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आखिर भारत में क्यों रफ्तार नहीं पकड़ रही 'Creators Economy'?
भारतीय कलाकारों पर पड़ने वाला सकारात्मक प्रभाव यह है कि कलाकृतियों और पारंपरिक भारतीय प्रोडक्ट्स की मांग में वृद्धि द्देखने को मिली है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
Rhea Bakshi
देश भर में मौजूद करोड़ों कुशल कलाकारों के साथ भारत के पास विविध कलाकृतियों की एक शानदार परम्परा मौजूद है. ये कलाकार, टेक्सटाइल्स और आभूषणों से लेकर मिट्टी के बर्तन और लकड़ी की नक्काशी जैसी बहुत सी सुन्दर कलाकृतियां बनाते हैं जिन्हें हाथों से बनाया और सजाया जाता है और इन्हें भारत के साथ-साथ विदेशों में भी बहुत लम्बे समय तक संभालकर रखा जाता है. अपने शानदार टैलेंट और देश की संस्कृति के साथ-साथ इकॉनमी में भी अपने महत्त्वपूर्ण योगदान के बावजूद भारतीय कलाकारों और कलाकृतियों को कम मजदूरी, मार्केट तक पहुंच न होने और बड़ी संख्या में बनने वाली अन्य वस्तुओं की मौजूदगी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इन चुनौतियों की वजह से देश के अलग-अलग हिस्सों में कलाकारों की संख्या कम होती नजर आई है जिससे पारंपरिक कलाओं और उनसे चलने वाली जिंदगियों पर प्रमुख रूप से प्रभाव पड़ा है.
ग्लोबलाइजेशन: वरदान भी, अभिशाप भी
ग्लोबलाइजेशन से भारतीय कलाकारों पर प्रमुख प्रभाव पड़ा है और यह प्रभाव सकारात्मक होने के साथ-साथ नकारात्मक भी रहा है. ग्लोबलाइजेशन से भारतीय कलाकारों पर पड़ने वाला सकारात्मक प्रभाव यह है कि कलाकृतियों और पारंपरिक भारतीय प्रोडक्ट्स की मांग में वृद्धि देखने को मिली है जिससे भारतीय कलाकारों की कमाई में भी वृद्धि हुई है. ग्लोबलाइजेशन की बदौलत एक अच्छी चीज यह भी हुई है कि दुनिया भर से कलाकृतियों को बनाने के विभिन्न तरीकों का आदान प्रदान हुआ है जिससे नए प्रोडक्ट्स और डिजाईनों का विकास हुआ है. लेकिन दूसरी तरफ ग्लोबलाइजेशन की बदौलत दूसरे देशों से कम कीमत और ज्यादा मात्रा में उपलब्ध प्रोडक्ट्स की मार्केट में एंट्री हुई है जिससे मार्केट में कम्पटीशन बढ़ा है. कम्पटीशन बढ़ने की वजह से कलाकार अपने प्रोडक्ट्स को सही कीमत पर नहीं बेच पा रहे हैं. भारतीय कलाकार, देश की इकॉनमी का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं. जिसके प्रमुख कारण कुछ इस प्रकार से हैं:
शानदार सांस्कृतिक विरासत: भारत के हर हिस्से की अपनी अलग कलाकृति है. जैसे हथकरघे से बुनाई, मिट्टी के बर्तन और कलाकृतियां, लकड़ी पर की जाने वाली नक्काशी, मेटलवर्क, और कढ़ाई. इन सभी कलाकृतियों को पुश्त दर पुश्त सिखाकर आगे बढ़ाया गया है.
इकॉनोमिक योगदान: माना जाता है कि भारत में लगभग 70 लाख कलाकार मौजूद हैं. साल 2021-22 के दौरान 4.35 बिलियन डॉलर्स की भारतीय कलाकृतियों को एक्सपोर्ट किया गया था जो पिछले साल के मुकाबले 25.7% ज्यादा है. भारत, हाथों से बनायी जाने वाली कलाकृतियों को सबसे ज्यादा एक्सपोर्ट करने वाले देशों में से एक है. इसके साथ ही होममेड कालीन के सेगमेंट में भारत मात्रा और कीमत, दोनों ही मामलों में दुनिया में सबसे आगे है.
रोजगार के अवसर: कलाकार और कलाकृतियों का क्षेत्र, भारत में रोजगार की नजर से भी एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है. प्रमुख रूप से श्रम आधारित क्षेत्र होने की वजह से यह क्षेत्र महिलाओं और पिछड़े लोगों के लिए प्रमुख रूप से रोजगार उपलब्ध करवाता है. इतना ही नहीं, इस क्षेत्र में बड़े स्तर पर एक्सपोर्ट्स किये जाते हैं जिसकी वजह से यह क्षेत्र देश के फॉरेन रिजर्व में भी प्रमुख रूप से योगदान देता है.
