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कुड़ियों का है जमाना पर 'लुक्स' के चक्रव्यूह में फंस गईं, नीलिमा पांडे ने बताई सच्चाई
लड़कियां धीरे-धीरे इस जाल में इतना फंस गईं कि वे अब डिप्रेशन का शिकार हो रही हैं. उनके अंदर सुंदरता को लेकर एक असुरक्षा की भावना बन चुकी है.
चंदन कुमार 1 year ago
लड़कों के मुकाबले लड़कियां कहीं ज्यादा तनाव में हैं. अमेरिकी शोध में यह खुलासा हुआ है कि लड़कियों में डिप्रेशन और एंग्जाइटी की समस्या तेजी से बढ़ी है. जिस उम्र में उन्हें दोस्तों के साथ खेलना चाहिए, उन्हें समय देना चाहिए, उस उम्र में वे मोबाइल में बिजी हैं. इसका सबसे बड़ा जिम्मेदार सोशल मीडिया है. सोशल मीडिया पर आते ही लड़कियां अपने लुक्स को लेकर ज्यादा फोकस हो जाती हैं. वे अपने शरीर और लुक्स पर जरूरत से ज्यादा ध्यान देने लगती हैं. इस कारण वे मानसिक रूप से ज्यादा शिकार हो रही हैं.
साइकोलॉजिस्ट डॉ. नीलिमा पांडे ने बताई समाज की सच्चाई
इस मुद्दे पर BW Hindi से देश की जानी-मानी साइकोलॉजिस्ट डॉ. नीलिमा पांडे ने बातचीत की और इस समस्या के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने बताया कि हमारे समाज में लड़कियों को लेकर एक धारणा बनी हुई है कि वे सुंदर ही दिखनी चाहिए और ये बात उनके सामने बचपन से ही आती है. यदि आप कुछ साल पहले ही देख लें, जब लड़कियों के रिश्ते को लेकर अखबार में विज्ञापन छपता था तो उसमें लिखा होता था कि गोरी और लंबी कन्या चाहिए. किसी को भी उससे कम कोई लड़की मंजूर नहीं. मजबूरी ये थी कि उस वक्त लड़कियों के पास एक्सपोजर नहीं था, जो सोशल मीडिया ने उन्हें देना शुरू किया. जब लड़कियां सोशल मीडिया पर एक्टिव होने लगीं, तो उन्हें एक्सपोजर मिलना शुरू हो गया, लेकिन उनके दिमाग में वही पुरानी बात ही रही, जो उन्होंने बचपन से महसूस किया है कि उन्हें हर हाल में सुंदर ही दिखना है. इसके लिए वे कई फिल्टर्स का भी यूज करती हैं, पर सुंदरता से कम मंजूर नहीं.
इस चक्कर में डिप्रेशन का शिकार हो रहीं लड़कियां
उन्होंने बताया कि लड़कियां धीरे-धीरे इस जाल में इतना फंस गईं कि वे अब डिप्रेशन का शिकार हो रही हैं. उनके अंदर सुंदरता को लेकर एक असुरक्षा की भावना बन चुकी है. वे अब अटेंशन सीकर हो चुकी हैं. यदि किसी भी वजह से उन्हें अटेंशन नहीं मिलती तो आज-कल लड़कियां बेचैन हो जाती हैं और बहुत दुखी हो जाती हैं. ये आदत इतनी तेजी के साथ बढ़ती जा रही है कि समाज के लिए खतरनाक ही नहीं एक लंबा दुष्चक्र बनता जा रहा है, जिसपर समय रहते कंट्रोल करना बहुत जरूरी है, नहीं तो डिप्रेशन के मामले तेजी से बढ़ेंगे. लड़कियों के मन में एक ऐसी भ्रांति बन चुकी है कि यदि वे सोशल मीडिया पर अच्छी दिखेंगी तो उन्हें काफी पसंद किया जाएगा. उन्हें अच्छे दोस्त मिलेंगे, उनके फैन्स बनेंगे, जो वास्तविकता में होता नहीं है, बल्कि धोखा मिलता है और इस बात को लेकर उनके अंदर एक असुरक्षा की भावना का जन्म हो जाता है.
