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अडानी संकट: सरकार की खामोशी से हिल रहा निवेशकों का विश्वास
सरकार अगर बाजार को यह भरोसा दिलाती कि वो किसी भी गड़बड़ी के आरोप की जांच करेगी, तो शायद पूरे बाजार में विश्वास जगता.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
- अजय शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार
26 जनवरी के पहले, प्रधानमंत्री के करीबी कारोबारी गौतम अडानी और भारत के पूंजी बाजार का किला अभेद्य लग रहा था, मगर अमेरिकन शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग की रिसर्च रिपोर्ट से न सिर्फ अडानी की नींव हिल गई, साथ ही भारतीय पूंजी बाजार का भरोसा भी हिल गया. इससे भारतीय पूंजीबाजार से जहां इस साल के पहले महीने (जनवरी 2023) में 28,852 करोड़ रुपये के विदेशी निवेश की निकासी हुई थी, वहीं फरवरी के 10 दिनों में विदेशी निवेशकों ने 9600 करोड़ रुपये की निकासी की है. इससे अरबपति गौतम अडानी का कॉर्पोरेट करियर एकदम से गोते खाने लगा है. वैश्विक विकास इंजन और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के गंतव्य के रूप में भारत की विश्वसनीयता पर अधिक महत्वपूर्ण, गंभीर सवाल खड़े हो गये हैं. विदेशी निवेशकों के साथ ही देशी निवशक भी अडानी समूह से हाथ खीचने में लगे है. वहीं, केंद्रीय बजट 2023-24 में राजकोषीय शक्ति केंद्रीकरण की राह भी राज्यों में अविश्वास की भावना पैदा कर रही है, जो भारतीय पूंजी बाजार के लिए भी ठीक नहीं है.
खामोशी ने दिया आरोपों को बल
हमे पता है कि 24 जनवरी को जब हिंडनबर्ग की रिसर्च रिपोर्ट आई, तो स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी का आरोप अडानी समूह पर लगा, जिससे उनका बाजार मूल्य में 108 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है. जब अडानी समूह ने 2.4 अरब डॉलर के स्टॉक की पेशकश बंद की, तो स्थायी प्रभाव की संभावना स्पष्ट हो गई. अडानी का खंडन निवेशकों को आश्वस्त करने में विफल रहा. वह कभी दुनिया के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति थे, लेकिन ब्लूमबर्ग बिलियनेयर्स इंडेक्स में 21वें स्थान पर आ गए. बेहद छोटे मगर भरोसेमंद समझे जाने वाले अमेरिकी शॉर्ट-सेलर ने अडानी समूह के कॉरपोरेट गवर्नेंस के बारे में वैश्विक जगत में संदेह पैदा कर दिया है. इसकी लगभग 106 पेज की रिपोर्ट के नतीजे भारत और देश के नियामक ढांचे में निवेशकों के विश्वास को और अधिक व्यापक रूप से कम कर सकते हैं, चाहे इसके दावों में भले ही बहुत दम न हो. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या सरकार ने इस पर कोई चर्चा या जवाब न देकर आरोपों को बल दे दिया है.
PM का करीबी रहा है अडानी ग्रुप
आंकड़े और वस्तुस्थिति से स्पष्ट है कि अडानी, पिछले दो दशकों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीब रहे हैं. हवाई अड्डों, बिजली संयंत्रों और डेटा केंद्रों जैसी पूंजी-गहन परियोजनाओं में निवेश करने का उनका व्यवसाय मोदी के विकास एजेंडे के केंद्र में है. एक राष्ट्रीय चैंपियन, टाइकून ने अपने व्यावसायिक हितों को मोदी के विकास लक्ष्यों के साथ जोड़ दिया है. वह अक्सर उसी दिशा में कदम बढ़ाता है, जहां देश में हजारों नौकरियां पैदा करने की जरूरत या क्षमता न हो. यही भी सही ही है कि अगर उसकी संपत्तियों की कीमतों में गिरावट जारी रहती है और अडानी साम्राज्य में निवेशकों का विश्वास और डगमगाता है, तो यह भारत की विकास की कहानी को बाधित करेगा. अभी हम देख रहे हैं कि एचएसबीसी होल्डिंग्स, पीएलसी जैसे बैंक और एप्पल इंक जैसी कंपनियां चीन में अपने जोखिम को कम करने के लिए भारत में विस्तार कर रही हैं. व्यापार, अनिश्चित और महामारी नीतियों पर रोक ने निवेशकों को सावधान कर दिया है.