इस वक्त दुनिया भर में ‘क्रिएटर्स इकॉनमी’ का स्थान महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है लेकिन इसके विपरीत कलाकारों को उनका उचित हिस्सा भी नहीं मिल पा रहा. इसके पीछे एक प्रमुख वजह तकनीकी रूप से पिछड़ना और मार्केटिंग की सही जानकारी न होना भी है. भारत में कलाकारों को प्रमुख रूप से जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
1. कानून: कुछ पुराने हो चुके कानूनों और नियमों की वजह से कलाकारों को अपने बिजनेस को कमर्शियल रूप से स्ट्रक्चर करने में दिक्कत आती है.
2. पॉलिसी: इकॉनमी की मुख्यधारा में एक प्रमुख भागीदार न होने की वजह से कलाकारों को अन्य इंडस्ट्रीज के जितना समर्थन नहीं मिलता.
3. कानूनों को सही से लागू न करना: बहुत बार ऐसा हुआ है कि नए कानूनों का पता न होने की वजह से कलाकार उन कानूनों का फायदा नहीं उठा पाए हैं जिसकी वजह से कई बार कलाकारों को बिचौलियों का सामना करना पड़ता है और बड़ी कंपनियों का सामना भी करना पड़ता है.
4. प्रोडक्शन से संबंधित चुनौतियां: कलाकारों को अक्सर कच्चे माल, इक्विपमेंट और मॉडर्न तकनीकों तक पहुंचने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इतना ही नहीं, बहुत से कलाकार अपने घरों या फिर छोटी-मोटी वर्कशॉप्स से काम करते हैं जिनमें आधुनिक उपकरण और इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद नहीं होते.
5. मार्केटिंग से संबंधित चुनौतियां: कलाकारों के पास आधुनिक मार्केट चैनल्स तक पहुंचने के साधन मौजूद नहीं हैं जिसकी वजह से वह अपने प्रोडक्ट्स को सही से प्रमोट नहीं कर पाते. ज्यादातर कलाकृतियों को बेचने में बिचौलियों का इस्तेमाल किया जाता है जिसकी वजह से कलाकारों के प्रॉफिट में कमी आती है.
6. लॉजिस्टिक्स की चुनौती: कलाकारों को आधुनिक सप्लाई चेन और उसकी मैनेजमेंट की बहुत ही कम समझ होती है जिसकी वजह से प्रोडक्शन और डिलीवरी के बीच सामंजस्य नहीं बैठ पाता और मुश्किलें पैदा होती हैं.
इन सभी चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार ने बहुत से अलग-अलग कदम उठाये हैं. सरकार द्वारा उठाये गए कदम अभी भी अपने शुरूआती दौर में हैं और इन्हें भारी-भरकम इन्वेस्टमेंट के साथ-साथ समर्थन की भी जरूरत है ताकि इन्हें अच्छी तरह से लागू किया जा सके. यहां कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं जिनकी बदौलत भारत की कला और संस्कृति का देश की इकॉनमी में योगदान बढ़ेगा:
1. ग्लोबल मार्केटिंग: भारतीय कला को प्रमुख अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेलों, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर प्रदर्शित करके इन्हें प्रमोट किया जाए.
2. इनोवेशन को बढ़ावा: ऐसे कलाकारों को लगातार ट्रेनिंग प्रोग्राम उपलब्ध करवाए जाएं जो लगातार नए डिजाइनों, तकनीकों और सामानों के साथ एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं. इससे उन्हें अपने पारंपरिक ज्ञान को इस वक्त मौजूद ट्रेंड्स के साथ मिलाने का मौका मिलेगा और उनके कंज्यूमर बेस में वृद्धि होगी.
3. इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास: प्रोडक्शन सेंटर्स, डिजाईन स्टूडियोज, और ट्रेनिंग सेंटर्स का निर्माण किया जाए जिससे कलाकारों को बेहतर संसाधन, उपकरण और ट्रेनिंग उपलब्ध करवाई जा सके.
4. व्यापार की अच्छी आदतों और एथिक्स को बढ़ावा देना: सरकार को कलाकारों द्वारा बनाई गयी सभी वस्तुओं के लिए MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) तय करना चाहिए. जब मार्केट में कीमतें गिरेंगी तो यह उनके लिए एक सुरक्षा कवच के तौर पर काम करेगा.
सरकार को एक नए सिरे से शुरुआत करने की जरूरत है ताकि उन समस्याओं को सुलझाया जा सके जिनकी वजह से इस क्षेत्र का विकास और वृद्धि रुकी हुई है. भारत की सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखने के लिए एक उन्नत और टिकाऊ कला क्षेत्र की आवश्यकता है.
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