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Global Investor Summit से पहले ही नोएडा ने निवेश आना शुरू हो चुका है :ऋतु माहेश्वरी
उन्होंने नोएडा-ग्रेटर नोएडा में रजिस्ट्री की समस्या पर बोलते हुए कहा कि इसके समाधान के लिए कई विकल्प दिए हैं. उनकी कोशिश है बॉयरों को ज्यादा परेशानी का सामना न करना पड़े.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
यूपी में होने वाले ग्लोबल इंवेस्टर मीट को लेकर इन दिनों तैयारी जोरों पर हैं. राज्य के मुख्यमंत्री से लेकर उपमुख्यमंत्री और दूसरे मंत्री लगातार कोशिश कर रहे हैं कि राज्य में ज्यादा से ज्यादा निवेश जुटाया जा सके. इसी विषय और दूसरे कई अहम मसलों को लेकर BW HINDI के एडिटर अभिषेक मेहरोत्रा ने नोएडा-ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी की सीईओ ऋतु माहेश्वरी से बात की है. सुनिए उन्होंने इस मामले को लेकर क्या अहम बात कही है
सवाल: इन दिनों ग्लोबल इंवेस्टर समिट की चर्चा जोरों पर है, इसे लेकर आप नोएडा की क्या भूमिका देखती हैं?
जवाब: देखिए हमारे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी के लिए अगले पांच सालों में 1 ट्रिलियन इकॉनमी का लक्ष्य निर्धारित किया हुआ है. ये हम सभी जानते हैं कि यूपी एक रिसोर्सफुल स्टेट है. यहां की जो जनसंख्या है, संसाधन हैं, उसके अनुसार ये लक्ष्य निर्धारित किया गया है. जहां सभी तरह की सुविधाएं मौजूद हैं. जहां तक बात नोएडा की तो ये उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख द्वार भी रहा है. यूपी का सबसे ज्यादा रेवेन्यू भी इसी बेल्ट से आता है. इसमें अभी तक सवा लाख करोड़ का निवेश कमिट हो चुका है. इनमे से कई प्रोजेक्ट के इंटेंस भी आ चुके हैं. कई निवेशक ऐसे हैं जिन्हें जमीन भी आवंटित की जा चुकी है. इसे लेकर हमारा अगला लक्ष्य 20 लाख करोड़ रुपये का है. ग्लोबर इंवेस्टर समिट में टाईअप कराएंगें उसे अगले पांच साल में एक्जीक्यूट कराएंगें.
सवाल: जेवर एयरपोर्ट और यूपी डिफेंस कॉरिडोर के जरिए नोएडा सरकार की प्राथमिकता में दिखता है. इन सभी से नोएडा को कैसे मदद मिलेगी ?
जवाब: देखिए नोएडा में इंटरनेशनल निवेशक भी आना चाहते हैं, हमारे यहां जो पहले से इंफ्रास्ट्रक्चर था उसे लेकर भी मुख्यमंत्री ने बहुत काम किया है. हमारे यहां जेवर एयरपोर्ट बन रहा है जिसका पहला फेज 2024 तक शुरू करने का प्रयास करेंगे. एयरपोर्ट के यहां आने से निवेश भी बढ़ा है. नोएडा के लिए दोनों फ्रेट कॉरिडोर जो ईस्टर्न और वेस्टर्न फ्रेट कॉरिडोर हैं ये महत्वपूर्ण हैं. सबसे दिलचस्प बात ये है कि ये दोनों कॉरिडोर दादरी से होकर जा रहे हैं. ऐसें में यहां लॉजिस्टिक और दूसरे वेयर हाउस से संबंधित निवेश आएगा. हम वहां मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक हब भी बनाने का प्लान कर रहे हैं. यहां की डेटा कनेक्टिविटी, फाइबर कनेक्टिविटी और इलेक्ट्रिक इंफ्रास्ट्रक्चर है उसे देखेते हुए ज्यादातर लोग डेटा रखने में और उस क्षेत्र में निवेश करने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. हीरानंदानी ग्रुप द्वारा नॉर्थ इंडिया का सबसे बड़ा डेटा सेंटर लगाया गया है. जबकि 7 से 8 अन्य डेटासेंटरों पर काम चल रहा है. इससे इस क्षेत्र में बड़े स्तर पर भी निवेश देखने को मिलेगा.
