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ई-गेमिंग पर बैन कोई समाधान नहीं, इसके लिए अनुकूल ईको सिस्टम तैयार करना होगा

ई-गेमिंग को लेकर कई तरह की चिंताएं और आशंकाएं हैं, जिन्हें दूर किया जाना जरूरी है.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago

  • डॉ. अरुणा शर्मा, पॉलिसी एडवाइजर व प्रेक्टिशनर डेवलपमेंट इकोनॉमिस्ट

ई-गेमिंग का दायरा और बाजार बढ़ता जा रहा है. करीब 2.7 बिलियन ई-गेमर्स इससे जुड़कर अपने कौशल को निखार रहे हैं. ई-गेमिंग का कारोबार 2022 में 1.5 बिलियन डॉलर है और 2025 तक इसके 5 बिलियन डॉलर के पार पहुंचने की उम्मीद है. ई-गेमिंग से जुड़ी कंपनियों की संख्या में भी इजाफा देखने को मिला है. भारत में 2010 में केवल 25 कंपनियां थीं, जो आज बढ़कर 275 हो गई हैं. इन कंपनियों में 15,000 स्किल्ड डेवलपर्स को रोजगार मिला हुआ है.

गेमिंग की स्लॉटिंग को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों की अपनी-अपनी व्याख्या है और साथ ही इस पर भी चर्चा चल रही है कि इसका क्या सामाजिक प्रभाव पड़ सकता है. पैरेंटल कंट्रोल को ई-गेमिंग के टूल में शामिल किया जा रहा है. इसके अलावा ई-गेमिंग को एक लत के तौर पर भी देखा जाता है, लेकिन इन सब के बावजूद इस पर बैन समाधान नहीं है. इसके दो दृष्टिकोण हो सकते हैं, एक तकनीकी फिल्टर और दूसरा सामाजिक शिक्षा.

ई गेम्स की अगुवाई करने वाली MeiTY यानी मिनिस्ट्री ऑफ इलेक्ट्रॉनिक एंड इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के लिए IMTF (इंटर-मिनिस्ट्रीयल टास्क फोर्स) द्वारा ई-गेमिंग इकोसिस्टम के गठन पर चर्चा एक अच्छा कदम है, क्योंकि इससे उसे ई-गेम्स के सभी स्टेकहोल्डर से इनपुट मिल जाएंगे. IMTF को शुरुआत में जिन मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए, उसमें सबसे पहला है इलेक्ट्रॉनिक खेलों की परिभाषा. उसके बाद निम्न पर ध्यान देना चाहिए:

  1.  क्या ये गेम ऑफ चांस है या गेम ऑफ स्किल्स 
  2.  इसे टैक्स के किस दायरे में रखा जाना चाहिए
  3.  क्या ई-गेमिंग OTT की तरह ब्रॉडकास्ट है  या यह खिलाड़ी का ज्ञान और कौशल है जो परिणाम को निर्धारित करता है.
  4.  क्या ई-गेमिंग मनोरंजन है या ज्ञान और कौशल को बढ़ाने का माध्यम
  5.  क्या यह सिर्फ एक मंच है जो फील्ड गेम को इलेक्ट्रॉनिक मोड में खेलना सक्षम बनाता है या उत्पाद
  6.  क्या यह मंच मध्यस्थ के रूप में काम करता है या कंटेंट प्रकाशित करता है
  7.  क्या ई-गेमिंग समय और पैसे की बर्बादी है, आदि.

उपरोक्त मुद्दों को समझने में स्पष्टता और अस्पष्टता को दूर करना सर्वोपरि है क्योंकि इससे विनियमों की दिशा, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कराधान और भारत में ई-गेमिंग के प्रसार का भविष्य तय होगा. यह स्थायी उच्च स्तरीय रोजगार के लिए एक अवसर के रूप में विकसित हो सकता है, खिलाड़ियों को खेल के नियमों पर शिक्षित करने, डिजिटल विभाजन को पाटने और कौशल के सम्मान को सक्षम करने का एक उपकरण है.

