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दमदार मैसेज के साथ फुटबॉल प्रेम की कहानी दर्शाती है 'Chidiakhana'
फिल्म की कहानी फुटबॉल के बैकग्राउंड पर है. फिल्म को देखकर लगता है कि सरकार को क्रिकेट की तरह ही फुटबॉल को भी महत्व देना चाहिए.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 10 months ago
लंबे अरसे के बाद भारत सरकार की इकाई राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (NFDC) एक ऐसी फिल्म के साथ सिनेमा के सुनहरे परदे पर लौटी है, जिसमें बस्तियों में रहकर सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के अंदर छिपी ऐसी प्रतिभा को दर्शाया गया है. डायरेक्टर मनीष तिवारी ने अपने निर्देशन से फिल्म 'चिड़ियाखाना' में जान डाल दी है. यूं तो फुटबाल को लेकर प्रकाश झा ने भी फिल्म बनाई, तो महानायक अमिताभ बच्चन ने भी फिल्म में फुटबाल कोच का रोल निभाया. लेकिन इस फिल्म में एक अलग ही कहानी दिखाई गई है.
टूट गई ये धारणा
देश की इस सरकारी संस्था का मुख्य उद्देश्य सीमित साधनों में अच्छी प्रतिभाओं को लेकर अच्छे सिनेमा का निर्माण करना है. ऐसा महसूस किया जाने लगा था कि राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम के सहयोग से बनने वाली फिल्मों की गति थम सी गई है, लेकिन अब इस संस्था की चिड़ियाखाना को देखकर यकीन बंधा है कि आने वाले दिनों में भी NFDC के बैनर तले बनने वाली फिल्मों की रफ्तार बढ़ेगी. राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम के सहयोग से बनी 'चिड़ियाखाना' की कहानी का प्लॉट ठीक-ठाक है. अगर आप फैमिली के साथ साफ-सुथरी और एक मैसेज देती फिल्मों के शौकीन हैं, तो आप चिड़ियाखाना' देखने जा सकते हैं.
क्या है फिल्म की कहानी?
फिल्म की कहानी फुटबॉल के बैकग्राउंड पर है. फिल्म को देखकर लगता है कि सरकार को क्रिकेट की तरह ही फुटबॉल को भी महत्व देना चाहिए. कहानी बिहार से अपनी मां के साथ मुंबई की एक स्लम बस्ती में आए सूरज की है. एक बंगले में घर का काम करने वाली मां के बेटे सूरज को बस्ती के एक सरकारी स्कूल में एडमिशन मिलता है. कुछ पारिवारिक वजहों से सूरज की मां बार- बार शहर बदलती है, स्टडी में सूरज का ज्यादा ध्यान नहीं है. उसका सारा ध्यान फुटबॉल पर ही लगा रहता है. फुटबॉल के प्रति सूरज में गजब का जुनून है. सूरज भी स्कूल में बच्चों के साथ फुटबॉल खेलना शुरू करता है. शुरू में सूरज का फुटबाल टीम में खेलना टीम के सीनियर्स को पसंद नहीं आता, लेकिन कुछ मुश्किलों के बाद सूरज भी इसी टीम में एडजस्ट हो जाता है. एक दिन स्कूल के प्रिंसिपल बताते हैं कि स्कूल के ग्राउंड की लीज खत्म होने वाली है. यह लीज उसी सूरत में फिर आगे बढ़ सकती है जब स्कूल की टीम शहर के एक नामी पब्लिक स्कूल की मजबूत टीम को हरा दे.
फिल्म में क्या लगा अटपटा?
लेखक-निर्देशक मनीष तिवारी ने इस सिंपल स्टोरी में एक अलग ट्विस्ट भी पेश किया है, जिसे आप पर्दे पर देखकर चौंक जाएंगे. मनीष ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि हम सब में एक जानवर होता है, अगर आपको किसी भी चैलेंज में विजय प्राप्त करनी है, तो अपने अंदर के जानवर को अपनी ताकत के रूप में प्रयोग करना होगा. फिल्म की कहानी फुटबॉल को कहीं न कहीं बढ़ावा देने का काम करती. ना जाने क्यों मनीष ने इस स्टोरी के साथ भ्रष्ट नेता, बिल्डर माफिया का मुद्दा जोड़ दिया. रवि किशन फिल्म में एक दो-दृश्य में नजर आते हैं. अन्य कलाकारों में प्रशांत नारायण की एक्टिंग काफी प्रभावशाली है. राजेश्वरी सचदेवा, गोविंद नामदेव, अंजन श्रीवास्तव, मिलिंद जोशी आदि ने अपने अपने किरदारों में रंग भरे हैं.
क्यों देखने जाएं चिड़ियाखाना?
अगर आप फैमिली के साथ साफ-सुथरी और मैसेज देती फिल्मों के शौकीन हैं, तो आप चिड़ियाखाना देखने जा सकते हैं.
कलाकार: ऋत्विक साहोर, गोविंद नामदेव, अवनीत कौर, प्रशांत नारायण, राजेश्वरी सचदेवा, अंजन श्रीवास्तव और विशेष भूमिका में रवि किशन
डॉयरेक्टर-राइटर: मनीष तिवारी,
निर्माता: राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (NFDC)
सेंसर सार्टिफिकेट: UA
स्टार: 2.5
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