सवाल: नोएडा में अर्बन इलाकों का तो विकास हो गया लेकिन गांवों का विकास होना अभी भी बाकी है. उसे लेकर आप किस तरह से योजना बना रही हैं?
जवाब: देखिए जैसा कि हम सभी जानते हैं कि नोएडा को बसाने में गांवों की बड़ी भूमिका है. ऐसे में हमारी कोशिश है उन्हें ज्यादा से ज्यादा इंफ्रास्ट्रक्चर दिया जाए. हम लगातार गांवों में बुनियादी सुविधाओं में इजाफा कर रहे हैं. बिजली, सड़क, पानी, टॉयलेट पर हम पहले ही काफी काम कर चुके हैं. ज्यादा इश्यू मेंटीनेंस के हैं. क्योंकि गांवों में जो आबादी थी वो और बढ़ रही है. देखिए हमेशा से ही जमीन का अधिग्रहण करना बड़ा चैलेंज होता है ।जिन्हें नोटिफाई जमीन नहीं मिली, वो बाहर के गांवों में बस गए. ऐसे में उन गांवों में रहने वाले लोगों की उम्मीद रहती है कि सरकार और अथॉरिटी उनके वहां भी विकास करें. ऐसे में उस समस्या को कैसे टैकल किया जाए, इस पर भी हम लोग काम कर रहे हैं. उन्हें कम्यूनिटी सेंटर से लेकर दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की बात है, हम उन्हें वो सब मुहैया करा रहे हैं. मुख्यमंत्री ने हेल्थ एटीएम की योजना शुरू की है, जिसमें हर जिले में उनके गांवों में सभी पीएससी पर मोबाइल यूनिट रहेगी जो एक तरह से पूरी पीएससी का काम करती है. हर पीएससी में मोबाइल टेस्टिंग यूनिट लगाने की तैयारी कर रहे हैं. गांवों में जो कम्यूनिटी सेंटर बने हैं उन्हें और अपग्रेड किया जा रहा है. कोशिश कर रहे हैं उन्हें हर सुविधा मिले चाहे वो स्वच्छ पानी हो या स्वास्थ्य सेवा या दूसरी कोई और सेवा हो, वो उसी स्तर की मिले जो शहरों के लोगों को मिल रही है.
सवाल: अब कुछ न्यू नोएडा के बसने की बात सुनने में आ रही है, ये क्या मसला है?
जवाब: देखिए जैसा कि हम जानते हैं कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा लगभग विकसित हो चुके हैं. सभी लोग यहां की जैसी सुविधाओं में रहना चाहते हैं. लेकिन इसके आसपास के क्षेत्र अभी विकसित हो रहे हैं. हम मानते हैं कि सभी को ऐसे विकसित शहरों में रहने का अवसर मिलना चाहिए. इसीलिए हमने नोएडा के आसपास के क्षेत्रों में जिनमें गौतबुद्ध नगर और बुलंदशहर के 80 गांवों को नोटिफॉई किया जा रहा है. हमें पूरी उम्मीद है कि इस साल इसका मास्टरप्लान भी बनकर तैयार हो जाएगा. इन क्षेत्रों को भी प्लान तरीके से विकसित कर पाएं और वहां भी ये सुविधाएं दे पाएं. यही नहीं हम लोग ग्रेटर नोएडा में फेस टू की तरफ भी आगे बढ़ रहे हैं.
सवाल: ये सवाल नोएडा के 35000 यूनिट से जुड़ा हुआ है कि आखिर फ्लैटों की रजिस्ट्री कब तक होगी? क्योंकि इसमें सरकार की ओर से भी अक्सर सिर्फ बयान ही आता है. इस समस्या को आप कैसे टैकल कर रही हैं?
