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वित्त मंत्री ने लोकसभा में बताया अडानी की कंपनियों में LIC का है कितना पैसा ?
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद अडानी की फर्मों में LIC का निवेश जांच के दायरे में आ गया है. क्योंकि रिपोर्ट सामने आने के बाद अडानी फर्मों के सूचीबद्ध शेयरों में 50% से अधिक की गिरावट आई है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
जब से हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आई है और अडानी के शेयरों में गिरावट हो रही है तब से लगातार विपक्ष इस मामले को लेकर सरकार पर निशाना साध रहा है. विपक्ष का आरोप है कि अडानी की फर्मों को हुए नुकसान में एलआईसी के निवेश को भी खतरा पैदा हो गया है. सोमवार को संसद के पहले दिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में बताया कि मौजूदा समय में एलआईसी कितने नुकसान में है. वित्त मंत्री ने कहा कि दिसंबर 2022 में ये बकाया 6,347 करोड़ रुपये था जो 5 मार्च, 2023 को 6,183 करोड़ रुपये हो गया है.
LIC ने सरकार को दी जानकारी
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा को बताया कि भारतीय जीवन बीमा निगम ने सरकार को जानकारी दी है कि 31 दिसंबर, 2022 और 5 मार्च, 2023 तक अडानी समूह की फर्मों के लिए उसका ऋण जोखिम कितना रह गया है. दिसंबर में ये 6,347 करोड़ रुपये था जबकि 5 मार्च को ये 164 करोड़ घटकर 6,183 करोड़ रुपये हो गया है. वित्त मंत्री ने एक लिखित उत्तर में कहा कि अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन लिमिटेड में एलआईसी का बकाया ऋण 31 दिसंबर, 2022 को 5,553 करोड़ रुपये के मुकाबले 5 मार्च, 2023 तक 5,388.6 करोड़ रुपये रह गया है. सरकार ने शनिवार को एलआईसी के चेयरमैन एम आर कुमार का कार्यकाल नहीं बढ़ाने का फैसला किया. वित्त मंत्री ने ये भी कहा कि पांच सार्वजनिक क्षेत्र की सामान्य बीमा कंपनियों ने जानकारी दी है कि इन कंपनियों के पास अडानी फर्मों के लिए कोई ऋण/क्रेडिट जोखिम नहीं है.
50 प्रतिशत से अधिक की गिरावट के कारण शुरू हुई जांच
अडानी फर्मों में एलआईसी का निवेश तब से गहन जांच के दायरे में आया है जब से इस समूह के सूचीबद्ध शेयरों में 50% से अधिक की गिरावट आई है, क्योंकि अमेरिकी लघु विक्रेता हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा इसके खिलाफ धोखाधड़ी के आरोप लगाए गए थे. मंत्री ने इस सवाल का भी जवाब दिया कि विभिन्न बैंकों ने अडानी समूह फर्मों को ऋण/क्रेडिट जोखिम की वसूली में शामिल जोखिमों का आकलन किया है. उन्होंने जवाब देते हुए कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने जानकारी दी है कि वो किसी भी कंपनी का लोन तभी मान्य करते हैं जब प्रोजेक्ट वॉयबिलिटी, संभावित कैश प्रवाह, रिस्क फैक्टर और पर्याप्त सुरक्षा की उपलब्धता और ऋणों की चुकौती की उपलब्धता का आकलन किया जाता है , न कि परियोजना द्वारा उत्पन्न रेवेन्यू द्वारा सुनिश्चित किया जाता है.
विपक्ष लंबे समय से मांग रहा है सरकार से ब्यौरा
जब से अडानी फर्मो को लेकर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आई है तब से लगातार विपक्ष सरकार पर हमलावर है. वो लगातार सरकार से एलआईसी और दूसरे बैंकों के निवेश की जानकारी मांग रहा है. हालांकि सरकार ने इससे पहले भी ये जानकारी दी है लेकिन अब वित्त मंत्री ने अगर ये लोकसभा में कहा है तो उसके बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि ये विवाद थम जाएगा.
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