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राणा यशवंत ने बताया, News Channels के घाटे में जाने की क्या है सबसे बड़ी वजह
दिल्ली में चल रहे 'मीडिया संवाद 2023' में पत्रकारिता जगत की दिग्गज हस्तियां शिरकत कर रही हैं.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 8 months ago
समाचार4मीडिया द्वारा दिल्ली में आयोजित 'मीडिया संवाद 2023' में पत्रकारिता जगत की दिग्गज हस्तियां अपने विचार पेश कर रही हैं. इस दौरान, इंडिया न्यूज के मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत ने पत्रकारिता में आए बदलावों पर बात की. साथ ही उन्होंने TV चैनलों की TRP, ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल यानी बार्क की भूमिका और केबल ऑपरेटर्स की मनमानी पर भी अपने विचार रखे. उन्होंने कहा - मैं आजकल एक किताब पढ़ रहा हूं, उसका नाम है Sapiens. मेरा मानना है कि हर पत्रकार को यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए. मैं इसका जिक्र इसलिए कर रहा हूं कि इंसानी सभ्यता की शुरुआत जैसे हुई और आज उसके सामने जो जोखिम हैं. उसे ये किताब बेहद शानदार ढंग से दर्शाती है.
ये है पत्रकारिता की पहली जरूरत
राणा यशवंत अपनी बात को समझाने के लिए समय के पहिये को थोड़ा पीछे ले गए. उन्होंने कहा - मेरे स्कूल के दिनों में हमारे गांव में एक-दो घर ही पक्के हुए करते थे. गांव में यदि एम्बेसडर आ जाए तो बच्चे मिट्टी में लेटकर उसे निहारने से भी नहीं चूकते थे. उस समय मेरे दादा धर्मयुग, प्रदीप मैगज़ीन आदि मंगवाते थे. आज सभी घर पक्के हैं, हर मोहल्ले में 8 से 10 गाडियां आपको मिलेंगी. लेकिन वो एम्बेसडर अब नहीं दिखती. आजकल पब्जी का चलन है, इन 30-35 सालों में दुनिया बहुत बदल गई है. इस लिहाज से आपकी समझ, समाज को देखने का नजरिया, जो चीजें समय के साथ लगातार बदलती रही हैं और लोगों के सवाल, सरोकार, जरूरतें बदलती रहीं उसे भी आप उस तरीके से देख पा रहे हैं या नहीं, ये पत्रकारिता की पहली जरूरत है.
इसकी समझ बेहद जरूरी
100 सालों में समाज जितना बदलता है, उतना महज पिछले 25-30 सालों में ही बदल गया है. ये रफ्तार बताती है कि आपको खुद को भी उस रफ्तार से बदलते रहना पड़ेगा. जो चीजें पहले अखबार के माध्यम से काफी देर बाद आप तक पहुंचती थीं, आज सेकंड भर में आप तक आ जाती हैं. सोशल मीडिया पर लिखा एक मैसेज अरब क्रांति बन जाता है. मीडिया, सूचना की इस ताकत को समझना जरूरी है, बदलाव की रफ्तार और उसके तरीकों को समझना जरूरी है. यदि हममें इसकी समझ है, तो हम बेहतर तरीके से लोगों तक पहुंच सकते हैं. आज राजनीतिक दल वही हैं, उनकी सीटों का गणित भी वही है, लेकिन चुनाव जीतने का तरीका बदल गया है. आज का युग डिजिटल का युग है, सोशल मीडिया का युग है और इसका असर प्रिंट पर भी पड़ रहा है. खासकर कोरोना के समय में डिजिटल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल बढ़ा, Zoom जैसे वर्तुअल मीटिंग के साधन चल निकले, जिनके बारे में पहले ज्यादा लोग जानते तक नहीं थे.
सरकार को नियम बनाने चाहिए
मीडिया की चुनौती पर बोलते हुए राणा यशवंत ने कहा - हर पत्रकार चाहता है कि वो बेहतर स्टोरी करे. उसकी स्टोरी की पूरे देश में चर्चा हो, उसका पॉजिटिव असर हो. लेकिन केबल ऑपरेटर्स और TRP का भी अपना एक रोल है, ये न्यूज के धंधे में बाहर वाले लोगों की तरह हैं, जो हर चीज को प्रभावित करते हैं. न्यूज की दुनिया में नॉन स्टेट एक्टर्स बार्क और केबल ऑपरेटर्स हैं. आपके घर जो केबल पहुंचती है, तो देश के बड़े उद्योगपति चलाते हैं. वो आपसे और ब्रॉडकास्टर दोनों से पैसा लेते हैं, यहां कोई नियम नहीं है. सरकार को इस बारे में कुछ नियम बनाने चाहिए. किसी चैनल के लगातार घाटे में जाने का सबसे बड़ा कारण केबल ऑपरेटर हैं. जो कुल खर्चे का आधा ले जाते हैं. वहीं, TRP की रेस एक अलग तरह की चुनौती है, क्योंकि यहां तथ्यों की कोई बात नहीं होती. जो खबरें डिजिटल पर चलती हैं, उनकी टीवी पर कोई पूछपरख नहीं होती, ये कैसे संभव है? ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल यानी बार्क की भूमिका खुद संदेह के घेरे में आ चुकी है. लिहाजा, या तो बार्क को बाहर किया जाना चाहिए या उसे अनुशासित किया जाना चाहिए.
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