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गजब है RBI का महंगाई और ग्रोथ का बैलेंस एक्ट, यहां समझिए

अप्रैल में महंगाई दर 7.79 परसेंट पर थी, जो कि 8 सालों की सबसे ज्यादा महंगाई रही. मई से रिजर्व बैंक ने पॉलिसी में सख्ती शुरू की, जिसे बाद महंगाई दर में नरमी का आना शुरू हुआ.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago

नई दिल्ली: रिजर्व बैंक ब्याज दरों में बढ़ोतरी करेगा, ये बात पहले से तय थी, लेकिन कितनी करेगा इसे लेकर बाजार काफी समय से अनुमानों का बाजार गर्म था. किसी का अनुमान था कि रिजर्व बैंक 35 बेसिस प्वाइंट का इजाफा करके थोड़ा ग्रोथ पर भी फोकस करेंगे, लेकिन ब्याज दरों में अमेरिकी फेड ने जिस तरह से लगातार दो बार 75 बेसिस प्वाइंट का इजाफा किया तो कई एक्सपर्ट इस अनुमान पर बुलिश हो गए कि रिजर्व बैंक भी 35 की जगह 50 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी कर सकता है. 

पश्चिमी देशों से अलग है भारत की स्थिति

रिजर्व बैंक की पॉलिसी को आप मोटा-मोटा समझें तो काफी हद तक ये उम्मीदों के मुताबिक ही रही, लेकिन क्या ये बढ़ोतरी अमेरिकी फेडरल रिजर्व या फिर यूरोप या इंग्लैंड के 50 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी के बाद दबाव का नतीजा है. इस पर एक्सपर्ट्स की राय अलग अलग है. हालांकि जिस पर सबसे ज्यादा सहमति बनी है वो ये है कि भारत की स्थिति पश्चिमी देशों से काफी अलग है. अमेरिका को ही ले लीजिए, जिसके लिए महंगाई सबसे बड़ी चुनौती है, अमेरिका का महंगाई का लक्ष्य 2 परसेंट है, लेकिन वास्तविक महंगाई 9 परसेंट के पार है. जबकि भारत में महंगाई की लक्ष्मण रेखा 2 से 6 परसेंट के बीच है, जबकि है 7 परसेंट, जिसे नियंत्रित करना बस अगले कुछ महीनों की बात है. 

ग्रोथ की स्थिति बेहतर

दूसरी बात ये भी ध्यान देने वाली है कि यूरोप, अमेरिका या फिर इंग्लैंड में जो भी कदम उठाए जा रहे हैं वो मंदी को ध्यान में रखकर उठाए जा रहे हैं. जबकि  भारत में मंदी की आशंका दूर दूर तक नहीं है. IMF ने हाल ही में ग्रोथ अनुमान के आंकड़े जारी किए थे. जिसमें IMF ने साफ साफ कहा था कि ग्लोबल इकोनॉमी मंदी के मुहाने पर खड़ी है. खास तौर पर अमेरिका, चीन और यूरोप जैसे देशों के लिए खतरा बड़ा है. क्योंकि ग्लोबल इकोनॉमी का 50 परसेंट हिस्सा इन्हीं तीनों के पास है. IMF ने FY23 के लिए ग्लोबल इकोनॉमी ग्रोथ का अनुमान 6.1 परसेंट से घटाकर 3.2 परसेंट कर दिया. अमेरिका तो तकनीकी रूप से मंदी के अंदर प्रवेश भी कर चुका है. क्योंकि लगातार दो तिमाहियों से उसकी जीडीपी ग्रोथ निगेटिव रही है. क्या ग्रोथ को लेकर भारत के सामने कोई चुनौती है, इसका जवाब जरूर हां में है, लेकिन पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत की स्थिति बेहतर है. IMF ने भी भारत का ग्रोथ अनुमान 8.2 परसेंट से घटाकर 7.4 परसेंट कर दिया था, लेकिन ये RBI के ग्रोथ अनुमान के काफी करीब है, इसलिए थोड़ा रियलिस्टिक भी जान पड़ता है 

महंगाई घटी, लेकिन फिर भी चिंता 

अब आते हैं महंगाई पर, जहां तक महंगाई की बात है, तो चिंता अभी बरकरार है. रिजर्व बैंक गवर्नर ने अपनी कमेंट्री में भी बताया है कि अप्रैल में रिटेल महंगाई अपने चरम पर थी. अप्रैल में महंगाई दर 7.79 परसेंट पर थी, जो कि 8 सालों की सबसे ज्यादा महंगाई रही. मई से रिजर्व बैंक ने पॉलिसी में सख्ती शुरू की, जिसे बाद महंगाई दर में नरमी का आना शुरू हुआ. मई में CPI गिरकर 7.04 परसेंट पर आ गई, फिर जून में ये 7 परसेंट रही. यहां समझने वाली बात ये है कि भारत में जो भी महंगाई है, वो इंपोर्टेड है, भारत की महंगाई कच्चा तेल और खाने के तेल से ज्यादा है. इस वक्त कच्चा तेल 120 डॉलर की ऊंचाई से फिसल कर अब 95 डॉलर के नीचे जा चुका है, इसके अलावा रूस से भारत अपनी जरूरत का 18 परसेंट तेल सस्ती दरों पर इंपोर्ट कर रहा है, डॉलर के मुकाबले रुपया भी अब मजबूत हो रहा है. अंतरराष्ट्रीय बाजारों में पाम ऑयल की कीमतें 35 परसेंट तक गिर चुकी हैं, सोयाबीन भी 30 परसेंट तक सस्ता हो चुका है, जिसका सीधा असर खाद्य महंगाई दर के आंकड़ों पर दिखेगा. दुनिया भर में ब्याज दरें बढ़ने से ग्लोबल मैक्रो माहौल भी सुधरेगा, जिसका फायदा भारत को भी होगा. इसलिए एक उम्मीद ये भी है कि अगले 3-5 महीने में महंगाई का दर्द खत्म हो जाएगा. 

महंगाई के अलावा रुपया रिजर्व बैंक लिए एक चिंता का विषय रहा है. आज की पॉलिसी में रिजर्व बैंक ने बताया कि इस वित्त वर्ष में रुपया डॉलर के मुकाबले 4.7 परसेंट कमजोर हुआ है, रिजर्व बैंक ने इस बात पर जोर दिया है कि उनका रुपये की स्थिरता पर काफी फोकस हैं. कई इकोनॉमिस्ट मानते हैं कि रुपये को नियंत्रित करने में रिजर्व बैंक ने काफी अच्छा काम किया है. रुपया बीते कुछ दिनों से काफी सुधरा है. आज की पॉलिसी से ये दिखता है कि रिजर्व बैंक शुरू से ही महंगाई और ग्रोथ प्रोजेक्शन को लेकर चल रही थी, वो उसमें बैलेंस बनाने में कामयाब रहे हैं.

 

 
 


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