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IMA, नोएडा के पूर्व अध्यक्ष ने बताया कोरोना के बाद कितना बदला मेडिकल सेक्टर
‘डॉक्टर्स डे’ के मौके पर बिज़नेस वर्ल्ड ने IMA, नोएडा के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर एन. के. शर्मा से जानने का प्रयास किया कि कोरोना से पहले और उसके बाद चिकित्सा क्षेत्र में किस तरह के बदलाव आए हैं.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
कोरोना महामारी ने भारत सहित पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था. इस दौरान मेडिकल सेक्टर पर सबसे ज्यादा बोझ था. ‘डॉक्टर्स डे’ के मौके पर बिज़नेस वर्ल्ड ने IMA, नोएडा के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर एन. के. शर्मा से जानने का प्रयास किया कि कोरोना से पहले और उसके बाद चिकित्सा क्षेत्र में किस तरह के बदलाव आए हैं.
हर स्तर पर काम की स्पीड बढ़ी
इन्फ्रास्ट्रक्चर, बजट पर ज्यादा फोकस
कोरोना काल से पहले की बात करें तो हॉस्पिटल के इन्फ्रास्ट्रक्चर, चिकित्सा के लिए बजट आदि पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता था, जितना कि अब दिया जा रहा है. इसके अलावा, डॉक्टर्स, पैरामेडिकल स्टाफ की जो कमी थी, वो काफी हद तक दूर हुई. कई नए मेडिकल कॉलेज खुले, उन्हें मान्यता मिली. कोरोना से पहले किसी ने भी नहीं सोचा था कि हमें इतनी बड़ी मात्रा में ओक्सीजन, PPE किट की आवश्यकता पड़ेगी. पहले हम PPE दूसरे देशों से मंगवाते थे, आज वो हमारे देश में बन रही हैं. ऑक्सीजन प्लांट लग रहे हैं. हमने इतने कम समय में वैक्सीन विकसित की, जो अपने काम में बड़ी कामयाबी है. इसके अलावा, कोरोना ने लोगों को साफ-सफाई पर ज्यादा ध्यान देना सिखलाया. इससे सैनेटाइजर का इस्तेमाल बढ़ा, हमने उसके महत्व को समझा.
‘इस बात से दुखा दिल’
अस्पतालों में दवाओं की सप्लाई बढ़ाई गई, बजट भी बढ़ाए गए. कुल मिलाकर कोरोना से मेडिकल सेक्टर में बड़े पैमाने पर बदलाव हुए. हालांकि, एक बात है, जो बतौर डॉक्टर मुझे सालती है. वो है, इस आपदा को कुछ प्राइवेट अस्पतालों ने अवसर की तरह लिया. उन्होंने मानव सेवा के मूल्यों को दरकिनार करते हुए मोटा मुनाफा कमाया, एक से दो हॉस्पिटल बना लिया.
‘गरिमा बनाए रखें’
आजकल कॉर्पोरेट ग्रुप्स के हॉस्पिटल बन गए हैं. जहां कहीं न कहीं डॉक्टरों का शोषण हो रहा है. ये हॉस्पिटल MBA चलाते हैं और यदि कुछ गलत होता है तो बदनामी मेडिकल प्रोफेशन की होती है. मैं ‘डॉक्टर डे’ के मौके पर कहना चाहूंगा कि हम सभी डॉक्टर्स को अपने प्रोफेशन की गरिमा को बनाए रखना चाहिए. कॉर्पोरेट ग्रुप्स के गलत कामों का विरोध करें, बगैर डॉक्टरों के तो वो अस्पताल नहीं चला पाएंगे. इलाज तो डॉक्टर ही करेंगे. इसलिए आवाज उठाएं. जब डॉक्टर मानवतावादी सोच प्रदर्शित करेंगे, तो समाज में उनकी एक अलग ही छवि बनेगी.
सरकार से अपेक्षा
डॉक्टर शर्मा के अनुसार, मेडिकल क्षेत्र में अभी बहुत बदलाव की गुंजाइश है और इसके लिए ज़रूरी है कि प्राइवेट सेक्टर के मेडिकल कॉलेजों को नियंत्रित किया जाए. उनकी फीस को रेग्युलेट करना ज़रूरी है, प्रति वर्ष 14 लाख से ज्यादा फीस भरना क्या एक सामान्य परिवार के लिए मुमकिन है? यहां सरकार को चाहिए कि चिकित्सा शिक्षा को सस्ता किया जाए, सरकारी कॉलेज में मेडिकल की सीटों को बढ़ाया जाए. ताकि ज्यादा से ज्यादा डॉक्टर और पैरामेडिकल फ़ोर्स तैयार हो सके.
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