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BW Healthcare में Homeopathy पर खूब हुई बात, डॉक्टर बत्रा ने खोले कई राज

'प्रिवेंटिव मेडिसिन में भी होम्योपैथी काफी अच्छी है. कई महामारियों से लड़ाई में होम्योपैथी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है'.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 2 months ago

BW Healthcare द्वारा दिल्‍ली में समिट और अवॉर्ड समारोह आयोजित किया जा रहा है. इस कार्यक्रम में मेडिकल इंडस्ट्री की दिग्गज हस्तियां शिरकत कर रहीं और अपने विचार व्यक्त कर रही हैं. इसी कड़ी में Dr. Batra's Healthcare के फाउंडर चेयरमैन डॉक्टर मुकेश बत्रा ने Firechat में BW Businessworld की असिस्टेंट एडिटर प्रियंका सिंह के सवालों के जवाब दिए. उन्होंने होम्योपैथी मेडिसिन की विशेषताओं पर प्रकाश डालने के साथ-साथ यह भी बताया कि उन्हें किस तरह की चुनौतियों का सामना पड़ा और होम्योपैथी के लिए अभी और क्या किए जाने की जरूरत है.     

170 देशों में कानूनी मान्यता
इस बातचीत की शुरुआत प्रियंका ने इस सवाल के साथ की कि होम्योपैथी (Homeopathy) को लेकर कई तरह के संदेह हैं, कई गलत धारणाएं हैं. वैश्विक स्तर पर यह उतनी स्वीकार्य भी नहीं है, तो ऐसे में आपको भारत में इतना बड़ा नाम बनाने में किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा? इसके जवाब में डॉक्टर बत्रा ने कहा कि वर्ल्ड बैंक के अनुसार होम्योपैथी दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मेडिसिन सिस्टम है और यह 25% की बैक-टू-बैक रफ्तार से ग्रो कर रहा है. केवल भारत ही नहीं, 170 देशों में होम्योपैथी कानूनी रूप से इस्तेमाल हो रही है. भारत होम्योपैथी का सबसे बड़ा बेस है. इसके यहां 50 मिलियन फॉलोअर्स हैं और 2 लाख से ज्यादा होम्योपैथी डॉक्टर हैं. 

सामने आईं ये चुनौतियां
उन्होंने आगे कहा कि मेरी कंपनी छह देशों में मौजूद है. अपने इस सफर में हमें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. हमारी सबसे पहली चुनौती थी रजिस्ट्रेशन. मॉरीशस में जब मैंने वहां के उप राष्ट्रपति से अपनी क्लीनिक के उद्घाटन का आग्रह किया तो उन्होंने कहा कि यदि मैं ऐसा करता हूं तो वो मुझे जेल में डाल देंगे, क्योंकि मॉरीशस में होम्योपैथी को कानूनी मान्यता नहीं मिली है. मुझे मॉरीशस में होम्योपैथी को कानूनी रूप दिलवाने के लिए छह महीनों तक संघर्ष करना पड़ा. 1996 में मैंने वहां पहली कानूनी रूप से स्वीकृत होम्योपैथी क्लीनिक शुरू की. इसी तरह की चुनौती का सामना हमने अरब देशों में भी किया. होम्योपैथी अल्कोहल आधारित मेडिसिन है और अरब देशों में वो प्रतिबंधित थी. इसके अलावा, दूसरी सबसे बड़ी चुनौती रही होम्योपैथी डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन. भारत में साढ़े पांच साल का कोर्स है, लेकिन इसके बावजूद डॉक्टरों को एक और एग्जाम पास करना होता है. यूके में भी उन्हें छह महीने का कोर्स करना पड़ता है. मिडिल ईस्ट में उन्हें मेडिकल बोर्ड के सवालों के जवाब देने होते हैं और पास होने पर ही उनका पंजीकरण हो पता है. 

