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DTU के PHD स्टूडेंट ने बनाया ये सॉफ्टवेयर, जानें कैसे रोकेगा सर्टिफिकेट का फर्जीवाड़ा?
Delhi Technological University के छात्र शुभम ने शिक्षा मंत्रालय के इनोवेशन से डिजीपत्र सॉफ्टवेयर डेवलप किया है. इसे देश के टॉप 20 स्टार्टअप में शामिल किया गया है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 month ago
फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर देश में नौकरी पाने के मामले काफी बढ़ने लगे हैं. यही नहीं लोग इन जाली प्रमाणों के जरिए पासपोर्ट भी बनवा रहे हैं. इसे रोकने का सटीक तरीका दिल्ली टेक्नोलॉजीकल इंस्टीट्यूट (डीटीयू) के एक छात्र शुभम प्रजापति ने निकाल लिया है. शुभम ने डिजीलॉकर (DigiLocker) की तर्ज पर डिजीपत्र (DigiPatra) सॉफ्टवेयर बनाया है, जो ब्लॉकचेन (Blockchain) की मदद से सर्टिफिकेट्स को सुरक्षित रखता है. इसमें कुछ ही मिनटों में हजारों सर्टिफिकेट एक साथ अपलोड हो जाते हैं.
कौन हैं शुभम और ये क्या करते हैं?
शुभम मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बलिया का रहने वालें हैं. ये डीटीयू से इनोवेशन और एंटरप्रेन्योरशिप में पीएचडी कर रहे हैं. शिक्षा मंत्रालय के इनोवेशन सेल की मदद से शुभम ने 2022 में डीजिपत्र सॉफ्टवेयर लॉन्च किया है. इसके जरिए प्रमाण पत्र के फर्जीवनी को रोकने में मदद मिलेगी. शुभम इनोवेटिव स्क्रिप्ट कंपनी के फाउंडर भी हैं, जिसके तहत उन्होंने ये सॉफ्टवेयर तैयार किया है.
मात्र तीन स्टेप्स में करें डाक्यूमेंट्स अपलोड
DigiPatra को वेबसाइट के माध्यम से किसी भी डिवाइस से एक्सेस किया जा सकता है. इसमें मात्र 3 स्टेप्स में Blockchain Based सर्टिफिकेट या डॉक्युमेंट्स जनरेटर किए जा सकते हैं. सबसे पहले पोर्टल पर लॉगिन पासवर्ड से प्रोफाइल बनाएं.
1. सर्टिफिकेट टेम्पलेट डिजाइन को अपलोड करें.
2. Participants का CSV फाइल डाटा अपलोड करें.
3. अंत में डाटा प्रोसेसिंग के लिए टेम्पलेट और CSV को सिलेक्ट करें, इसके बाद Certificate Generate हो जाएगा.
कुछ मिनट में ही हजारो सर्टिफिकेट Blockchain पर Generate हो जाएंगे. हर सर्टिफिकेट पर एक यूनीक cryptographic QR कोड होता है, जोकि पूरी तरह सुरक्षित होता है और उसे स्कैन करके सारी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. इस QR की ख़ास बात ये है कि इसे कोई कॉपी नहीं कर सकता और न ही डुप्लीकेट बनाया जा सकता है.
देश के टॉप 20 उभरते स्टार्ट-अप्स में शामिल
शुभम के डिजीपत्र का इस्तेमाल दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामानुजन कॉलेज, दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी, इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज गाजियाबाद, मौलाना आजाद नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी भोपाल में हो रहा है. इन सभी संस्थानों के करीब ढाई लाख सर्टिफिकेट इस साफ्टवेयर में अपलोड किए जा चुके हैं. डिजीपत्र सॉफ्टवेयर को देश के टॉप 20 स्टार्टअप में शामिल किया गया है. शिक्षा मंत्रालय का इनोवेशन सेल अब देशभर में इस योजना को विस्तर देगा. 8 फरवरी को बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के स्वतंत्रता भवन में आयोजित इनोवेशन मेले में इस सॉफ्टवेयर के हर तकनीकी खूबियों पर चर्चा हुई. शुभम ने बताया कि शिक्षा मंत्रालय की तरफ से उन्हें इस प्रोजेक्ट के लिए 10 लख रुपए मिले थे. वह 2022 से इस योजना पर काम कर रहे थे.
ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित है सॉफ्टवेयर
डिजीपत्र सॉफ्टवेयर ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित है. शुभम ने कहा कि देश के सभी संस्थान इस सॉफ्टवेयर से जुड़ जाएं, तो निश्चित रूप से सर्टिफिकेट की जांच बिना अधिक समय और धन खर्च किए हो सकती है. यूनिवर्सिटी या कॉलेज अपने छात्रों को जारी किए प्रमाण पत्र डिजीपत्र पर अपलोड करेंगे, प्रत्येक प्रमाण पत्र पर उन्हें क्यूआर कोड व यूनिक आईडी मिलेगी और एक बार डाटा अपलोड होने के बाद, उसे हटाया नहीं किया जा सकेगा. डिग्री, डिप्लोमा या अन्य किसी भी कार्यक्रम के प्रमाण पत्र की देखरेख आधुनिक तरीके से की जा सकेगी. ब्लॉकचेन एक डेटाबेस है, जिसमें डाटा स्टोर किया जाता है, जो एक चेन में एक साथ जुड़े होते हैं.
डिजीलॉकर से इस तरह अलग है डिजीपत्र
शुभम ने बताया कि एक सर्टिफिकेट पर करीब 12 से 30 रुपये तक का खर्च आता है. उन्होंने बताया कि वैसे तो अभी लोग डिजिलॉकर पर डाटा अपलोड करते हैं, लेकिन ये आम आदमी के लिए वॉलेट की तरह काम करता है, जिसमें डेटा भेजने के लिए लोगों को अपने स्तर पर काफी काम करना पड़ता है. क्योंकि वह एक सामान्य तकनीक पर आधारित है. वहीं, डिजीपत्र को खासतौर पर इंस्टिट्यूट के लिए डिजाइन किया गया है. उसमें डेटा भेजने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती. इस सॉफ्टवेयर में डेटा अपलोड करने पर, एक से अधिक सर्वर पर डेटा एक साथ सुरक्षित हो जाता है, इससे हैकिंग का खतरा बहुत कम हो जाता है. इसके अलावा वह डिजीलॉकर के साथ साझेदारी के लिए भी प्रयास कर रहे हैं, ताकि इस टेक्नोलॉजी का ज्यादा से ज्यादा अडोप्शन हो सके.
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