अकेलापन भी जिम्मेदार
डॉ. नीलिमा पांडे ने बताया कि इसके पीछे उनका अकेलापन भी बहुत हद तक जिम्मेदार है. जैसे-जैसे हम मोबाइल की गिरफ्त में आते गए, समाज में अकेलापन बढ़ता गया. प्रॉपर गाइडेंस के बिना हम यह समझ ही नहीं पाते कि हम जिस रास्ते पर जा रहे हैं, वो भविष्य के लिए कितना नुकसानदायक है.
लड़कियां कैसे इस समस्या से छुटकारा पा सकती हैं?
इस गंभीर समस्या से लड़कियां कैसे छुटकारा पा सकती हैं? उसके लिए उन्हें क्या करना चाहिए, इसपर डॉ. नीलिमा ने बताया कि इसके लिए तो सबसे ज्यादा जरूरी ये है कि वे यह समझ सकें कि वे गलत कर रही हैं, क्योंकि जब वे इस लुक्स वाले दलदल में फंसती जाती हैं तो उन्हें पता ही चल पाता कि वे गलत दिशा में आगे बढ़ चुकी हैं. फिर भी यदि किसी को ये महसूस हो जाता है कि उन्हें इस दलदल से बाहर निकलना है, तो उसके लिए ये 4 बातें बहुत जरूरी हैं:
1. सेल्फ अवेयरनेस: यह सबसे पहला और जरूरी प्वाइंट है, जिसमें वे ये फैसला कर सकें कि वे इस दुष्चक्र से निकलना चाहती हैं.
2. टाइम इन्वेस्टमेंट एनालिसिस: इसके बाद उन्हें मोबाइल से धीरे-धीरे दूरी बनानी होगी. इसके लिए टाइम इन्वेस्टमेंट एनालिसिस बहुत जरूरी है, जिससे हम पता कर सकते हैं कि हम मोबाइल स्क्रीन पर कितना समय खर्च कर रहे हैं. इसे धीरे-धीरे कम किया जा सकता है.
3. भरोसेमंद व्यक्ति का सपोर्ट: यह तीसरे नंबर पर आता है. जिस व्यक्ति पर लड़कियां सबसे ज्यादा भरोसा करती हैं, उनसे अपनी समस्या बतानी चाहिए. ये कोई भी हो सकता है- कोई दोस्त, भाई या बहन भी. ऐसा व्यक्ति जो वास्तविक फीडबैक दे सके और कमियां बता सकें और इस दुष्चक्र से बाहर निकलने में मदद कर सके.
4. खाली कभी न बैठें: इस समस्या से बाहर निकलने के लिए यह बहुत जरूरी है कि कभी खाली न बैठें. जब भी समय मिले, पेंटिंग कर लें, कोई किताब पढ़ लें, एक्सरसाइज कर लें या फिर आउटडोर या इंडोर गेम में खुद को व्यस्त कर लें. फिर इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है.
पैरेंट्स की क्या होनी चाहिए जिम्मेदारी?
लड़कियों को इस दलदल से बाहर निकलने में पैरेंट्स कैसे मदद कर सकते हैं? इस पर साइकोलॉजिस्ट डॉ. नीलिमा पांडे ने बताया कि पहले तो यह जरूरी है कि उन्हें समय से पहले मोबाइल प्रोवाइड न करें. इसके अलावा उनके अंदर सुंदरता को लेकर किसी तरह की समाज की भ्रांतियां न पनपने दें. बावजूद, यदि लड़कियां सोशल मीडिया पर गुड लुक्स के दलदल में फंस गईं हैं तो ध्यान रखें कि उन्हें गलती से भी डांटें नहीं. इससे नकारात्मकता फैलती है और डिप्रेशन की समस्या कम होने की जगह ज्यादा बढ़ जाएगी. ऐसे में मां-बाप को भी उस व्यक्ति का सहारा लेना चाहिए, जिसपर उनकी बेटी सबसे ज्यादा भरोसा करती है. उस व्यक्ति की मदद से फीडबैक दिलवाना चाहिए और यह बताना चाहिए कि सोशल मीडिया पर लुक्स पर लाइक्स बटोरना जिंदगी का उद्देश्य नहीं होना चाहिए. पैरेंट्स को अपनी बेटी के अस्तित्व को समझना होगा. उनसे प्यार से बात करनी चाहिए और उन्हें समझने की कोशिश करनी चाहिए.
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