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मंदी की आहट, भारत का रुतबा और सामने मौजूद चुनौतियां

मौजूदा हालात संकट के हैं. ऐसे में आवश्यक है कि समान प्रतिस्पर्धा और रोजगार के अधिकतम अवसर पैदा करने की नीतियां सरकार बनाए

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago

हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन में प्रवासियों को संबोधित करते हुए कहा था कि प्रवासी भारतीय भारत के ब्रैंड एंबेसडर हैं. उनकी भूमिका विविध है. आप सभी 'मेक इन इंडिया', योग, हस्तशिल्प के साथ-साथ भारतीय बाजार के ब्रैंड एंबेसडर हैं. आज पूरी दुनिया भारत की ओर देख रही है. अलग-अलग देशों, अलग-अलग सभ्यताओं के बीच व्यावसायिक संबंध कैसे साझी समृद्धि के रास्ते खोल सकते हैं, यह भारत ने अरसे से करके दिखाया है. निश्चित रूप से उनकी बात काफी अहम है. वैश्विक बाजार में भारत की जरूरतें और भारत की आपूर्ति अहम रही है. जब वैश्विक मंदी की आहट हो, तब यह काफी अहम हो जाता है. इस सम्मेलन के साथ ही विश्व बैंक से मिली सूचना चिंता बढ़ाने वाली है. वैश्विक स्तर पर, बढ़ती मुद्रास्फीति और बैंकों की ब्याज दरों, घटते निवेश और यूक्रेन पर रूस के लगातार हो रहे आक्रमण के कारण बाजार की आपूर्ति में व्यवस्था में व्यवधान आने से, विकास की गति धीमी होती जा रही है.

विकास दर का अनुमान घटाया
विश्व बैंक ने अपनी ताजा आर्थिक रिपोर्ट में एक बार फिर भारत की आर्थिक विकास दर को आरबीआई के अनुमान 7 फीसदी से घटाकर 6.6 फीसदी कर दिया है. विश्व बैंक ने पहले भारत की विकास दर 2022-23 में अनुमानित 6.9 फीसदी रखी थी. वहीं, 2024-25 के लिए विकास दर 6.1 फीसदी अनुमानित है. चालू वित्त वर्ष में विकास दर में लगातार कमी आई है. अप्रैल 2022 से मार्च 2023 के बीच 6.9 प्रतिशत की वृद्धि दर रही, जो पिछले वित्त वर्ष में कोरोना काल की तुलना में 8.7 फीसदी थी. विश्व बैंक ने यह भी बताया कि उभरते बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में, प्रति व्यक्ति आय वृद्धि औसतन 2.8 फीसदी रहने का अनुमान है, जो 2010-2019 के औसत से एक फीसदी अंक कम है. दुनिया के सर्वाधिक निर्धन लोगों का करीब 60 फीसदी हिस्सा समझे जाने वाले उप-सहारा अफ्रीका में, 2023-24 में प्रति व्यक्ति आय में औसतन सिर्फ 1.2 फीसदी वृद्धि का अनुमान है, जिससे गरीबी की दर कम होने की बजाय बढ़ सकती है. चिंता का विषय यह है कि विश्व बैंक समूह के अध्यक्ष, डेविड मलपास के मुताबिक, "वैश्विक विकास परिदृश्य बिगड़ने के कारण विकास का संकट गहरा रहा है."

भारी कर्ज का बोझ
अर्थव्यवस्था को लेकर, यह तथ्य बेहद महत्वपूर्ण है कि उभरते और विकासशील देशों पर, भारी कर्ज का बोझ और व्यापार में कमजोर निवेश के कारण, कुछ सालों की धीमी विकास दर का सामना करना हम सभी को करना पड़ रहा है. इससे, शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी और बुनियादी ढांचे में पहले से ही हो रहे विनाशकारी उलटफेर व जलवायु परिवर्तन में और मांगें जुड़ जाने से आपूर्ति का संकट खड़ा होना तय है. घरेलू ब्रोकरेज फर्म मोतीलाल ओसवाल ने 'अनिश्चितता' का हवाला देते हुए वित्त वर्ष 2022-23 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अनुमान को घटाकर कर 6.3 फीसदी कर दिया है. विश्लेषण करने वाली कंपनियों के बीच अब तक यह सबसे कम अनुमान है. मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज ने अगले वित्त वर्ष के लिए वृद्धि अनुमान 7.6 फीसदी की बाजार आम सहमति और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 8-8.5 फीसदी वृद्धि के अनुमान से भी कम है. आरबीआई ने पिछले सप्ताह अपनी बैठक में चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी में 9.5 फीसदी की वृद्धि का अनुमान दोहराया था. यह उनके खुद के अनुमान से काफी कम था. यह अंतराल दूर करने में लंबा समय लगेगा.

बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी
सबसे चिंताजनक अनुमान मोतीलाल ओसवाल का है जिसकी मानें तो भारत की जीडीपी 50 साल के सबसे निचले स्तर पर होगी. 2023-24 में भारत की नॉमिनल जीडीपी 50 साल के निचले स्तर पर होगी. भारत की विकास दर 1968-1972 के लेवल पर आ सकती है. वजह निवेश, निर्माण, निर्यात और मांग सभी में भारी कमी आई है. यही वजह है कि भारत का व्यापार घाटा सहित तमाम कारक कमजोर पड़े हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने पहले ही बता दिया था कि आगामी वित्तवर्ष दुनिया की एक तिहाई अर्थव्यवस्था मंदी का शिकार होगी. चीन, अमेरिका और यूरोप में नरमी की आशंका के बीच 2023 पिछले साल के मुकाबले अधिक चुनौतीपूर्ण होगा. रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म होते नहीं दिखता. बढ़ती मुद्रास्फीति, उच्च ब्याज दर और चीन में कोरोना संकट वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है. उसका मानना है कि जिन देशों में मंदी नहीं भी है, वहां भी करोड़ों लोग मंदी से प्रभावित होंगे. इन वैश्विक हालात के बीच भारत में बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई चिंता की लकीरें बढ़ा रही है.

राहत देने वाली खबर
देश में बेरोजगारी दर दिसंबर, 2022 में बढ़कर 8.3 फीसदी के उच्चस्तर पर पहुंच गई है. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2023-24 का वित्तीय सत्र वैश्विक मंदी का रहेगा मगर भारत इस दौर में भी 6.6 फीसदी की वृद्धि दर के साथ सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में होगा. यह खबर हमें राहत देती है. वैश्विक ऊर्जा संकट की स्थिति में आशंकित वैश्विक मंदी में भारत अपने मूल उत्पादनों के बेहतर प्रदर्शन के सहारे खड़ा रहेगा, जैसे कोरोना महामारी के दौर में था. इस बारे में हमारे प्रधानमंत्री का मानना है कि भारत कृषि के क्षेत्र में दुनिया की अग्रणी ताकत बन गया है. आने वाले समय में इस क्षेत्र में प्रौद्योगिकी और नवोन्मेष से एक नयी क्रांति आने वाली है, जो युवाओं के लिए नए अवसर पैदा करेगी. इसके साथ ही नए रास्ते भी खुलेंगे. भारत के युवाओं के सामर्थ्य के कारण ही तमाम सफलताएं संभव हो सकी हैं. हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लक्ष्य भारत को विश्व की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल करना है. इससे आर्थिक विकास तेज गति पकड़ेगा और युवाओं के लिए अच्छे अवसर पैदा होंगे.

ये करने की जरूरत 
हम जानते हैं कि हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं. प्रधानमंत्री का लक्ष्य भारत को विश्व की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल करना है. बकौल प्रधानमंत्री जब पूरी दुनिया भारत की तरफ उम्मीदों की नजर से देख रही है और यहां निवेश को आतुर है, वजह हमारे पास दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी है. जो हमारी ताकत है, जिसकी प्रतिभा और ज्ञान को पूरी दुनिया लेना चाहती है. बहराल, मौजूदा हालात संकट के हैं. ऐसे में आवश्यक है कि समान प्रतिस्पर्धा और रोजगार के अधिकतम अवसर पैदा करने की नीतियां सरकार बनाये. अगर यह नीति बनती है, तो हमारी अर्थव्यवस्था वैश्विक मंदी से बच सकेगी. यह नीति रोजगार के अच्छे अवसर उपलब्ध कराने में मददगार साबित होगी. अगर ऐसा हो सकेगा, तभी भारत की अर्थव्यवस्था की गति भी बढ़ेगी और समान अवसर देने से नये लोगों को भी अपनी ताकत बनाया जा सकेगा, जो बेरोजगारी और महंगाई दोनों कम करेगी.


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