटेरियल ज्ञान के आप अपने शरीर की देखभाल नहीं कर सकते. गौतम बुद्ध से जुड़ी एक कहानी बताते हुए स्वामी ने कहा - 'ज्ञान प्राप्ति से पूर्व गौतम बुद्ध एक बार खाना-पीना छोड़कर ध्यान लगाने बैठ गए. कई दिनों तक वह बिना कुछ खाए-पीये ध्यान लगाते रहे, नतीजतन वह कमजोर होते गए और फिर अचेत हो गए. तभी वहां से गांवों की औरतें गाना गाते हुए गुजरीं. उनके गाने के बोल थे - तानपुरा की तारों को कसना चाहिए, लेकिन इतना भी नहीं कि वो टूट जाएं. ये शब्द जैसे ही बुद्ध के कानों में पड़े उनकी आंखें खुल गईं. उन्होंने खुद से कहा कि सामान्य महिलाएं भी इतने महत्व की बातें जानती हैं'. तो कहने का अर्थ है कि अपने शरीर को मजबूत बनाएं, लेकिन इतना भी नहीं कि वो बर्बादी की कगार पर पहुंच जाए. ये शरीर स्पिरिचुअलिटी का अभ्यास करने के लिए आपका माध्यम है. और शरीर का ध्यान रखने के लिए आपको उसे प्रोटीन, विटामिन और पोषण प्रदान करना होगा. इसके लिए मैटेरियल साइंस का ज्ञान जरूरी है. यदि स्पिरिचुअलिटी फॉलो करने वाला कोई व्यक्ति कहता है कि मैटेरियल साइंस कुछ नहीं है, पूरा दिन राधेश्याम जपते रहो, तो यह अधूरी बात है.

आंतरिक समस्या का एकमात्र समाधान 
इसी तरह, यदि कोई मैटेरियल साइंटिस्ट कहता है कि स्पिरिचुअलिटी कुछ नहीं है, तो ये भी पूरी तरह गलत है. क्योंकि स्पिरिचुअलिटी हमारी आंतरिक समस्याओं का एकमात्र समाधान है. हमारे मस्तिष्क में गुस्सा, नफरत, बदले की भावना जैसा बहुत कुछ भरा रहता है, उसे बाहर कैसे निकालेंगे? आप दुनिया की बेस्ट यूनिवर्सिटी में जाएं और पूछें कि मुझे अपने माइंड को शुद्ध करना है, आपके किस कोर्स में यह पढ़ाया जा सकता है. वो हाथ खड़े कर देंगे और कहेंगे कि हम यह नहीं पढ़ा सकते. इसीलिए महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टाइन ने भी यह स्वीकार किया था कि विज्ञान किसी मनुष्य के दिल से नफरत को नहीं निकाल सकता. स्वामी मुकुंदानंद ने आगे कहा कि विज्ञान का कोई नैतिक मूल्य नहीं है, वो आपके हाथ में परमाणु शक्ति दे सकता है, लेकिन यह नहीं बता सकता कि उसका सही-गलत इस्तेमाल कैसे करना है. विज्ञान की मदद से आज नई टेक्नोलॉजी आ रही हैं, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि इन टेक्नोलॉजी का सही और गलत इस्तेमाल क्या है? यहीं से स्पिरिचुअलिटी का काम शुरू होता है, स्पिरिचुअलिटी हमें जीवन के बड़े सवालों का सामना करने की शक्ति देती है. उन्होंने कहा कि जीवन में अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आपको ज्ञान की इन दो शाखाओं के बीच विरोधाभास नहीं करना चाहिए. कई ऐसे लोग हैं, जो मैटेरियल तौर पर सफल हैं, लेकिन आध्यात्मिक रूप से कंगाल. जस्टिन बीबर, प्रिंस हैरी से लेकर कई बॉलीवुड स्टार्स इसका उदाहरण हैं. 

माइंड मैनेजमेंट तकनीक
BW Wellbeing World और BW HealthCare World के CEO Harbinder Narula ने इस दौरान स्वामी मुकुंदानंद से कुछ सवाल भी पूछे. उन्होंने सबसे पहले स्वामी मुकुंदानंद से जानना चाहा कि क्या उन्हें कभी गुस्सा आता है? यदि आता है, तो वे क्या करते हैं? इसके जवाब में स्वामी ने कहा - परफेक्शन एक यात्रा है, मैं ये नहीं कहूंगा कि मैं परफेक्ट हूं. मुझे भी गुस्सा आता है. लेकिन जब आता है तो मैं माइंड मैनेजमेंट तकनीक इस्तेमाल करता हूं और ये है सही जानकारी या ज्ञान हासिल करना. उदाहरण के तौर पर यदि किसी का व्यवहार आपको परेशान कर रहा है. तो रियेक्ट करने के बजाए रिस्पोंड करें. मैं यही करता हूं. मैं कुछ क्षण के लिए रुकता हूं और सोचता हूं कि सामने वाला व्यक्ति भी इंसान है, वो भी परफेक्ट नहीं है. 

आंतरिक शुद्धि के लिए है अध्यात्म 
अध्यात्म धर्म से अलग कैसे है? इस सवाल के जवाब में स्वामी मुकुंदानंद ने कहा कि धर्म में संस्कृति, परंपरा, रीतिरिवाज आदि शामिल हैं, जिसे बड़े पैमाने पर अमल में लाते हैं. जबकि अध्यात्म आंतरिक लक्ष्य को प्राप्त करना है, आंतरिक शुद्धि के लिए है. अध्यात्म आपको कुछ विजडम देता है, जैसे कि सेल्फ अवेयरनेस, यूनिवर्सल अवेयरनेस और सेल्फ मास्टरिंग स्किल्स. एक अन्य सवाल के जवाब में स्वामी मुकुंदानंद ने कहा कि हमें दूसरों की सेवा करनी चाहिए और यह मानकर कि ये शरीर दूसरों की सेवा के लिए है, अपना ख्याल भी रखना. उन्होंने कहा कि जब दूसरों की मदद की आपकी इच्छा मजबूत हो जाती है तो यूनिवर्स रिस्पोंड करता है. वो आपके लिए ऐसे अवसर लेकर आता है, जहां आप और भी ज्यादा प्रभावी ढंग से दूसरों की मदद कर सकें.     
 


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