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31 मार्च तक शेयर और डिविडेंड नहीं किये क्लेम तो हो जायेगी परेशानी

अगर शेयरहोल्डर्स 31 मार्च तक अपना KYC करवाकर अपने शेयर्स और डिविडेंड को क्लेम नहीं करते तो इन शेयर्स और डिविडेंड को जमा कर दिया जाएगा.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago

अचिंत अरोड़ा

फाउंडर एवं डायरेक्टर, वेल्थमैक्स कंसल्टेंसी

3 नवम्बर 2021 को SEBI (सिक्यूरिटी एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया) ने एक सर्कुलर जारी कर बताया था कि सभी फिजिकल शेयर इन्वेस्टर्स 31 मार्च 2023 से पहले अपना KYC (अपने ग्राहक को जानिये) करवा लें अथवा उनके सभी शेयर्स और डिविडेंड को फ्रीज कर दिया जाएगा. आज से 2 या 3 दशकों पहले शेयर्स को पेपर सर्टिफिकेट आदि के तौर पर फिजिकल रूप में रखा जाता था. आज जिस प्रकार से खरीद और बिक्री की जाती है वैसे पुराने समय में इलेक्ट्रॉनिक डीमैट अकाउंट उपलब्ध नहीं हुआ करते थे. डीमैट अकाउंट्स को पहली बार साल 1996 में उपलब्ध करवाया गया था. साल 1996 में शुरुआत होने के बाद से शेयर्स खरीदने पर आपको अपने डीमैट अकाउंट में केवल एक इलेक्ट्रोनिक रिकॉर्ड ही मिलता है. 


लक्ष्य तय करने में अभी लगेगा समय
डीमैट अकाउंट्स को लॉन्च करने के साथ ही SEBI ने सभी फिजिकल शेयर्स को डीमैट में बदलने के निर्देश दिए. साल 2023 की शुरुआत हो चुकी है लेकिन सभी फिजिकल शेयर्स को डीमैट में बदलने का लक्ष्य हासिल करने के लिए हमें अभी भी काफी लंबा रास्ता तय करना है. सभी फिजिकल शेयर्स को अब तक डीमैट अकाउंट में न बदल पाने के पीछे ये कुछ मुख्य कारण हो सकते हैं: 
•    घर का पता बदलने की वजह से बहुत से शेयरहोल्डर्स को नहीं पता कि उनके पास फिजिकल शेयर्स मौजूद हैं. 
•    जिस शेयरहोल्डर को शेयर आवंटित किया गया था उनकी मृत्यु हो गयी है
•    शेयरहोल्डर्स विदेशों में पलायन कर गए हैं और समय एवं ज्ञान की कमी की वजह से शेयर्स अभी भी अपनी फिजिकल फॉर्म में मौजूद हैं. 


रियल एस्टेट क्षेत्र में इन्वेस्टमेंट हमेशा से भारतीय लोगों की पहली पसंद रही है. इसीलिए सभी फिजिकल शेयर सर्टिफिकेट्स की जांच करने के दौरान पुराने शेयर्स में इन्वेस्टमेंट को रोक दिया गया था.  समय गुजरने की वजह से ज्यादातर इन्वेस्टर्स को तीन दशक पहले की गयी इन्वेस्टमेंट याद नहीं रही, जिसकी वजह से ऐसे एसेट्स की संख्या बढ़ती चली गयी जिन्हें क्लेम नहीं किया गया था. अक्सर इन्वेस्टर्स अपने शेयर्स के लिए नॉमिनी नहीं चुनते जिसकी वजह से शेयर्स के कानूनी उत्तराधिकारियों को उनके शेयर्स नहीं मिल पाते और शेयर्स भी क्लेम नहीं हो पाते. 
 

IEPF (इन्वेस्टर एजुकेशन प्रोटेक्शन फण्ड) क्या है? 

सरकारी नियमों के अनुसार ऐसे शेयर्स जिन्हें 7 साल या उससे ज्यादा समय तक क्लेम नहीं किया जाता, उन्हें भूले हुए शेयर्स की कैटेगरी में रखा जाता है. 7 सालों के बाद फर्म इन निष्क्रिय पड़े शेयर्स को IEPF अकाउंट में ट्रान्सफर कर देती है. क्योंकि इन शेयर्स के डिविडेंड का भुगतान नहीं हुआ होता इसलिए IEPF के तहत यह शेयर्स भारत सरकार के हो जाते हैं. इसलिए बेशक ये शेयर्स फिजिकल रूप में शेयरहोल्डर्स के पास हों लेकिन इन्हें इलेक्ट्रॉनिकली एक सरकारी डीमैट अकाउंट में जमा कर लिया जाता है. 