MSCI में भी लगा झटका
हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कर दिया है कि अडानी ने ऑफशोर शेल कंपनियों का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग के लिए किया. पब्लिक कंपनियों से फंड की हेराफेरी की. अडानी सिक्योरिटीज में छोटे निवेशकों ने समूह की बड़ी वृद्धि को "कंपनी के इतिहास में सबसे बड़ा घोटाला" बताया है. यह रिपोर्ट वही कह रही है, जो दावे भारतीय निवेश वर्ग और मीडिया-राजनीति के बीच सालों से चर्चा में हैं. इसके वैश्विक बातचीत में उभरने से उनके विश्वास का संकट पैदा हो गया है. हिंडनबर्ग ने अडानी में अपनी छोटी स्थिति पर टिप्पणी करने से बार-बार इनकार किया है. हालांकि अडानी ने 413 पन्नों के जवाब में, कहा कि हिंडनबर्ग का आचरण "लागू कानून के तहत नियोजित प्रतिभूति धोखाधड़ी के समान था." लेकिन सच यह है कि नुकसान पहले ही हो चुका है. इस साल, MSCI एशिया पैसिफिक इंडेक्स पर सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले दस शेयरों में से आठ अब अडानी कॉर्प हैं. इस बीच, भारतीय अरबपति की प्रमुख कंपनी के जारी किए गए बांड अमेरिकी व्यापार में निराशाजनक स्तर तक गिर गए हैं.
मूडीज ने भी बढ़ाई परेशानी
उथल-पुथल ने अडानी समूह के शेयरों और कंपनियों को ऋण देने वाले बैंकों को प्रभावित किया है. हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद से सरकार नियंत्रित भारतीय स्टेट बैंक के शेयर गिर गये हैं. ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 27 जनवरी से 31 जनवरी तक भारतीय शेयरों से शुद्ध रूप से 2 बिलियन डॉलर निकाले, जो मार्च के बाद से सबसे महत्वपूर्ण तीन दिवसीय बिकवाली रही है, जो भारतीय बाजार पर अविश्वास को प्रदर्शित करती है. दूसरी ओर, अडानी समूह के लिए रेटिंग एजेंसीज से भी बहुत अच्छी खबरें नहीं आ रही हैं. अडानी की कई कंपनियों के शेयर में गिरावट के बीच मूडीज इंवेस्टर्स सर्विस ने समूह की 4 कंपनियों के रेटिंग आउटलुक को स्टेबल से बदलकर निगेटिव कर दिया है. मूडीज ने अडानी ग्रीन एनर्जी, अडानी ग्रीन रिस्ट्रिक्टिड ग्रुप, अडानी ट्रांसमिशन स्टेप-वन और अडानी इलेक्ट्रिसिटी मुंबई लिमिटेड को अब निगेटिव रेटिंग आउटलुक के तहत रखा है. मूडीज इंवेस्टर्स सर्विस के अनुसार इन कंपनियों के मार्केट कैपिटलाइजेशन में भारी गिरावट के चलते रेटिंग आउटलुक को निगेटिव किया गया है. अडानी समूह की कंपनियों के शेयर में गिरावट के चलते गौतम अडानी की नेटवर्थ लगातार गिर रही है. जो 4.78 लाख रुपए (58 अरब डॉलर) पर आ गई है. अडानी समूह की फ्लैगशिप कंपनी अडानी एंटरप्राइजेज, अडानी विल्मर अडानी ट्रांसमिशन, टोटल गैस, पावर और ग्रीन में गिरावट देखने को मिल रही है.
बाजार के लिए संकट की घड़ी
अडानी समूह हो या फिर कोई अन्य व्यवसायिक समूह, पूंजी बाजार में विश्वास के भरोसे होता है. भले ही सरकार यह भरोसा दिलाने में कामयाब रही है कि वो अडानी समूह के साथ खड़ी है मगर वैश्विक बाजार में इसे निगेटिव ही माना जाता है. लगातार इस रिपोर्ट पर राजनीतिक हमलों से अस्थिरता को बढ़ावा मिलता है. सरकार अगर बाजार को यह भरोसा दिलाती कि वो किसी भी गड़बड़ी के आरोप की जांच करेगी. इस पर प्रधानमंत्री सहित जांच एजेंसियों के जवाब आते तो शायद पूरे बाजार में विश्वास जगता मगर ऐसा नहीं होने से बाजार में यह आशंका बढ़ती है कि गड़बड़ियों में सरकार भी साझीदार है. मौजूदा सरकारी नीतियों से आरोपों को बल मिल रहा है, जो पूंजी बाजार के लिए संकट की घड़ी है.
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