इस विषय में पहला मुद्दा जिसे स्पष्टता की जरूरत  है, वो ये है कि ई-गेमिंग 'कौशल' का खेल यानी गेम ऑफ़ स्किल्स है या एक चांस (गैंबलिंग). कई अदालतों ने अपने फैसलों में ई-गेमिंग को स्पष्ट रूप से 'गेम ऑफ स्किल्स' के रूप में वर्गीकृत किया है और ये भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(G) के तहत वैध व्यावसायिक गतिविधियों के रूप में संरक्षित है, क्योंकि वे गैंबलिंग यानी 'जुआ' के दायरे में नहीं आता. गेम ऑफ स्किल्स, गेम ऑफ चांस के विपरीत मुख्य रूप से किसी खिलाड़ी की विशेषज्ञता के मानसिक या शारीरिक स्तर पर आधारित होता है. इसलिए पहला कदम ई-गेमिंग को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना है, ताकि भ्रम से बचा जा सके कि क्या यह जुआ है (राज्य और आईपीसी-भारतीय दंड संहिता के तहत आता है). ऐसे ई-गेम्स जो सहमत मापदंडों को पूरा नहीं करते, उन्हें आईपीसी के प्रावधानों का पालन करना होगा, लेकिन मापदंडों की स्पष्टता सर्वोपरि है.

यह स्पष्ट होने के बाद कि ई-गेमिंग गेम ऑफ स्किल्स है, बात आती है टैक्सेशन यानी कराधान की. अप्रत्यक्ष कर के लिए जीएसटी पर मंत्रियों का समूह यदि इसे गेम ऑफ स्किल्स मानता है तो यह निश्चित रूप से 28% टैक्स के दायरे में नहीं आता और फिर प्रत्यक्ष कर के लिए यह ग्रॉस गेमिंग रिवेन्यु (जीजीआर) या समग्र गेमिंग आय पर होना चाहिए. इसके बाद IMTF के सामने एक और चुनौती यह है कि ई-गेमिंग OTT प्लेटफॉर्म की तरह एक ब्रॉडकास्ट है या गेम है. साथ ही यह भी स्पष्ट करना जरूरी है कि ई-गेमिंग मनोरंजन की श्रेणी में आता है या किसी दूसरी. वैसे इसे कौशल यानी स्किल्स की कैटेगरी में रखा जा सकता है. 

यह भी समझना जरूरी है कि क्या ई-गेमिंग एक प्लेटफॉर्म है जो फील्ड गेम्स को इलेक्ट्रॉनिक मोड में खेलने देता है या फिर ये एक प्रोडक्ट है? वैसे, कई ऐसे तथ्य हैं, उनके आधार पर इसे एक प्लेटफॉर्म कहा जा सकता है जो ग्राउंड गेम को इलेक्ट्रॉनिक रूप से खेलने में सक्षम बनाता है, और कुछ विशेष गेम भी विकसित किए गए हैं जो खिलाड़ियों को उनके ज्ञान और कौशल को बढ़ाने में सक्षम बनाते हैं और परिणाम खिलाड़ी के ज्ञान, क्षमता पर आधारित होता है. इसके साथ ही IMTF को यह भी स्पष्ट करना होगा कि क्या ये प्लेटफॉर्म मध्यस्थ के रूप में काम करता है या कंटेंट प्रकाशित करता है? उपरोक्त तकनीकी स्पष्टता के अलावा, IMTF को सामाजिक आशंकाओं को भी दूर करना है. क्योंकि ई-गेमिंग को अक्सर समय की बर्बादी माना जाता है. साथ ही अनुशासन और सेल्फ-रेगुलेशन पर जोर देना होगा. इस तरह बैन की आशंका को खारिज करते हुए इसे एक बेहतर इंडस्ट्री के तौर पर विकसित किया जा सकता है.


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