IEPF की स्थापना से पहले सभी कारोबारियों को लावारिस इनकम और शेयर्स को सरकार को देना होता था ताकि सरकार इन शेयर्स का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के लोकोपकारी कामों के लिए कर सके. IEPF को इसलिए बनाया गया ताकि कस्टमर्स लम्बे समय से लावारिस पड़े शेयर्स और डिविडेंड को क्लेम कर सकें. IEPF बनाये जाने से शेयरहोल्डर्स सम्बंधित संस्थाओं को एप्लीकेशन लिखकर और रजिस्ट्रार एवं कंपनियों के साथ बातचीत करके अपने शेयर्स को क्लेम कर सकते हैं. 
 

IEPF की रिकवरी का रास्ता है लंबा 
IEPF के माध्यम से शेयर्स क्लेम करने में काफी ज्यादा समय लगता है और एक छोटी सी गड़बड़ी से भी एप्लीकेशन को ठुकराया जा सकता है. 1980 और 1990 में नॉमिनी चुनने का तरीका बहुत प्रचलित नहीं था और बिना नॉमिनी के बहुत बड़ी संख्या में लावारिस पड़े शेयर्स को बांट दिया जाता था. ऐसी स्थिति में मृतक के परिवार के लोग मृतक से सम्बंधित सभी चीजों को वापस लेने आते थे जिनमें वह शेयर्स भी शामिल होते थे जिन्हें मृतक ने खरीदा था. अक्सर परिवार में ज्यादा लोगों के होने की वजह से यह समझना मुश्किल हो जाता था कि शेयर्स का असली उत्तराधिकारी कौन है? ऐसे मामलों को निपटाने  के लिए आपको एक्सपर्ट की जरुरत पड़ती है क्योंकि सिर्फ उन्हें ही इन मामलों के बारे में इतनी गहराई से पता होता है और वह आपके शेयर्स रिकवर करवा सकते हैं. सभी लोग जिनके पास फिजिकल फॉर्म में शेयर्स हैं उन्हें 31 मार्च 2023 से पहले KYC करवा लेना चाहिए और एक नॉमिनी को चुनकर अपना पता, पासपोर्ट, ईमेल आईडी और फोन नम्बर भी अपडेट करवा लेना चाहिए. 
 

इन बातों का रखें विशेष ख़याल
शेयरहोल्डर्स को हमेशा अपने द्वारा की गयी इन्वेस्टमेंट का पता होना चाहिए और अपने परिवार को इस बारे में जरूर बताना चाहिए. म्युचुअल फंड्स, रियल एस्टेट, इंश्योरेंस, बैंक अकाउंट, फिक्स्ड डिपाजिट जैसी सभी प्रकार की इन्वेस्टमेंट्स में एक नॉमिनी को जरूर चुन लेना चाहिए. एक और ऑप्शन यह है कि सभी बैंक अकाउंट्स और इन्वेस्टमेंट के सभी ऑप्शंस में एक जॉइंट होल्डर को चुन लिया जाए. अगर एक रजिस्टर्ड विल है तो ध्यान रखें कि उसे हमेशा पहले ही तैयार रखें ताकि भविष्य में किसी प्रकार कि परेशानी न हो. हर बार जब एक इन्वेस्टमेंट को बदला जाए, उसमें कुछ जोड़ा जाए, या इन्वेस्टमेंट मैच्योर हो जाए तो इन्वेस्टमेंट शीट का एक नया वर्जन बना लेना चाहिए. 
 

वेल्थमैक्स कंसल्टेंसी बनी भारत की प्रमुख IEPF रिकवरी वाली कंपनी
नामी IEPF रिकवरी कंपनी वेल्थमैक्स कंसल्टेंसी की वजह से लावारिस शेयर्स या डिविडेंड की रिकवरी, डुप्लीकेट शेयर्स जारी करने, नाम हटवाने और उत्तराधिकार या कानूनी विवाद जैसे मुद्दे अब बहुत मुश्किल नहीं रह गए हैं. इन्वेस्टर्स बहुत ही आसानी से वेल्थमैक्स कंसल्टेंसी की मदद से अपने लावारिस शेयर्स का ध्यान रख सकते हैं. वेल्थमैक्स भारत की काफी जानी मानी IEPF रिकवरी वाली कंपनी है. 

यह भी पढ़ें:  UP Budget 2023 : यूपी के बजट की किसी ने की तारीफ, तो कोई बोला अफसरशाही पर लगे लगाम

 

 


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