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दोगुनी हुई भारत की प्रति व्यक्ति आय, ये चुनौतियां अभी भी हैं बाकी
कोविड महामारी के समय में प्रति व्यक्ति आय सांकेतिक के साथ वास्तविक रूप में भी कम हो गयी थी. लेकिन साल 2021-22 और 2022-23 के दौरान इसने एक बार फिर रफ्तार पकड़ ली थी.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार साल 2014-15 में नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाली सरकार आने के बाद से सांकेतिक आधार पर भारत की प्रति व्यक्ति आय दोगुनी होकर 1,72,000 हो चुकी है. NSO द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान कीमतों के आधार पर साल 2022-23 में अनुमानित वार्षिक प्रति व्यक्ति आय (नेट राष्ट्रिय आय) लगभग 1,72,000 रुपये है और यह साल 2014-15 की 86,647 रुपये की प्रति व्यक्ति आय से 99% के आस पास ज्यादा है.
कोविड में धीमी हुई थी रफ्तार
NSO से मिले डाटा से पता चलता है कि, कोविड महामारी के समय में प्रति व्यक्ति आय सांकेतिक के साथ-साथ वास्तविक रूप में भी कम हो गयी थी. लेकिन साल 2021-22 और 2022-23 के दौरान इसने एक बार फिर से रफ्तार पकड़ ली थी. प्रमुख इकॉनोमिक रिसर्च संस्थान NIPFP (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी) के पुर्व निर्देशक Pinaki Chakraborty ने कहा कि, विश्व विकास सूचक के डाटाबेस के अनुसार, साल 2014 से 2019 के बीच वास्तविक रूप में भारत की प्रति व्यक्ति आय की औसत विकास दर 5.6% प्रतिवर्ष दर्ज की गयी थी.
जरूरी है सभी क्षेत्रों का संतुलित विकास
Pinaki Chakraborty ने आगे बताते हुए कहा – यह विकास बहुत महत्त्वपूर्ण है. हमें स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक और इकॉनोमिक अस्थिरता से जुड़े उत्पादन में सुधार देखने को मिला है. कोविड महामारी ने हमें बुरी तरह से प्रभावित किया लेकिन, कोविड के बाद से हमें महत्त्वपूर्ण इकॉनोमिक रिकवरी देखने को मिली है. पुनर्वितरण की महत्त्वपूर्ण पॉलिसी के माध्यम से प्रति व्यक्ति आय की विकास दर को 5% से 6% प्रतिवर्ष बनाये रखने में सहायता मिली है और आगे भी इसी रफ्तार को बनाये रखने के लिए यह पॉलिसी जरूरी हैं. साथ ही हमें देश के अलग-अलग हिस्सों में असमान विकास को भी ध्यान में रखना होगा. सभी क्षेत्रों का संतुलित विकास बड़े और महत्त्वपूर्ण विकास के लिए मुख्य स्त्रोत की भूमिका निभाएगा.
असमान आय भी बनी हुई है चुनौती
लेकिन इस वृद्धि का सबसे ज्यादा फायदा कुल जनसंख्या के केवल 10% हिस्से को हो रहा है और आय का असमान वितरण अभी भी एक चुनौती बना हुआ है. ISID (औद्योगिक विकास के अध्ययन के लिए संस्थान) के निर्देशक नागेश कुमार कहते हैं कि, केवल ऊपरी स्तर पर आय के बढ़ने का मतलब यह होता है कि आय की सीढ़ी में निचले पायदानों पर मौजूद लोगों की आय में कुछ बहुत बड़ा फर्क देखने को नहीं मिलेगा. आय के असमान वितरण के अलावा, इन्फ्लेशन भी एक चुनौती बना हुआ है. डेवलपमेंट इकॉनोमिस्ट जयंती घोष ने सांकेतिक रूप में प्रति व्यक्ति आय दोगुना होने पर कहा – आप GDP (सकल घरेलु उत्पाद) को केवल वर्तमान कीमतों के आधार पर देख रहे हैं लेकिन अगर आप इन्फ्लेशन को भी इसमें शामिल कर लें तो यह बढ़त बहुत ही कम है. इसके साथ ही जयंती ने भी माना है कि आय का वितरण बहुत गंभीर मुद्दा है और वास्तविक मायनों में मध्यवर्गीय वेतन कम हो रहा है.
तेजी से बढ़ रहा है भारत
हालांकि इन सभी चुनौतियों के बावजूद भारत, विश्व की सबसे तेजी से बढ़ रही प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. IMF (अंतरराष्ट्रीय मोनेटरी फंड) के अनुमानों के अनुसार, भारत ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को पछाड़कर विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी इकॉनमी बन गया है और अब केवल अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी से पीछे है. एक दशक पहले भारत विश्व की 11वीं सबसे बड़ी इकॉनमी था जबकि ब्रिटेन तब भी पांचवें स्थान पर बना हुआ था.
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