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BW Hindi Sunday Special: जीत की ऐसी कहानी पहले कभी नहीं सुनी होगी!
ये मोटिवेशनल कहानी है 21 जनवरी, 1910 को हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में जन्मे पिस्टल शूटिंग ओलिंपिक चैंपियन कैरोली टकास की.
चंदन कुमार 1 year ago
नई दिल्ली: कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. यदि कोई व्यक्ति बिना रुके लगातार कोशिश करता रहेगा, तो एक दिन वह मंजिल तक जरूर पहुंचेगा. आज हम आपको एक ऐसे ही निशानेबाज के जज्बे की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने अपना दायां हाथ खोकर भी दुनिया को दिखा दिया कि यदि आपके अंदर हौसला हो तो बड़े से बड़े पहाड़ को भी तोड़ा जा सकता है.
दुनिया का बेस्ट पिस्टल शूटर
ये मोटिवेशनल कहानी है 21 जनवरी, 1910 को हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में जन्मे पिस्टल शूटिंग ओलिंपिक चैंपियन कैरोली टकास की. कैरोली टकास को दुनिया का बेस्ट पिस्टल शूटर माना जाता था. जब वह दाएं हाथ से कोई निशाना लगाता था, चूकने का सवाल ही नहीं था. 26 साल की उम्र में ही उसने सभी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुकाबले में जीत हासिल कर ली थी. उसका सपना था 1936 के ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीतना.
1936 के ओलिंपिक्स में नहीं ले पाया हिस्सा
टकास हंगरी की सेना में सर्जेन्ट था. उस वक्त कमिशंड ऑफिसर्स ही सेना की तरफ से ओलिंपिक में हिस्सा ले सकते थे, इस कारण वह 1936 के ओलिंपिक में हिस्सा नहीं ले पाया. उसके सपने को सबसे पहला धक्का तभी लगा था, लेकिन वो मायूस होने और गम में डूब जाने की बजाय सीधे 1940 ओलिंपिक की तैयारी करने लगा. पूरे देश को भी उसकी प्रतिभा पर पूरा यकीन था कि वह गोल्ड मेडल जरूर जीतेगा.
जब टकास की जिंदगी में आया भूचाल
अपना और देशवासियों के सपने को पूरा करने के लिए वह दिन-रात प्रैक्टिस करता था, लेकिन उसे क्या पता था कि उसकी जिंदगी में एक ऐसा भूचाल आने वाला है, जो उसके लिए सबसे बड़ी बाधा बनेगा. 1937 की बात है, जब वह आर्मी कैंप में प्रैक्टिस कर रहा था, तो उसके दाहिने हाथ में हैंड ग्रेनेड ब्लास्ट हो गया और उसका वो हाथ, जो उसकी सबसे बड़ी ताकत थी, उसके शरीर से अलग हो गया. उस वक्त सभी को लगा कि ओलिंपिक में गोल्ड जीतने का सपना हमेशा के लिए टूट गया, लेकिन कैरोली टकास का जज्बा तब भी टस से मस नहीं हुआ.
जब बायें हाथ को बना लिया ताकत
टकास चाहता तो अपने सपने को छोड़कर दूसरों की हमदर्दी के साथ एक सामान्य जीवन जी सकता था, पर उसने अपनी मंजिल तो पहले ही तय कर रखी थी. वह जानता था कि यह उसे उसके सपने को पूरा करने से रोकने के लिए सिर्फ एक बाधा है और कुछ नहीं. इलाज के दौरान ही उसने यह सोचा कि क्या हुआ जो उसका दायां हाथ अब नहीं है, पर बायां हाथ तो है. उसने तय कर लिया कि अब वह बायें हाथ को अपनी ताकत बनाएगा और प्रैक्टिस शुरू कर दी. शुरुआत में उसे काफी दर्द हुआ और ऐसा लग रहा था कि वो ताकत नहीं लौट पाएगी, पर उसने तब भी हिम्मत नहीं हारी.
जब टकास ने फिर से चौंका दिया
1939 में हंगरी में राष्ट्रीय चैंपियनशिप का आयोजन हुआ. उसमें कैरोली टकास भी पहुंचा. उसे देखकर अन्य प्रतिभागी हैरान हो गए और उन्हें लगा कि टकास उनका हौसला बढ़ाने आए हैं. किसी को भी टकास की प्रैक्टिस के बारे में जानकारी नहीं थी. टकास ने उन सभी से कहा, "मैं यहां आपलोगों का हौसला बढ़ाने नहीं आया हूं, बल्कि खुद इस चैंपियनशिप में हिस्सा लेने आया हूं." सभी हैरान रह गए और सोचने लगे कि दायां हाथ तो रहा नहीं, अब भला ये क्या कर पाएगा, लेकिन टकास ने सबको चौंकाते हुए बाएं हाथ से पिस्टल शूटिंग चैंपियनशिप जीत ली.
...जब सपना हुआ पूरा
बाएं हाथ से भी उसका एक भी निशाना चूक नहीं रहा था. अब फिर से सबको उसके गोल्ड मेडल जीतने की उम्मीद जग गई, लेकिन अफसोस बाधाएं उसके जीवन में कम होने का नाम नहीं ले रही थीं. 1940 का ओलिंपिक गेम्स दूसरे विश्व युद्ध की भेंट चढ़ गया. अब वह 1944 ओलिंपिक की तैयारी में जुट गया, पर दूसरे विश्व युद्ध के कारण वो ओलिंपिक गेम्स भी नहीं हो सका. कोई और होता तो यह मान लेता कि अब बहुत हुआ, कितने साल और इंतजार करता रहूंगा, पर टकास के अंदर जज्बा इतना था कि उसे कोई हिला नहीं सकता था. आखिरकार, उसे 1948 के समर ओलिंपिक गेम्स में मौका मिला और उसने गोल्ड मेडल जीत ही लिया. यही नहीं, 1952 के समर ओलिंपिक गेम्स में भी कैरोली टकास को कोई हरा नहीं पाया और उसने एक और गोल्ड मेडल जीत लिया. कैरोली टकास का निधन 5 जनवरी, 1976 को हुआ.
कैरोली टकास की कहानी से क्या सीख सकते हैं
कैरोली टकास की मोटिवेशनल स्टोरी यह बताती है कि जीवन में असंभव कुछ भी नहीं होता. यदि खुद पर पूरा विश्वास और धैर्य है तो आपकी जीत पक्की है. चाहे कितनी भी बाधाएं क्यों न आएं, आप अथक प्रयास करते रहेंगे तो एक दिन कामयाबी आपके कदम जरूर चूमेगी.
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