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Bournvita के साथ हुई क्राइसिस से बदलेगी कंपनियों की चाल?

दरअसल एक आपत्तिजनक विडियो में कंपनी की ब्रैंडिंग दिखाई गयी थी और इसे कंपनी की ऐड के तौर पर आगे बढ़ा दिया गया था.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago

कैडबरी (Cadbury) ने जिस तरह से Bournvita विवाद को संभाला है उसके बाद यह तो बहुत अच्छे से साफ हो गया है कि आपको किसी भी समस्या को कैसे नहीं संभालना होता है. लोगों की राय से लेकर बाकी सबकुछ भी कंपनी के खिलाफ जाता नजर आ रहा है. इस मामले में हाल ही में एक नया ट्विस्ट देखने को मिला है. NCPCR (National Commission For  Protection Of Child Rights) ने ब्रैंड से अपने भ्रामक ऐड्स को हटाकर एक डिटेल्ड रिपोर्ट सबमिट करने को कहा है. 

इन ब्रैंड्स को भी हुई है परेशानी
Bournvita का संकट सोशल मीडिया से शुरू हुआ था. हाल ही में बैग बनाने वाली VIP इंडस्ट्रीज का ब्रैंड Skybags, बॉयकॉट गैंग का शिकार बन गया. दरअसल एक आपत्तिजनक विडियो में कंपनी की ब्रैंडिंग दिखाई गयी थी और इसे कंपनी की ऐड के तौर पर आगे बढ़ा दिया गया था. इसके बाद कंपनी को एक आधिकारिक बयान जारी करना पड़ा और इससे भी इन्टरनेट पर गुस्साए लोगों को कुछ खास तसल्ली नहीं मिली. इतना ही नहीं, Anheuser-Busch द्वारा ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट Dylan Mulvaney को अपने एक सोशल मीडिया कैंपेन में शामिल किया था जिसके बाद कंपनी के ब्रैंड Bud Light को संकट का सामना करना पड़ा था और अभी भी यह संकट पूरी तरह खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. 

बॉयकॉट का संकट
कंपनी समाधान के तौर पर एक दूसरी ऐड भी लेकर आई ताकि वह इस विवाद से खुद को दूर कर सके लेकिन तब तक कंपनी को काफी ज्यादा नुक्सान हो चुका था. इस ऐड की वजह से कंपनी को अपनी मार्केटिंग वाईस प्रेजिडेंट Alissa Heinerscheid को छुट्टी पर भेजना पड़ा. 2019 से लेकर अभी तक कई ब्रैंड्स को धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और अपनी टारगेट ऑडियंस को न समझ पाने जैसे कारणों की वजह से कई बार बॉयकॉट का शिकार बनना पड़ा. हालांकि कुछ ब्रैंड्स इस बॉयकॉट संकट से सफलतापूर्वक बाहर आ गए हैं लेकिन बहुत से ब्रैंड्स से ऐसे भी हैं जिनकी किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी. 

कंपनियों को करने चाहिए ये बदलाव
सोशल मीडिया के इस दौर में ब्रैंड्स को क्राइसिस मैनेजमेंट के खर्चे को बढ़ाना होगा और ऐसी रणनीतियां बनानी होंगी जो ऐसे विवादों से उन्हें बचा सकें जिनकी बदौलत कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ता है. लेकिन पिछले कुछ समय में कंपनियों को बॉयकॉट करने की मांग में इतनी ज्यादा वृद्धि देखने को मिली है कि अब लगता है कि बॉयकॉट के इस संकट से निपटने के लिए कंपनियों को अपनी रणनीतियों में बदलाव कर लेना चाहिए. और क्या पता, शायद कुछ पुरानी सीखों को भुलाना भी पड़े? इसीलिए हमने इंडस्ट्री पर ध्यान देने वाले एक्सपर्ट्स से बात की और यह जानने की कोशिश की कि क्या सच में इस वक्त ब्रैंड्स को सोशल मीडिया ड्रिल की जरुरत है?

कस्टमर्स की भावनाएं 
DENTSU CREATIVE इंडिया में अकाउंट मैनेजमेंट की वाईस प्रेजिडेंट उपासना नैथानी का मानना है कि इस वक्त ब्रैंड्स के लिए एक सोशल मीडिया ड्रिल बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा – सोशल मीडिया एक बहुत ही डायनामिक जगह है. हालांकि हम ऐसे संभावित खतरों की एक लिस्ट तैयार कर सकते हैं जिनका सामना किसी ब्रैंड को सोशल मीडिया पर करना पड़ सकता है लेकिन हम कभी भी सुनिश्चित तौर ये नहीं बता सकते कि ये खतरे क्या हैं और इनकी शुरुआत कहां से होती है? कस्टमर्स की भावनाओं को समझने की जरूरत कि महत्ता को समझाते हुए उपासना नैथानी ने कहा – अगर किसी के चहेते ब्रैंड को सोशल मीडिया पर टारगेट किया जाता है तो ऐसे वक्त पर कस्टमर्स की भावनाएं मुख्य रूप से देखने को मिलती हैं. ब्रैंड्स को अपने कस्टमर्स की भावनाओं में इन्वेस्ट करना चाहिए और किसी भी तरह की रणनीति बनाते हुए कंपनी को इनका ध्यान रखना चाहिए. 

बार बार करनी होंगी ड्रिल्स
Infectious Advertising के चीफ डिजिटल ऑफिसर राशिद अहमद ने मॉक ड्रिल्स की बात करते हुए कहा कि एक सोशल और PR क्राइसिस मैनेजमेंट प्लान का फायदा तब तक नहीं है जब तक इन प्लान्स को लागू करने वाले लोग पूरी तरह से तैयार न हों. बार-बार विभिन्न संकटों को कवर करने वाली मॉक ड्रिल्स करने से जवाब में तेजी के साथ-साथ जवाब देने का सही तरीका भी सामने आएगा. ऐसी ड्रिल्स बार बार करनी चाहिए और साथ ही अगर क्राइसिस मैनेजमेंट टीम में से किसी व्यक्ति को बदला जाता है या जोड़ा जाता है तो भी ऐसी ड्रिल्स बार करनी चाहिए. सोशल पंगा की डिजिटल स्ट्रेटेजी की डायरेक्टर सुनीता नटराजन की राय इस बारे में कुछ और है. उनका मानना है कि ब्रैंड्स को अपनी टीमों को एक दुसरे से जोड़ना चाहिए और उनकी सोच को एक सामान लेवल पर लेकर आना चाहिए. 

मॉक ड्रिल में है ये परेशानी
सुनीता नटराजन कहती हैं - मुझे लगता है कि सोशल मीडिया क्राइसिस ड्रिल करने की बजाय कस्टमर्स की भावनाओं को बेहतर तरीके से समझने के लिए ज्यादा से ज्यादा रेगुलर वर्कशॉप करनी चाहिए और वह ज्यादा बेहतर है. सुनीता नटराजन जोर देते हुए कहती हैं कि कॉर्पोरेट, PR, और सोशल टीमों के लिए ब्रैंड की साख बढाने के लिए आपस में एक दुसरे का सहयोग करना चाहिए. क्योंकि अक्सर एक कंपनी में बड़ी-बड़ी टीमें, स्टेकहोल्डर्स और एजेंसियां शामिल होती हैं इसलिए एक सोशल मीडिया ड्रिल में इन्हें शामिल करना काफी थकाऊ और झंझट भरा काम हो सकता है. 

(यह खबर Exchange4Media द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट पर आधारित है.)
 

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