कदम चूम लेती है मंजिल...
डॉक्टर बत्रा ने कहा कि हमारी तीसरे चुनौती थी इन्फ्रास्ट्रक्चर सेटअप. नए देशों में इन्फ्रास्ट्रक्चर सेटअप करना आसान नहीं होता. लाइसेंस प्रक्रिया काफी जटिल होती है. कभी कभी इसमें 1 साल तक का समय लग जाता है. लंदन की बात करें, तो वहां होम्योपैथी काफी लोकप्रिय है, लेकिन इसके बावजूद उसके बेनिफिट्स को लेकर हमें अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित करने की मनाही है. होम्योपैथी के दावों को लेकर भी तमाम तरह के प्रतिबंध हैं. लेकिन इस सबके बावजूद हम सफलतापूर्वक अपना स्थान बनाने में सफल रहे. मैं इसमें यकीन रखता हूं कि 'कदम चूम लेती है मंजिल ही आकर, अगर राही खुद अपनी हिम्मत न हारे'.

प्रिवेंटिव मेडिसिन में भी कारगर
भारत में इंटीग्रेटेड मेडिसिन में होम्योपैथी क्या भूमिका निभा सकती है? इसके जवाब में डॉक्टर मुकेश बत्रा ने कहा कि आज सबसे ज्यादा मौतें कम्युनिकेबल डिजीज से नहीं होतीं, ये नॉन कम्युनिकेबल डिसऑर्डर (NCD) से होती हैं. भारत में 25 मिलियन लोग हर साल NCD से मर जाते हैं. ऐसे मामलों में होलिस्टिक नेचर के चलते होम्योपैथी और आयुष मेडिसिन कारगर साबित हो सकते हैं. इससे कम खर्चे में इलाज हो जाता है, इसलिए आप उन्हें मेडिसिन के अन्य सिस्टम के साथ बड़ी आसानी से इंटीग्रेट कर सकते हैं. लाइफस्टाइल, खराब खानपान आदि से जुड़ी बीमारियों के लिए होलिस्टिक मेडिसिन अच्छी रहती हैं और होम्योपैथी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. प्रिवेंटिव मेडिसिन में भी होम्योपैथी काफी अच्छी है. कई महामारियों से लड़ाई में होम्योपैथी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

होम्योपैथी को लेकर हैं ये मिथ्स
होम्योपैथी को लेकर फैली गलत धारणाओं के बारे में बताये उन्हें डॉक्टर बत्रा ने कहा कि होम्योपैथी मेडिसिन को लेकर तमाम तरह के मिथ्स हैं. सबसे पहला तो यही है कि होम्योपैथी का असर बेहद धीमे होता है, जबकि ऐसा नहीं है. हां, ये बात जरूर है कि किसी भी बीमारी को जड़ से मिटाने में कुछ समय लगता है. दूसरी गलत धारणा है कि होम्योपैथी हर्बल मेडिसिन है. होम्योपैथी दवाओं को कई सोर्स से बनाया जाता है और ये हर्बल नहीं है. इसके असर को लेकर भी अधिकांश लोग गलत धारणा से ग्रस्त हैं. कुछ कहते हैं कि विश्वास न हो, तो ये काम नहीं करती. होम्योपैथी कारगर तरह से काम करती है. इंसानों के साथ-साथ जानवरों पर भी इसके अच्छे रिजल्ट मिलते हैं. यूके में 50% से ज्यादा वेटनरी डॉक्टर होम्योपैथी ही प्रिस्क्राइब करते हैं.  बच्चों के लिए भी यह काफी अच्छी है.

क्या करने की है जरूरत? 
होम्योपैथी की दिशा में और क्या किया जाना चाहिए, इसके जवाब में डॉक्टर बत्रा ने कहा कि मौजूदा समय में सबसे ज्यादा जरूरत जागरुकता फैलाने की है. और ऐसा सभी स्तर पर होना चाहिए. सरकार, मेडिकल पेशेवर सभी को इस दिशा में काम करना होगा. हमें जनता के बीच जाकर भी होम्योपैथी मेडिसिन को लेकर फैली गलत धारणाओं को दूर करना चाहिए. होम्योपैथी मेडिसिन का इतिहास दशकों पुराना है, इसके बाद भी अगर यह कहा जाता है कि होम्योपैथी बेहद धीमी है, तो समझा जा सकता है कि इसे लेकर जागरुकता की कितनी कमी है. 


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