जवाब: देखिए ये यहां के अलग-अलग प्रोजेक्ट्स के 35000 यूनिट से जुड़ा हुआ मामला है. कुछ प्रोजेक्ट ऐसे हैं जो बन रहे हैं और बॉयर को पजेशन दे दिया, लेकिन रजिस्ट्री नहीं है. कुछ ऐसे हैं जो बने हैं लेकिन लोग वहां रह नहीं रहे हैं. इसका कारण ये रहा है कि दरअसल कई बिल्डर ऐसे हैं जिन्होंने अभी तक अथॉरिटी के ड्यूज को जमा नहीं किया गया है. कोई प्रोजेक्ट अगर बिल्डर लाता है तो उसकी जिम्मेदारी होती है कि अपनी देनदारी पूरी तरह से दे. क्योंकि ये सरकार का राजस्व है और ये विकास से जुड़ा मामला है. ये वो ड्यूज हैं जो उन्होंने नहीं दिए और ब्याज लगते-लगते बढ़ गए हैं. एक शहर को तभी आगे बढ़ाया जा सकता है जब वो सेल्फ सस्टेनेबल मॉडल पर काम करता है. जो बिल्डर अथॉरिटी के ड्यूज दे रहे हैं उनकी रजिस्ट्री हो रही है. जो लोग नहीं देते हैं उनकी रजिस्ट्री पेंडिंग हैं. हमने ड्यूज क्लियर करने के लिए बिल्डरों को कई तरह की सुविधाएं भी दी हैं. इसमें उन्हें किस्तों की सुविधा भी दी गई है. यही नहीं अगर वो एकमुश्त पैसा नहीं दे रहे हैं तो वो प्रति टॉवर के अनुसार भी पैसा दे सकते हैं. यही नहीं हमने उन्हें प्रति फ्लैट पर भुगतान देने की भी सुविधा दी है जिससे वो प्रति फ्लैट के अनुसार भी भुगतान कर सकते हैं. हमारी ये भी कोशिश है कि सरकार का पैसा आ जाए और हमारे बॉयर को परेशानी का सामना न करना पड़े. हम लोग बॉयर के दृष्टिकोण से पॉलिसी लाते हैं. जो मामले ऐसे हैं जो डिफॉल्टर हो गए हैं और जो लिटिगेशन में चले गए हैं उन्हें थोड़ा मैनेज करना मुश्किल होता है.
जवाब: ऐसा नहीं है. जब आप क्षेत्र में काम करते हैं तो नियम और कायदे जितने हमारे लिए हैं उतनी ही पॉलिटिकल मशीनरी के लिए भी हैं. वह सरकार का हिस्सा है और सरकार की पॉलिसी बनी उनके द्वारा है और एक्जिक्यूट हमारे द्वारा की जाती है. कोई भी काम होता है वह बाहर देखने से जरूर लगता होगा कि कि पॉलिटिकल प्रेशर रहता है. लेकिन कोई भी जो काम होता है, वो आपसी समन्वय से ही होता है और जनसामान्य की अपनी जो समस्याएं रहती हैं वो उसे अपने अपने जनप्रतिनिधि के पास पहले लेकर जाते हैं और उसकी सुनना और उसे ऊपर तक पहुंचाना उसकी जिम्मेदारी रहती है. जो सेकंड लेवल हम लोगों तक आता है जो हमारे पास कुछ डायरेक्ट लोग आते हैं. लेकिन हम लोग यह भी देखते हैं कि वह सरकारी नियम और कायदे से हो और ऐसा ही पॉलिटिकल मशीनरी का रहता है आवाज सबकी पहुंचाई जाती है. लेकिन दोंनो के लिए यही रहता है कि काम वह हो जो नियम और कायदे में है, जिससे पूरे क्षेत्र का विकास हो. ऐसा नहीं है कि कहीं किसी तरह का कोई फ्रिक्शन रहता है. हमारी वर्किंग में बाहर से लगता होगा लेकिन सामान्यतः कार्यप्रणाली हर जगह की रहती है वह एक आपसी समन्वय से ही क्षेत्र का विकास होता है.
पूरा इंटरव्यू यहां देखें:
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